Akele hum akele tum

 रामलाल जी के दो बेटियाँ और एक बेटा है ,बेटा अभी छोटा है, पढ़ाई कर रहा है। रामलाल जी समय रहते अपनी दोनों बेटियों का विवाह कर देते हैं। दोनों ही अपने -परिवार में खुश हैं। रामलाल जी भी प्रसन्न ही थे किंतु ये ख़ुशी उनकी ज्यादा समय न रह सकी। वो परेशान थे ,किन्तु कर भी क्या सकते थे ?ये तो ऊपर वाले की माया है। इसमें इंसान कुछ नहीं कर सकता किन्तु इंसान भी तो उसका ही बनाया हुआ है जो अज्ञानता वश मोह में फँसता है और परेशान होता है। ये तो उस कुदरत का बनाया मायाजाल ही ऐसा है ,आदमी अपने को कितना भी ज्ञानी -ध्यानी मान ले किन्तु उसके बनाये मायाजाल से बच नहीं सकता। इसी तरह रामलाल जी भी परेशान हैं ,दुःखी हैं , कारण उनकी बेटी मयूरी ,वो देखने में जितनी सुंदर है उतनी ही परेशान। भगवान भी एक -एक चीज सोच -समझकर देता है। एक चीज देता है तो दूसरे में कमी कर देता है। मयूरी के विवाह को चार बरस हो गए ,उसके दो बेटियां ही हैं। कम्मो बड़ी वाली ,उसका तो न जाने

विवाह भी कैसे -कैसे हुआ ?और विवाह होते ही उसके  तो जैसे भाग्य खुल गए ,आज वो तीन -तीन बेटों की माँ है। लीला जी बोलीं -लो जी ,ये आपकी बेटी ने क्या अनर्थ कर दिया ?अब कहती है -बेटा हो या बेटी अब वो और बच्चे नहीं बनाएगी। मैंने कितना समझाया ?तेरी बड़ी बहन के तो तीन बच्चे हैं ,वो भी लड़के। क्या पता ?इस बार भगवान तेरी सुन ले। और एक  बेटा ही दे दे। बिन बेटे तो गति  भी नहीं ,पर पूरी जिद्दी है किसी की नहीं सुनती। मैंने तो दामाद जी से भी कहकर देख लिया। वे भी कहते हैं -जैसी इसकी इच्छा। 
                    मयूरी सुंदर होने के साथ -साथ खुले विचारों की लड़की है ,उसे इस बात का दुःख नहीं कि उसके दो बेटियां हैं वरन उसे इस बात की ख़ुशी है कि दोनों पढ़ने में होशियार और बुद्धिमान हैं। जब उसकी सास और माँ दोनों ने ही उसे समझाया कि अबकि बार और देख ले ,क्या  पता बेटा  जाए ? वो बोली -इस बात का आप कैसे आश्वासन दे सकती हैं ?कि बेटा ही होगा। बेटी हुई तब क्या ?उसके इस प्रश्न पर दोनों समधिन एक -दूसरे का मुँह देखने लगीं। जाहिर में  कम्मो मयूरी से अफ़सोस जताती किन्तु मन ही मन प्रसन्न रहती कि मेरे तीन बेटे हैं। भगवान ने मुझे रूप नहीं दिया  तो क्या ?क़िस्मत तो अच्छी पायी है।समय कहाँ ठहरता है ?वो तो चलता रहता है ,उसका काम ही आगे  बढ़ना है। रामलाल जी ने बेटे का विवाह किया और बहु बेटे के संग नौकरी पर ही चले गए और फिर कभी नहीं  आये।मयूरी के  बच्चे बड़े हो गए दोनों बेटियां पढ़ -लिखकर नौकरी करने लगीं और समय रहते लड़के ढूंढकर उनके ''हाथ भी पीले कर'' दिए। कम्मो के भी दो बेटों का विवाह हो गया। दोनों ही बाहर अलग -अलग शहरों में काम करते। बिन ब्याहा  कम्मो का एक बेटा ही रह गया। उसके  लिए भी लड़की ढूंढी जा रही है। दोनों बहनें ही अपनी -अपनी गृहस्थी में व्यस्त रहतीं ,देर -सवेर किसी भी  तीज -त्यौहार पर मिलना होता। अबकि बार तो मयूरी की छोटी बेटी के  विवाह पर कम्मो आई थी। दुःख जताते हुए बोली -अब तुम अकेली रह जाओगी ,तभी -माँ और पिताजी चाहते थे कि एक बेटा हो जाता ये  अकेलापन न  खलता। मयूरी लापरवाही से बोली -दीदी ,मुझे इस बात का कोई दुःख नहीं किन्तु इस बात की ख़ुशी अवश्य है कि मैंने समय रहते अपनी ज़िम्मेदारी पूर्ण कीं। रही बात बेटे की ,तो तुम्हारे बेटे, क्या मेरे बेटे नहीं ?वे भी मेरे अपने ही हैं। कम्मो को कभी -कभी उसकी इन बातों पर मन क्रोध आता। कितनी आसानी से सब कह देती है ?कम्मो उससे हमदर्दी जताना चाहती किन्तु वो मौक़ा ही नहीं देती। कुछ महीनों की मेहनत के पश्चात ,कम्मो की भी सारी ज़िम्मेदारियाँ पूर्ण हुईं। दोनों बहुएं तो पहले ही अपने पतियों  के साथ रहती हैं। तीसरा बेटा ज्यादा पढ़ा नहीं ,उसका वहीं काम करा दिया। किन्तु तीसरी बहु कुछ महीने तो ठीक रही किन्तु वो भी अब अपना अलग घर  चाहती किसी न  किसी बात पर घर में झगड़े हो जाते। इन गृहक्लेश से  बचने के लिए ,छोटा भी अपनी पत्नी को लेकर अलग हो गया। 

                    दोनों बहुएं तो पहले ही जा  चुकी थीं , तीसरी भी चली गयी। सब अपने -अपने परिवार में मस्त रहते , कम्मो तीन -तीन बेटों और बहुओं  के  होने के बाद भी अकेली  रह  गयी। अब उसे एहसास हुआ कि मयूरी अपनी जगह ठीक थी। वो बेटियों के विवाह के पश्चात भी उनसे मिलने चली जाती और बेटियॉँ भी अपने -अपने पतियों के साथ  मिलने आ जातीं किन्तु बहुएँ तो बेटों को ऐसे लेकर गयीं कि उन्हें तीज -त्यौहार में भी अपने माता -पिता से मिलने का भी  समय  नहीं ,क्योंकि उन्हें लगता कि जो भी मिलने गया  ,उसी पर माता -पिता की ज़िम्मेदारी न आ  जाये। एक दिन मयूरी आई ,बोली - आप भी अकेली रह गयीं और मैं भी चलो कहीं घूम आते हैं। जो सपने हम उस समय पूर्ण नहीं कर पाये उन्हें पूर्ण करते हैं। जब वो लोग हमारे बग़ैर प्रसन्न रह सकते हैं तो क्या हमें किसी ने रोका है ?बाक़ी समय रोकर तो नहीं बिताना। हम एक -दूसरे का सहारा बनेंगीं। अब कम्मो भी उसकी बातों से सहमत थी और दोनों बहनें अपनी ख़ुशी के लिए घर से बाहर घूमने चल दीं। 

























laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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