Vivah se pahle

जी हाँ ,दोस्तों  !विवाह तो सभी करते हैं।  विवाह पर तो अनेक रस्में होती हैं किन्तु विवाह से पहले भी कुछ रस्में होती हैं ,आज मैं आप लोगों को उन वाक्यों से परिचित कराता हूँ। उस दौर से लगभग सभी गुजरते हैं किन्तु कभी उस और ध्यान ही नहीं गया। कुछ बरस पहले श्रीमति जी ने मुझसे कहा -सुनो जी ,अब अपनी बिटिया बड़ी हो गयी है ,अब उसके लिए लड़का देखना आरम्भ करना होगा। मैंने कहा -अभी इतनी जल्दी क्या है ?अभी बच्ची ही तो है। वो बोलीं -आपको क्या मालूम ,लड़के भी घर बैठे ,यूँ ही नहीं मिल जाते। ठीक है ,देखते हैं कहकर मैं बाहर चला गया।  ये बात आयी गयी हो गयी लगभग छह माह पश्चात मुझे श्रीमती जी का क्रोध झेलना पड़ा -इस आदमी की लापरवाही से मैं परेशान हूँ ,कितने दिनों पहले  मैंने कहा था कि लड़की के लिए ,लड़का ढूँढना शुरू करो ,पर नहीं ,इनके कान  पर तो ''जूं ही नहीं रेंगती ''यूँ सोचे बैठे हैं कि हमारी बेटी तो कहीं  की राजकुमारी है। लड़के स्वयं ही स्वयंवर के लिए टूट पड़ेंगे। श्रीमतीजी का इतना बड़ा भाषण सुनकर मैंने प्रतिक्रिया की और अपने दो -चार जानने वालों से बातें की और कहा -कोई ठीक सा  लड़का नज़र में हो तो बताना। मेरी इस प्रतिक्रिया से वो संतुष्ट हो गयीं किन्तु देर सवेर मौहल्ले के लड़के-लड़कियों और आस -पास के भी किस्से अपनी सहेली से सुनकर आतीं और मुझे सुनातीं। 

                    आप नहीं जानते ,ज़माना कितना ख़राब है ?तिवारी जी की लड़की पढ़ -लिखकर नौकरी करने लगी और वहीं कोई ग़ैर बिरादरी का लड़का देखकर विवाह कर लिया। ऐसा ही होगा ,जब माता -पिता लापरवाही करेंगे, समय पर बच्चों का विवाह नहीं करेंगे ,बच्चे  तो करेंगे ही।सक्सैना के बेटे ने तो विवाह से ही इंकार कर दिया ,पढ़ -लिख गया किन्तु ज़िम्मेवारी उठाने को तैयार नहीं ,डरता है कि ख़र्चे कैसे संभालेगा ?अग्रवाल जी की बेटी भी हमारी बिटिया से तीन बरस बड़ी है किन्तु वो भी विवाह करने के लिए तैयार नहीं ,कहती है ,कौन घर -गृहस्थी के झंझट में पड़े ?जब मैं खुद कमा रही हूँ ,स्वतंत्र हूँ ,तब मैं विवाह करके किसी के घर जाकर  रोटी क्यों  सेकूं और उसके बच्चे पालूं, ये सब मुझसे नहीं होगा। तभी तो मैं कहती हूँ ,इससे पहले कि हमारी बेटी को बाहर की हवा लगे ,उससे पहले ही उसके'' हाथ पीले कर देते हैं।  '' जिस बात का ड़र था ,वो ही हुआ ,मैं इतनी देर से चुपचाप ,उनकी बातें सुने जा रहा था। किन्तु मौहल्ले की खबरें समाप्त होते ही मेरा नंबर आ गया। बोलीं -कहीं कोई लड़का देखा ?मैंने समाचार पत्र पढ़ते हुए कहा -दो -चार लोगों से कह तो रक्खा है ,पर अभी तक किसी का जबाब नहीं आया। किन्तु मेरा जबाब सुनते ही श्रीमती जी मेरे नज़दीक अवश्य आ गयीं और मेरे हाथ से समाचार -पत्र छीनते हुए बोलीं -सब तुम्हारे लिए खाली बैठे हैं ,तुम यहाँ आराम से ये पेपर पढ़ो ,हम तुम्हारी लड़की के लिए लड़का ढूंढते हैं। किन्तु थोड़ा शांत होते हुए बोलीं -जब तक हम नहीं चलेंगे ,तब तक कोई लड़का नहीं ढूँढेगा या बताएगा। मैं उनकी बेतुकी बातों से तंग आकर बोला -कहाँ जाऊँ मैं ,किससे  पूछूँ ?
                  मेरी परेशानी भी श्रीमती जी को समझ आयी और वो शांत हो गयीं। शहर में तो सब अपने -अपने में व्यस्त रहते हैं। नौकरी वाले तो सुबह गए ,शाम को घर आते हैं ,किसी को कहाँ इतनी फुरसत है ?गाँवों में तो दूर गाँव में रहकर भी बड़े -बुजुर्ग, किसका बेटा -बेटी ब्याह लायक हो गए ?ध्यान रखते थे और बता भी दिया करते थे। यहां तो किसी को अपने बच्चों का ही पता रहे ,तो समझो गनीमत है। रसोईघर से वो बोले जा रहीं थीं ,मैं उनकी परेशानी समझ रहा था ,पर मैं भी क्या कर सकता था। लगभग तीन दिन बाद वो खुश होती हुई मेरे पास आयीं ,बोलीं  -मैंने इस समस्या का हल निकाल लिया है। मैं कुछ समझा नहीं और पूछा -कौन सी समस्या ?अरे ,इतनी जल्दी भूल गए। अपनी बेटी के लिए लड़का ढूँढने की समस्या। ओह !हाँ, जैसे मुझे बहुत पुरानी और भूली बात याद आयी हो। फिर मैंने सोचा -पता नहीं कौन सा तीर मारा है ?ऐसा मैं बोल नहीं सकता था ,बस सोचा। मैंने पूछा -क्या हल निकाला है ?मेरी सहेली ने फोन में एक'' एप ''बताया है ,उसी में हम लड़के देख सकते हैं और वो मुझे दिखाने लगीं। मैंने ज्यादा ध्यान तो नहीं दिया किन्तु मैं संतुष्ट अवश्य हो गया ,चलो मेरी सिरदर्दी समाप्त हुई। अब श्रीमती जी अपने घर के काम निपटाकर लड़के देखने बैठ जातीं और मुझे बताती रहतीं। उन्हें दामाद भी  सजीला ,नौजवान चाहिए था क्योंकि उन्हें तो मैं पसंद ही नहीं था फिर भी मुझसे विवाह किया। इस विषय में हमारी कई बार बहस हुई। उनके अनुसार मैं उनकी नहीं उनकी मम्मी की पसंद था। अपनी मम्मी के लिए मुझसे  विवाह  किया। इसीलिए अब वो अपनी बेटी का विवाह अपनी पसंद के लड़के से कराना चाहती हैं या यूँ समझो इतिहास अपने को दोहरा रहा है। लड़के की तस्वीर देखने के पश्चात ,वो देखतीं क्या कर रहा है ?कितना कमाता है ?गोत्र क्या है ?जब सब ठीक लगता तब जन्मपत्री मिलाई जाती। जन्मपत्री न मिलने पर पुनः वही प्रक्रिया आरम्भ हो जाती। तब मैंने महसूस किया ,इसमें भी बड़ी सिरदर्दी है। श्रीमती जी जब देखते -देखते थक जातीं तो सो जातीं। कभी -कभी अपनी झुंझलाहट मुझ पर भी उतार देतीं। क्या मेरी ही बेटी है ?आपकी कोई जिम्मेदारी नहीं। कभी -कभी आप भी देख लिया कीजिये। 
                    ऐसा नहीं मैं करना नहीं चाहता ,मैंने करने का प्रयत्न भी किया और एक दिन बैठकर मैंने अपनी पसंद के लड़के चुने भी किन्तु श्रीमती जी ने मेरी सभी पसंद को ठुकरा दिया। इतने लड़के या लड़की तो हमने अपने लिए भी नहीं देखे जितने अब देखने पड़ रहे हैं। अपने लिए देखते तो ढंग की जगह विवाह होता। ऐसे वाक्य तो देर -सवेर सुनने को मिल जाते। इतने अथक परिश्रम के पश्चात एक लड़का सभी को पसंद आ गया। यह खबर सबको बतायी गयी। सभी ख़ुश थे। अब उसके घर परिवार की तहक़ीकात आरम्भ हुई। रिश्तेदारी में ही किसी ने बताया कि लोग झूठ भी बहुत बोलते हैं ,अच्छे से तहक़ीक़ात करना। बातें करते -करते उसके पति  ने भी हस्तक्षेप किया तो पता चला कि वो भी अपने पति से परेशान है। बोली -मेरे पिता ने भी  ठीक से पूछताछ की होती तो आज मैं यहाँ न होती। बस पिता ने क्या देखा ?लड़का नौकरी कर रहा है। तभी हमारी सासु माँ का फोन आया ,वो अपनी बातें समझाने लगीं ,पीछे से हमारे ससुर साहब ने टोक दिया कि नहीं ये सब नहीं करना। तभी तेज़ आवाज़ में हमारी सासु माँ का स्वर गूंजा -इस आदमी में तो बुद्धि ही नहीं ,पता नहीं मेरे पिता ने इनमें क्या देखा ? तब मुझे एहसास हुआ कि पति नाम की प्रजाति इन स्त्रियों पर थोपी गयी हैं। कोई भी किसी की पसंद का पति नहीं था फिर भी रिश्ते निभाए जा रहे हैं। हर वर्ष'' करवा चौथ ''मनाती हैं ,लम्बी उम्र की कामना करती हैं। एक दिन मैंने भी कह दिया कि अभी किसने रोका है ?जहां चाहो विवाह कर सकती हो। तब मेरा मुँह देखने लगीं ,बोलीं -ऐसे कैसे चली जाऊँ ?

तुम तो यही चाहते हो कि मैं निकलूँ और तुम दूसरी ले आओ। अपने जीते -जी ऐसा नहीं होने दूँगी ,अब तक निभाया है ,आगे भी निभा लूँगी। औरत तो त्याग के लिए ही बनी है ,अब नहीं छोड़ने वाली और गले से लिपट गयीं। औरत को समझना भी बड़ी' टेढ़ी खीर'है। कहते हैं ,औरत धरती की तरह धैर्यवान ,सहनशील ,त्यागमयी और भी न जाने कितने उपमान दिए जाते हैं किन्तु हम जो इन महिलाओं का क्रोध ,उनकी झुंझलाहट ,उनकी इच्छाओं की पूर्ति के लिए क्या -क्या नहीं कर गुजरते ?हमारे लिए  कोई सहनशील ,धैर्यवान जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं करता। ख़ैर छोड़िये ,ये सब हम पति तो हुए ही अपमानित होने के लिए हैं। और अब एक ऐसा ही  पति अपनी पुत्री के लिए ढूँढना है क्योंकि आजकल के बच्चों की सहनशीलता कम जो हो गयी है। इसी कारण ये रिश्ते लम्बे समय तक नहीं टिक पाते। 
                    ख़ैर छोड़िए ,ये सब ,बेटी के लिए लड़का भी मिला और रीति -रिवाज़ों के साथ विवाह भी हुआ किन्तु मैं तो आज भी उस बेचारे लड़के के फ़ोन का इंतज़ार करता हूँ जब वो अपने ससुर से अपने दिल का दर्द कहे ,तब मैं समझूँगा कि अब ये सही रूप में पति के पद  के क़ाबिल हो गया है और मैं उसका दर्द बाँट सकूँगा। 






















 


 


















laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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