Phone ya jaadu

आज के समय में जिसे देखो ,जहाँ देखो, हाथ में फोन लिये रहता है। गांव का हो या शहरी ,पढ़ा -लिखा हो या कम पढ़ा, सबके हाथों में फ़ोन यानि'' मोबाइल फोन '' दीखता है। कामवाली हो या फिर दफ्तरों में काम करने वाली, सभी की आवश्यकता है ये। आज की युवा पीढ़ी के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। युवा पीढ़ी ही क्यों ?अधेड़ उम्र ,बुजुर्ग भी इसे लिए बैठे रहते हैं। आज के समय में ये फोन नहीं वरन एक जादू की तरह या फिर भगवान बन गया है। जिस भी चीज़ को देखने की इच्छा हुई ,बटन दबाया और हाज़िर। घरेलू महिलाएं भी इससे अछूती नहीं हैं। आजकल लड़कियों का शिक्षा की ओर अधिक ध्यान दिया जाता है जिस कारण रसोईघर की बारीकियों को वो समझ नहीं पातीं ,तब रसोईघर के सुझाव इसी फ़ोन में ढूंढती हैं। नई -नई व्यंजन बनाने की विधियाँ ढूंढ़ती हैं और जिन्हें  व्यंजन बनाना आता है ,वे अपनी व्यंजन विधि डालती हैं। ''किट्टी पार्टी ''की अपनी तस्वीरें डालकर प्रसन्न होती हैं ,अपनी ''सैल्फी ''देखकर स्वयं ही अपने पर-रीझ जाती हैं ,इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता है कि हम घरेलू महिला होने के साथ कुछ कर भी सकती हैं

,हमारा रूप -यौवन अभी बरक़रार है। आज तो कामवाली नहीं आई ,यह भी एक चर्चा का विषय बन जाता है ,जिस- जिस के भी घर में वो कामवाली लगी है ,उसी के घर फोन की घंटी बज जाती है। अरे !दीपाली क्या तेरे घर पूजा आई ?दीपाली उदास स्वर में बोली -नहीं यार !मेरे तो रातभर के जूठे बर्तन पड़े हैं ,सारा काम यूँ ही पड़ा है यदि वो नहीं आई तो सब मुझे ही करना होगा ,उसने अपना दुःख व्यक्त किया। दीपा भी फ़ोन को कानों में लगाये, कामवाली के न आने की उम्मीद से ,अपना इधर -उधर फैला सामान समेटने लगी। बातों ही बातों में पता ही नहीं चला ,कब आधा घंटा बीत गया ?फिर अपनी बातों पर पूर्णविराम लगाते हुए कहती है ,जरा पूछना कृति के यहां आई है कि नहीं। इस तरह कृति के साथ भी आधा -पौना घंटा बीत ही जाता है और दोपहर के खाने के पश्चात ''फेसबुक ''और ''व्हाट्सएप ''कुछ पोस्ट डालीं कुछ ''लाइक ''भी कीं और कुछ संदेश पढ़े ही थे कि ससुर साहब की आवाज़ ने बतलाया कि शाम की चाय का समय हो गया। 
                     शाम की चाय बनाने चल दी किन्तु फ़ोन नहीं छोड़ा और सहेली से चैट ''करती जाती और मुस्कुराती जाती उधर चाय भी उबल रही थी। ये होती हैं भारतीय नारी, एक साथ कई  -कई काम कर गुजरती है। दूसरी तरफ ससुर साहब स्वयं भजन और ज्ञान की बातें पढ़ और सुन रहे हैं किन्तु बीच -बीच में किसी इश्तिहार में या किसी भी एप पर सुंदर ''अप्सराओं ''को देखकर अपनी आँखों को ठंडक दे लेते थे। मन ही मन सोच रहे थे ,सुंदरता आज भी विद्यमान है जिसे देख किसी का भी मन डोल जाये। फोन पर सभ्यता -संस्कारों से लिपटी पोस्ट डालते हैं ,स्त्रियों के कम वस्त्रों और छोटे होते वस्त्रों पर, अपनी टिप्पणी देते हैं किन्तु कुछ समय पश्चात उन अप्सराओं या 'मॉडल ''की तस्वीरों को'' जूम ''बड़ी करके देखते हैं। तभी उन्हें याद आता है ,बच्चे भी तो फ़ोन से ही पढ़ रहे हैं और चिंतित होते हैं --''कहीं ऐसी तस्वीरें देखकर उनकी पढ़ाई में विघ्न तो नहीं आ जाता होगा। अभी तो बच्चे हैं, किन्तु समय -समय पर ये तस्वीरें आना बच्चों की शिक्षा और भविष्य के लिए सही नहीं है। यही सोचकर अगले ही पल उठकर बच्चों को देखने जाते हैं कि पढ़ ही रहे हैं या फिर ..... हे भगवान !सोचा भी नहीं जाता ,आखिर घर के बड़े हैं ,उनका कर्त्तव्य बनता है कि आने वाली पीढ़ी का ध्यान रखा जाये। तभी वो सुंदर अप्सराएं अश्लील और वाहियात नज़र आने लगती हैं। फ़ोन पर बच्चों को खेलते देखकर उन्हें डाँटते हैं --''ये तुम्हारी उम्र है ,इस तरह समय बर्बाद करने की ,अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो, कहकर आ जाते हैं और वही खेल अपने फ़ोन में डालकर खेलने लग जाते हैं। तभी उनकी पत्नी आकर डांटती है ,ये क्या ?तुम भी बच्चों की तरह खेलने लग गए ,इस उम्र में बच्चे बने हो ,जाओ बाहर जाकर थोड़ा घूम भी आओ !

                  अब तो फोन पर समाचार भी आने लगे हैं ,जो व्यक्ति जैसा सोचता और चाहता है ,उसके लिए वही चीज हाज़िर हो जाती है। भगवान श्री कृष्ण ने कहा  भी है --''जाकि रही भावना जैसी ,प्रभु मूरत देखि तिन तैसी। यानि कि भगवान को आप जिस रूप में अथवा जिस भावना से  देखना चाहेंगे उसी रूप में वो दिख जायेंगे। इसी तरह फ़ोन भी हो गया है किसी से भी सम्पर्क साधना है तो तुरंत ही बटन दबाने की देर है ,नहीं अब तो जादू की तरह ''स्क्रीन ''को छूने की देर है और उस व्यक्ति से आमने -सामने ,लिखकर ,अथवा बातचीत करके सम्पर्क हो जाता है। अपने भाव या विचार किसी भी पोस्ट द्वारा लोगों तक पहुंचा सकते हैं। प्राचीन समय में हम छठी इंद्री की बातें करते थे कि कुछ चीजें  हम पहले से ही सोच लेते हैं अथवा'' टेलीपैथी ''द्वारा दूसरे व्यक्ति से मानसिक सम्पर्क साधते हैं जो कि हर कोई नहीं कर सकता था किन्तु फोन तो ऐसा है कोई भी -कहीं भी ,किसी से भी सम्पर्क साध सकता है। यदि कोई कलाकार है, तो अनेक कलाकृति और अन्य कलाकार मित्र भी मिल जायेंगे। यदि कोई संगीतकार और नृत्य में रूचि रखने वाला है ,तो अनेक ''वीडियो ''द्वारा नृत्य या कुछ भी हुनर सीख भी सकते हैं और सीखा भी सकते हैं। किसी कारण वश, किसी भी व्यक्ति  को अपनी कला का प्रदर्शन करने का मौका नहीं मिला ,अब इस फोन द्वारा ये सम्भव हो सका है ,गाकर अथवा नृत्य करके अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर  अपनी आत्मतुष्टि कर सकता है और इसका निर्णय सुनने अथवा देखने  वाली आम जनता ही करती है। '' लाइक ''के रूप में अपना प्यार देकर। 
                यदि किसी भी व्यक्ति में ''हुनर ''है उसके अंदर कुछ अपनी प्रतिभा को दिखाने का तनिक भी जज़्बा है, तो वो अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करता है ,यहां तक की, आज के समय में गृहणी भी सिर्फ़ चूल्हा -चौका तक ही सीमित नहीं रह गयीं हैं ,घर पर ही रहकर अपनी'' पाक -कला ''अथवा किसी भी प्रतिभा का जैसे लेखन कार्य ही, का प्रदर्शन  कर अपने भावों द्वारा व्यक्त करती  हैं। जिन लोगों से हम सालों -साल नहीं मिल पाते ,उनसे हम कुछ ही मिनटों में सम्पर्क कर लेते हैं। ''कोरोना काल ''में तो यह बहुत ही कारगर सिद्ध हुआ ,इन दिनों में लोगों के न मिलने पर भी ,उनसे सम्पर्क साधने ,सुख -दुःख बाँटने में सहारा बना हुआ था। अपने दुःख -दर्द ख़ुशी -परेशानी कोई भी भाव अपनी ''पोस्ट 'डालकर व्यक्त करते ,इसी तरह इस समय में अपने सुख -दुःख और समय सब बाँट रहे थे। लगता था ,जैसे ये अनजाने मित्र ही नहीं वरन ये सम्पूर्ण देश ही अपना घर नज़र आ रहा था, जिसमें सभी लोग साथ खड़े नज़र आते। ऐसे में बाहर जाने का तो प्रश्न ही नहीं उठता ,तब इसी फ़ोन से लोगों ने सीखा भी और सीखाकर भी अपना समय व्यतीत किया। घर पर रहकर ही साज -सज्जा सीखी और अपने को तंदुरुस्त रखने के सुझाव और योग भी सीखा। कोरोना काल ''में जिन लोगों को समय नहीं मिलता था उन्हें अपने -आपको समझने का ,अपने -आप से मिलने का मौक़ा मिला,उन्होंने अपनी प्रतिभा को बाहर आने दिया। इस फ़ोन ने तो समझो, एक तरह से विद्यालयों की छुट्टी कर दी। आजकल बच्चे इसी के माध्यम से पढ़ते हैं और अन्य विषयों की जानकारी भी लेते हैं। 
                   पहले व्यक्ति उठता था ,तो भगवान को हाथ जोड़ता था और फिर अपने परिवार जनों के संग अपना समय व्यतीत करता किन्तु अब तो उठते ही पहले फ़ोन देखता ,घर में किसी को सुबह की राम -राम अथवा नमस्ते हो या नहीं किन्तु दोस्तों को अवश्य ही राम -राम और सुबह की नमस्ते के संदेश भेजता है। आज जिस  भी दोस्त का जन्मदिन है उसे घर बैठे ही बधाई दे दी जाती है। कई बार तो दोस्त को बधाई देने के लिए बारह बजे तक जगे रहेंगे कि सबसे पहले मैं ही बधाई दूंगा या दूंगी। भगवान श्री कृष्ण बारह बजे पैदा हुए ,उनके जन्मदिन पर बच्चे चाहे न जागें किन्तु दोस्त के लिए जागते रहेंगे ,चाहे उसका जन्मदिन दोपहर बाद हो। उस दिन अच्छा मनोरंजन हो जाता है किन्तु पिता की जेब ढीली हो जाती है। इस फोन के लाभ हैं तो हानि भी हैं ,कुछ बुराइयां भी लेकर आया है ,जहां देव हैं वहीं असुर भी ,की रीत पर ,आजकल बच्चे सारा दिन फोन पर लगे रहते हैं। फ़ोन पर लगे रहने के कारण उनकी आँखों को हानि होगी। बच्चा पढ़ता -पढ़ता ,कब ,क्या  देखने लग जाये ,पता ही न चले ?कब खेलने लग जाये ,इसका भी ध्यान रखना पड़ता  है ?घर -घर फ़ोन होने पर प्रतियोगिता भी बढ़ी है। पढ़ाई की ही नहीं वरन ''वीडियो ''बनाने की ,जिनमें अश्लीलता परोसने ,अनुचित और अनर्गल शब्दों का प्रयोग होता है। जिन शब्दों को माता -पिता या परिवार का कोई भी सदस्य नहीं बोल पाता, वो चीजें बच्चा फोन से ही सीख जाता है। कम समय और कम मेहनत से ज्यादा पैसा कमाने के साधन और एप ढूंढते हैं। अब परिवार के लोग एक ही घर में रहकर भी दूर हैं। अपने -अपने फोन में लगे रहते हैं। इस फोन के'' माया जाल ''में फंसकर भृमित हुए रहते हैं और न जाने किस दुनिया में खो जाते हैं ?

                     धार्मिक व्यक्ति आध्यात्म से संबंधित ,ज्ञान की बातें और भजन सुनते और पढ़ते हैं। कहानीकार और लेखक अपने मन की भड़ास ,ज़िंदगी के अनुभव वितरित करते हैं। ये   फोन विभिन्न -विभिन्न व्यक्तियों को विभिन्न -विभिन्न लोक में ले जाता है। किसी की रोजी -रोटी का माध्यम है ,किसी के लिए मनोरंजन का साधन ,किसी के लिए ज्ञान का भंडार है ,किसी के लिए संबंधों के जुड़े रहने का साधन।आज के समय में ये आवश्यक आवश्यकता बन गया है।  व्यक्ति का अपना व्यक्तित्व है और अपनी सोच, कि इस फोन का प्रयोग किस रूप में करता है ?आज के युग में ये एक छोटी सी वस्तु भगवान की तरह  समझो या फिर कोई 'जादू ,सबकी इच्छाओं की पूर्ति करती है ,बस इच्छानुसार छूने की आवश्यकता है और तुम उसी लोक में विचरण करते नज़र आओगे। 






















laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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