''समोसा किंग ''के राज्य में ,कुछ दिनों से आतंक छाया था।' समोसा किंग ' आकार में ,जैसा मोटा और फुसफुसा ,उसका दिल भी वैसा ही है। हालाँकि वो खाने में थोड़ा चटपटा और तीखा भी है ,फिर भी स्वादिष्ट लगता है। मानव जाति द्वारा निर्मित ,ये समोसा स्वयं भी प्रसन्न रहता है और खाने वालों को भी खुश रखता है। इस कारण उसका राज्य बढ़ता जा रहा था। हर ठेलेवाले [चाट -पकौड़ी ]की दुकान पर ,हर गली के नुक्क्ड़ पर समोसा मिल ही जाता ,उसके साथ मीठी और तीखी पुदीने की चटनी तो कमाल ही कर जाती। कुछ लोग तो इसके इतने शौकीन हो गए कि दिन में दो -चार समोसे न खा लें तो लगता ही नहीं ,कि आज कुछ खाया है। यदि घर में कोई मेहमान आता तो उसके लिए ,चाय के साथ समोसा मंगा लिया जाता। किसी -किसी के हाथ का बना समोसा तो इतना प्रसिद्ध होता कि किसी से भी कह दो -नुक्क्ड़ से' रामजी भाई 'के समोसे ले आना ,तो वहीं से समोसे आ जाते। कुछ लोगों ने इसी की नकल [कॉपी ]करके मसालेवाले समोसे भी तैयार किये और लोग इसे घर में कई दिन पहले मंगाकर रख लेते और मठरी ,नमकपारे की तरह शाम के नाश्ते में खाते। ये समोसे की ही बिरादरी का होने के कारण ,मठरी और नमकपारे को भी इससे ईर्ष्या होने लगी ,आपस में कहते --इसने हमें भी नहीं छोड़ा। किन्तु समोसा ठहरा ,खुशमिज़ाज और उसने मठरी और नमकपारे से कहा -समय के साथ चलो ,अपना रूप बदलो ,अपने आकार को बदलो ,तब उन्होंने अपने को समय के साथ बदलकर अपने रूप और स्वाद में परिवर्तन किया। तब भी समोसे की जगह कोई नहीं ले सका।
हालाँकि कुछ लोग समोसा खाकर ,समोसे की तरह ही फूलने लगे किन्तु मानव ने इसे दोष न देकर ,अपनी गलती महसूस की और अपने -आप को ही समझाया -''समोसा अब से प्रतिदिन नहीं खाऊंगा ,कभी -कभी खाऊंगा। अब तो समोसे के विरुद्ध कई षड्यंत्र हुए ,हमारे देश में ही नहीं ,वरन विदेशी ताकतों ने भी इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। उन्होंने समोसे की सत्ता को हिलाने के लिए -''चीन ने अपना नूडल्स भेजा ,जिसे लोग खुश हो -होकर खाते। इटली से पिज्ज़ा भी आया ,उसके तो बड़े -बड़े शोरूम खुल गए।
अब तो समोसे का सिंहासन थोड़ा हिला ,समोसे के ठेले, उन शोरूम के सामने फ़ीके पड़ने लगे। ऐसे में समोसे का साथ ,गोल गप्पे [पानी -पूरी ]ने दिया। लोगों की ज़बान पर उसका स्वाद पहले से ही चढ़ा था। जब लोग[ विशेषकर महिलाएं ]गोल -गप्पा खाने आते तो समोसा स्वतः ही प्लेट में आ जाता। विदेशी ताकतों ने भरसक प्रयास किया कि हमारा स्वाद बच्चों की जबान पर चढ़े और फिर जर्मनी ने बर्गर , नेपाल से ''मोमोज़ ''भेजा किन्तु समोसे का स्वाद भी कोई भुला नहीं पाया।बड़े लोग तो ,आज भी समोसा ही बड़े चाव से खाते। समय के साथ धीरे -धीरे पता लगा कि विदेशियों ने जो ''जंक फूड ''हमारे देश में भेजे हैं ,वो हमारे ही बच्चों की' किडनी' और' लिवर ' खराब कर रहे हैं। अब तो माता -पिता को भी चिंता सताने लगी और वे अपने बच्चों को विदेशियों के इस षड्यंत्र से बचाने का प्रयास करने लगे।
कुछ स्थानों पर इनका राज्य अब भी क़ायम है क्योंकि इनके महल बड़े और मजबूत हैं ,ये अपने महलों में शान से रहते हैं विदेशी ताकतें इन्हें पैसा भेजती हैं। फिर भी समोसा सामान्य ,मध्यवर्गीय महिलाओं की पहली पसंद रहा। छुपकर अमीर महिलायें भी इसका स्वाद लेतीं। कुछ विपक्षी लोगों ने इसकी बुराई आरम्भ की और कहा -इसको बनाने में बहुत मेहनत लगती है ,किन्तु कुछ लोगों ने दही -सौंठ के साथ इसका स्वाद बढ़ाया।
जो लोग इसके समर्थक थे ,उन्होंने इस पर आविष्कार किये और इसके पेट में ,आलू के साथ मटर -पनीर भी भरा।इसकी बहन गुझिया भी किसी न किसी तीज -त्यौहार पर विशेषकर सावन में आती और अपने परिवार के साथ खूब धूम मचाती। वो अपने पति घेवर ,रिश्तेदार फैनी ,बताशे और उनके साथ खेल -खिलौनो की लड़ियाँ लेकर आती। ये तो सावन के पश्चात चली जाती। किन्तु एक दिन सब थर्रा उठे ,जब उन्होंने किसी ठेले पर समोसे के आकार जैसी ,लाल -हरी किसी वस्तु को देखा ,उसके सींग काफ़ी नुकीले थे। ''समोसा किंग 'में घबराहट हुई ,उसने अपने सैनिकों को आदेश दिया -पता लगाओ !कि ये सींग वाला राक्षस कौन है ?हमारा मित्र है या शत्रु। उसके सैनिक पता लगाने गए ,जब वो ठेलेवाला चिल्लाया -सिंघाड़े ले लो ,सिंघाड़े। ख़ोजबीन करने पर पता चला कि वो अपना राज्य क़ायम करना चाहता है क्योंकि वो अपने को 'समोसा किंग 'से ज्यादा ताकतवर समझता है। किसी- किसी के तो पूँछ भी होती है। वो ठेलेवाला ,वहीं आकर खड़ा हो गया।
''समोसा किंग ''ने उसका स्वागत किया और विनम्रता से बोला -शायद ,आप हमारी ही बिरादरी के हैं। किन्तु ''सिंघाड़ा राक्षस ''चिल्लाया -ख़ामोश !तुम गर्म तेल में तले जाने वाले और पेट में तुम्हारे आलू -मिर्ची के दम पर फूलने वाले ,मुझसे तुम्हारी क्या बराबरी ? तुम्हारे अंदर से यदि आलू ही निकाल दिया जाये तो तुम्हारा अस्तित्व ही खतरे में आ जायेगा।तभी एक दरबारी उठा और बोला -हम आकार में तुमसे बड़े हैं , तुम छोटे ,तुममें ऐसी क्या विशेषता है ?सिंघाड़ा गर्व से बोला -मैं पानी में रहकर कठोर तपस्या करता हूँ ,अपनी बेल पर लटका रहता हूँ। मैं तो वहां रहने वाले जीवों को भी अपने राज्य की भूल -भुलैया में उलझा लेता था।
घमंडी '' सिंघाड़ा राक्षस ''ने अपनी क्या -क्या विशेषताएं बताईं ?क्या वो अपना राज्य स्थापित कर सका ?आगे क्या हुआ जानने के लिए पढ़िए - ''सिंघाड़ा राक्षस ''भाग २।