पिछले भाग में आपने पढ़ा- नंदिनी को प्रतीक के बड़े भाई के व्यवहार के कारण उस पर शक जाता है किन्तु कोई ठोस सबूत नहीं मिल पाता। वो परेशान होती है कि किस तरह ये साबित किया जाये कि प्रतीक की हत्या हुई है ,जिसे आत्महत्या दिखाया गया। उसको परेशान देखकर डॉक्टर' दीक्षित ' नंदिनी की सहायता के लिए उसे अपने जानने वाली महिला पुलिस के पास भेज देते हैं किन्तु उनकी बातों से भी वो संतुष्ट नहीं हो पाती ,अब आगे -
महिला पुलिस, वो नंदिनी को अपने सीनियर से मिलवाती हैं और उन्हें सारी जानकारी देती हैं किन्तु वो भी यह कहकर कि बिना सबूत हम कैसे ,किसी पर भी हाथ डाल सकते हैं। नंदिनी बोली -सर !कई बार ऐसा होता है ,''जो होता है वो दिखाई नहीं देता ,जो दिखाई देता है ,ऐसा होता नहीं है ''इंस्पेक्टर -ये हम जानते हैं ,किन्तु न तो किसी पर शक किया जा सकता है और न ही किसी को गिरफ़्तार। किसी ने इस केस में कोई रिपोर्ट भी नहीं लिखवाई ,तब हम कैसे कार्यवाही कर सकते हैं ?नंदिनी बोली -मैं रिपोर्ट लिखवाना चाहूंगी। इंस्पेक्टर किसके खिलाफ़ रिपोर्ट लिखवानी है ?मुझे अभी किसी के भी विरूद्ध रिपोर्ट नहीं लिखवानी है ,बस मुझे शक़ है कि प्रतीक की हत्या हुई है ,इस बिनाह पर आप रिपोर्ट लिख लीजिये। इंस्पेक्टर -ये क्या बात हुई ?कोई सबूत है ,तुम्हारे पास ,फिर तुम कैसे ये रिपोर्ट लिखवा सकती हो ?कल को कोई चलता -फिरता आकर कहे कि मुझे शक़ है कि मेरे घर चोरी होने वाली है। क्या ऐसे रिपोर्ट लिखी जाती है ?नंदिनी विश्वास से बोली -सर ,मैं सबूत जुटाने का ही तो प्रयत्न कर रही हूँ किन्तु कोई हल नहीं मिल रहा। कैसे और कहाँ से शुरुआत करूं ?नंदिनी परेशान सी ,घर आ जाती है ,कुछ समझ नहीं आ रहा कि क्या करूं ?एक उम्मीद बनी थी वो भी टूट गयी। उसे घर में देखकर उसकी मम्मी बोलीं -तुम सुबह तो अपनी नौकरी पर चली जाती हो छुट्टी और बाक़ी समय कहाँ भटकती रहती हो ?अब भी तुम्हें अपने भविष्य की कोई चिंता नहीं है। तुम तो ऐसे घूमती रहती हो ,जैसे तुम्हारा कोई कहने -सुनने वाला ही नहीं रहा। तुम्हें अपने पापा का भी ध्यान नहीं, बेचारे कहते कुछ नहीं हैं किन्तु तुम्हारे जीवन को लेकर चिंतित रहते हैं। नंदिनी बोली -मम्मी ,मैं ऐसा कोई काम नहीं कर रही ,बल्कि एक उलझन है उसे सुलझाने का प्रयत्न कर रही हूँ। हम भी तो सुने कैसी उलझन है ?मम्मी ने पूछा। जब वो सुलझ जाएगी तब आपको भी पता चल जायेगा।
शाम को नन्दिनी प्रतिदिन की तरह ,बगीचे में टहलने गयी। आज चम्पा नितिन को घुमाने के लिए लाई और बोली -दीदी ,आज इसके साथ खेल लो ,कल से ये नहीं आएगा। क्यों ?नंदिनी ने पूछा। कल से, मैं नहीं आ पाऊँगी। क्या बात हो गयी, किसी ने मना कर दिया क्या या तुम कहीं जा रही हो ?चम्पा उसकी चिंता देखकर , बोली -दीदी ,परेशान न होना ,मेरे बदले, मेरी एक सहेली फुलवा आयेगी। जितने दिन भी मैं नहीं आऊँगी ,उतने दिनों के लिए मेरी जगह वो आएगी। नंदिनी ने गहरी साँस ली ,बोली -क्या वो तुम्हारी तरह ही ,ध्यान रखेगी ?हाँ दीदी ,आप उसकी चिंता न करो ,वो तो मुझसे ज्यादा पढ़ी भी है। मेरे ही कहने पर आ रही है वरना वो कहीं नहीं जाती ,चम्पा मुँह बिचकाते हुए और अपना महत्व जताते हुए बोली। नंदिनी बोली -वो तो तुम्हारा एहसान है कि तुम नितिन की इतनी फ़िक्र करती हो। नहीं दीदी ,वो तो आप अच्छी हो इसीलिए आपको ऐसा लगता है ,आप भली हो ,भले लोगों की भगवान भी सहायता करते हैं। उसकी बातों से नंदिनी को फिर से अपनी बातें याद हो आयीं ,मन ही मन बुदबुदाने लगी -पता नहीं ,भगवान मेरी मदद कब करेंगे ?मैंने तो कुछ किया भी नहीं और बिगड़ बहुत कुछ गया। मेरी तो ज़िंदगी ही तितर -बितर हो गयी। अब बस इसकी [नितिन की तरफ देखते हुए ] ज़िंदगी की सुरक्षा का प्रश्न है। पता नहीं कब ,कौन घात लगाए बैठा होगा ?कुछ देर तक खिलाकर उसने उन दोनों को भेज दिया।
आज वो भी उस घर के आगे से निकली ,इतना बड़ा घर और इसमें रहने वाले ,छिः! कितने छोटे दिल के हैं ?मेरे लिए जगह नहीं थी ,जिसकी जगह थी वो भी खाली हो गयी।मैं तो अब इस घर में कभी भी कदम न रखूँ ,कोई कहे तब भी ,ये घर मेरे प्रतीक का हत्यारा है। सोचते हुए ,उसने दाँत पीसे ,एक बार उस शैतान का पता चल जाये ,बस। उसे लग रहा था ,जैसे उसकी सभी समस्याओं की जड़ यहीं पर है उनके सुलझते ही सभी समस्याएं समाप्त। अगले दिन नंदिनी फिर से बगीचे में गयी किन्तु आज कोई नहीं आया ,उसे ध्यान आया चम्पा ने क्या कहा था ?मन ही मन बुदबुदाई -उसे नितिन को तो घुमाने लाना चाहिए था ,मैं भी देख लेती कैसी है वो ?अचानक उसके मन में प्रश्न कौंधा -आई भी होगी या नहीं ,उसके मन में बेचैनी सी होने लगी। कुछ देर टहलकर वो चली गयी। उधर चम्पा की जगह फुलवा ने ले ली। फुलवा चम्पा से ज़्यादा फुर्तीली और तेजी से काम करने वाली महिला थी ,परिवार के सभी लोगों का विश्वास जीत लिया। घर के सभी सदस्यों की जैसे चहेती हो गयी, बच्चे के ध्यान के अलावा भी ,अन्य कार्य भी कर देती थी। नंदिनी प्रतिदिन बगीचे में आती ,इसी उम्मीद के साथ ,शायद आज तो नितिन को देख सकूँ। इसी तरह एक माह बी ट गया। आज नंदिनी का दिल कहीं भी नहीं लग रहा, पता नहीं ,भगवान ने उसके लिए क्या सोचा है ?न ही नितिन अपने पास है न ही प्रतीक रहा। पता नहीं, किस ओर ज़िंदगी जा रही है ?कहीं से कोई सहायता भी नहीं ,फिर कैसे पता लगाऊँ ?कि कौन है वो हत्यारा ?
एक दिन सड़क पर भीड़ ही भीड़ थी। नंदिनी बगीचे से लौटते हुए भीड़ को देखकर रुक गयी और जानने का प्रयत्न करने लगी कि वहां क्या हुआ है ?तभी किसी को कहते सुना कि कल्पेशजी के बेटे रोहन को पुलिस पकड़कर ले गयी किन्तु किस कारण से ले गयी ?ये कोई नहीं जान पाया। नंदिनी ये बात सुनते ही थाने की ओर दौड़ी, किन्तु वहाँ भीड़ इतनी थी कि उसने जाना उचित नहीं समझा। वो घर वापस आ गयी। अगले दिन सुबह ही जल्दी तैयार होकर चल दी ,उसकी मम्मी ने पूछा -इतनी सुबह कहाँ जा रही हो ?नंदिनी चलते हुए बोली -आकर बताऊंगी कहकर वो चली गयी और सीधे ,वो उन्हीं महिला पुलिस के पास जा पहुंची। उसे देखते ही वो बोलीं -अब कैसे आना हुआ ?मैडम ,रोहन को पुलिस ने क्यों पकड़ा है ?वे बोलीं -क्या तुम समाचार -पत्र नहीं पढ़तीं ?उन्होंने सीधे नंदिनी से ही प्रश्न किया। नंदिनी बोली -मैडम ,मैंने आज का समाचार पत्र नहीं देखा ,जल्दी में सीधे इधर ही आ गयी।नंदिनी ने देखा, अंदर से चाय लेकर चम्पा आ रही है ,उसे देखकर नंदिनी बोली -तुम किसे अपनी जगह छोड़कर गयीं ?उसने एक दिन भी नितिन को नहीं घुमाया और तुम यहाँ पर काम में लगी हो। तुम्हारी सहेली फुलवा कहाँ है ?मैं तो उस घर के हालात भी नहीं जान पा रही। पता नहीं, पुलिस ने रोहन को क्यों बंदी बनाया है ?नितिन वहाँ अकेला होगा ,उसको कोई कुछ भी कर सकता है। चम्पा मुस्कुरा कर बोली -दीदी ,आप इतनी परेशान न हों ,नितिन बाबा ,सुरक्षित हैं। लीजिये ,पहले आप चाय पी लीजिये। नंदिनी ने पुलिस मैडम की तरफ देखा ,वो भी मुस्कुरा रही थी और बोली -तुम परेशान न हो ,प्रतीक का हत्यारा पकड़ा गया। कौन है वो ?नंदिनी एकदम खड़ी हो गयी। रोहन !उन मैडम ने सपाट जबाब दिया। क्या ?नंदिनी को तो जैसे विश्वास ही नहीं हुआ ,बोली -ये कैसे हो सकता है ?उसने तो नितिन को बाप का नाम दिया उसे अपने साथ रखा ,वो ही उसके बाप का हत्यारा, कैसे हो सकता है ?आपको कैसे पता चला ?कि वो ही है, उसका बड़ा भाई भी तो हो सकता है। ये तुम्हारी गलतफ़हमी है ,उसका भाई तो अपने काम में व्यस्त रहता है ,वो नौकरी के साथ कहीं और जगह व्यापार भी करता है। उसके पास इतना समय ही नहीं कि वो व्यर्थ की बातें सोचे। वो तो मेहनती और अपने परिवार से प्यार करने वाला व्यक्ति है। चम्पा ने जो तुम्हें बताया कि वो परेशान रहता है ,हां वो परेशान था किन्तु अपने भाई की मौत के कारण। वो उसके कमरे में जाता था ताकि कुछ पता चल सके कि प्रतीक ने ये क़दम क्यों उठाया ?वो अपने भाई को याद कर रोता था। नंदिनी उनकी बाते सुनकर बोली -मैंने उन्हें कितना ग़लत समझा ?इस चम्पा के कहने पर।
नंदिनी ने जिज्ञासावश पूछा -किन्तु मैडम ,पुलिस को कैसे पता चला? कि रोहन ही दोषी है ,मेरी सहायता के लिए , तो उस दिन आपने कुछ नहीं कहा ,फिर ये सब कैसे ?वो मैडम बोली -हमने तो उसी दिन से तुम्हारी मदद आरम्भ कर दी थी। वो कैसे ?नंदिनी ने पूछा। तुम्हारे जाते ही ,मेरे सीनियर से मेरी बात हुई और हमने सोचा ,यदि ये हत्या है तो सबूत भी वहीं मिलेंगे और मैं फुलवा बनकर उनके घर जा पहुंची। अब तो नंदिनी को और भी आश्चर्य हुआ क्या ?चम्पा की सहेली फुलवा ....... नंदिनी का आश्चर्य से मुँह खुला का खुला रह गया। वो चम्पा को उलहाना देते हुए ,बोली -तुमने भी मुझे नहीं बताया .चम्पा बोली -कैसे बताती ?मैडम ने मना कर दिया था। क्यों ?मैंने ही तो अपना शक़ ज़ाहिर किया था और मुझसे ही छुपाया ,वो शिकायत भरे लहज़े में बोली। ये हमारी गुप्त योजना थी ,तुम्हें बताते तो हत्यारा सतर्क हो जाता ,मैडम ने उसे समझाते हुए कहा। जबकि तुम तो रोहन पर ही विश्वास करती थीं ,तुम उसे हमारी सारी योजना बता सकती थीं। नंदिनी को लगा कि वो सही कह रहीं हैं ,उसने भी हाँ में गर्दन हिला दी। चाय पीते हुए बोली -आपको कैसे पता चला ? कि रोहन ही वो व्यक्ति है और वो क्यों उसके बच्चे को गोद लेगा ?मैडम बोली - तुम दोनों की योजना का ,रोहन को पहले से ही पता था ,वो प्रतीक की डायरी से सब जान लेता था उसने ही वो पुड़िया बदलकर ,तेज़ ज़हर रखा ताकि वो बचे ही न। नंदिनी की आँखों से अश्रु बहने लगे ,रोहन की उससे क्या दुश्मनी थी ,वो तो उसका सगा भाई था और अपने भाई पर विश्वास भी करता था। पैसा ,उपेक्षा ,लालच ये सब चीजें ही थीं उनकी जो वो दुकान है ,उसमें से बडे भाई ने तो हिस्सा लेने के लिए मना कर दिया ,उसने कुछ पैसे लेकर अपना नया व्यापार आरम्भ किया।दोनों भाई ही, दुकान के अधिकारी थे किन्तु उनके पिता हमेशा छोटे की प्रशंसा करते ,उसके कार्य से प्रसन्न रहते, जिस कारण रोहन के मन में ईर्ष्या घर कर गयी और उसने मौक़े का लाभ उठाकर ,अपने बदले को अंजाम दे डाला।
नंदिनी को तो जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ऐसा व्यक्ति कैसे अपने भाई का हत्यारा हो सकता है ?वो देर तक बैठी रोती रही ,तभी उसे नितिन का ख्याल आया ,बोली -क्या नितिन पर और मुझ पर हमले रोहित ने ही करवाए। हाँ ,किन्तु उसे मारने के लिए नहीं ,बस ध्यान भटकाने के लिए ताकि किसी को लगे कि कोई बाहर का है, जो ये हादसे करवा रहा है। नंदिनी ने अपने घर आकर सारी बातें अपने घरवालों को भी बताईं ,उन्होंने सुना, तो उन्हें भी विश्वास नहीं हुआ। अस्थाना जी को तो उसकी वो हरकतें ही याद आ रहीं थीं ,जब वो बदहवाश दौड़ता हुआ, उनके घर में आ गया था और नंदिनी को भला -बुरा कह रहा था।आज नंदिनी ने पहली बार प्रतीक के घर के अंदर कदम रखा और सीधे उसके माता -पिता के पास पहुंची। उन्होंने भी नंदिनी को पहली बार ही देखा था ,उसे देखकर उनके चेहरे पर प्रश्न थे। नंदिनी बिना देर किये ही बोली -मैं नंदिनी ,उसका नाम सुनते ही ,प्रतीक की मम्मी जोर -जोर से चिल्लाने लगी -अरे !मेरे बेटे को खा गयी ,दूसरे को जेल भिजवा दिया ,अब क्या लेने आई है ?मेरा आंगन तो सूना कर दिया ,तू अब क्या चाहती है या हमारी जान भी लेकर रहेगी। वे न जाने क्या -क्या कहती रहीं ?नंदिनी बैठी सुनती रही। अब नंदिनी ने अपना मन कठोर किया और पहले ही क्षमा याचना की ,बोली -माँजी मैंने आपके बेटे को नहीं खाया ,मैं तो उससे प्रेम करती थी और आज भी करती हूँ।हमें प्रेम में ''धोखा ''मिला आप लोगों से , उसकी जान आप लोगों के पैसे के अहंकार ने ले ली ,आप लोगों का घमंड, हमारे प्रेम से भी बड़ा था। उस पैसे के कारण ही एक भाई ने अपने भाई की हत्या की। आप लोगों के व्यवहार ने उसकी जान ली ,यदि दोनों भाइयों को समान प्रेम मिलता तो ये कभी न होता। लालच रोहन को जेल ले गया। मैंने तो प्रतीक से प्रेम किया था ,मुझे लालच नहीं था ,मैं तो अलग ही दुनिया बसाना चाहती थी किन्तु वो ही नहीं माना। कहता था -बड़ों के आशीर्वाद से अपनी नई ज़िंदगी की शुरुआत करेंगे किन्तु हमारा विश्वास ''धोखा '' खा गया , हमें आशीर्वाद तो नहीं मिला किन्तु जीवन भर का दुःख अवश्य मिला। वो रो रही रही थी , आज तो जैसे बादल ही फ़ट गया हो। मैंने तो आपके बच्चे के बदले ,अपना बच्चा दे दिया ,मेरे पास क्या रहा ?न ही प्रेम ,न ही उसकी निशानी और मैं सिर्फ़ आप लोगों को आज ये बताने आई हूँ ,माना कि हमने प्रेम किया ,कोई गुनाह तो नहीं किया था जिसकी सजा अपनी ज़िंदगी से चुकानी पड़ी। वो तो चला गया मुझे उम्रभर का ग़म देकर। मैं तो प्रतिदिन मरी हूँ। उसके मन में ज्वालामुखी धधक रहा था और लावा अश्रु के रूप में बह रहा था। लोग कहते हैं -प्रेम सबसे सुखद अनुभूति है किन्तु जब कोई प्रेम करता है तो उसका तिरस्कार करते हैं ,वो एहसास मर जाता है और उसका स्थान अहंकार ,समाज का डर ,जो कभी समय पर साथ नहीं देते ,ऐसे रिश्तेदारों का डर ,वो सब महत्वपूर्ण हो जाता है। यदि आप लोग मान जाते तो आज प्रतीक जिन्दा होता ,रोहन भी जेल नहीं जाता और मेरा बच्चा नितिन इस तरह अनाथों का जीवन न जीता। माना कि हमसे गलती हो सकती है किन्तु आप लोग तो बड़े थे ,आपने ही कितना समझा ?हमें समझने का प्रयत्न तो किया होता कहकर नंदिनी तेजी से बाहर आ गयी।
नंदिनी ने अपने काम पर जाना बंद कर दिया था ,उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था। अब चम्पा को भी पता चल गया था कि ये नंदिनी का अपना बेटा है ,वो आकर उसके बारे में बता जाती ,कभी -कभी मिलाने भी ले आती। कल्पेश जी ने भी नहीं रोका। इसी तरह छः माह बीत जाने पर एक दिन नंदिनी के लिए रिश्ता आया। माता -पिता के दबाव डालने पर ,वो उससे मिलने के लिए तैयार हो गयी ,वो और कोई नहीं दीपक ही था। नंदिनी उसे देखते ही बोली -तुम मेरे बारे में नहीं जानते ,दीपक ने मुस्कुराकर कहा -नानीजी ने सब बता दिया। मेरा बेटा !हाँ मुझे मालूम है ,जैसा तुम चाहोगी वैसा हो जायेगा। नंदिनी भी मुस्कुरा दी,वो परिवार की ख़ातिर पुनः प्रेम ड़गर पर चल पड़ी।
दोस्तों !मैंने ये उपन्यास पहली बार लिखा है ,अभी छोटा ही लिखने का प्रयास किया ,आप लोगों का आशीर्वाद और सहयोग रहा तो शीघ्र ही ,कुछ नया लेकर आउंगी। आप लोग अपना भरपूर सहयोग देते रहिये ताकि मैं आगे भी कुछ अच्छा लिखने का प्रयास कर सकूं ,आप लोगों की टिप्पणियाँ मेरे लेखन को उच्चतम शिखर पर ले जा सकती हैं ,ऐसी मैं उम्मीद करती हूँ ,आप लोग ही तो प्रेरणा स्रोत हैं। धन्यवाद !