Vishvas [part 2]

 मधु को बाज़ार में उसका पुराना दोस्त पराग  मिला ,वो मधु से उसका फ़ोन नंबर और उसके घर का पता पूछने लगा किन्तु मधु सोचने लगी- कि उसे पता या फ़ोन नंबर देना उचित होगा। घर में किसी को पता चला तो क्या ज़बाब देगी ?क्या कहेगी , कौन है ये ?यदि इसने ही मेरा किसी भी तरह अनुचित लाभ उठाया। पराग उसे सोचते देख बोला -क्या हुआ ?क्या सोच रही हो ?दो भई ,अब मिले हैं तो सोच में पड़  गयीं। फिर कुछ सोचकर उसने उसे अपना पता दे दिया और अपने घर की तरफ चल दी।वैसे पराग  से मिलकर उसे हल्का लग रहा है ,इसीलिए नहीं कि वो उससे मिली बल्कि वो जो दुःख के रसातल में चली गयी थी ,उससे थोड़ा उबर आयी। उसे लग रहा था जैसे उसकी तंद्रा टूटी हो। उसे अब अपने कॉलिज की बातें  स्मरण हो आयीं थीं। उसके चाहने वालों में से पराग भी एक था ,पढ़ाई में होशियार होने के साथ -साथ हँसमुख भी था ,उसके व्यवहार के कारण मन ही मन उसे पसंद करने लगी थी। उसका प्रेम परवान चढ़ता, उससे पहले ही पता नहीं कैसे,? पिताजी को पता चल गया। इससे पहले कि वो कुछ समझ पाती ,समाज और अपनी बिरादरी का , भाई -बहनों के जीवन ,उनके भविष्य का वास्ता देकर ,गैर बिरादरी वाले' पराग'  से मिलने नहीं दिया। इस तरह हमारी प्रेम कहानी शुरू होने से पहले ही समाप्त हो गयी। 

                  एक सप्ताह बाद उसका फोन आया ,मैं तुमसे मिलने आ रहा हूँ। पहले तो मधु घबरा गयी ,किसी को क्या ज़बाब दूंगी ?कौन है ये ,क्या रिश्ता है ? न जाने  कितने सवाल ,उसकी और लहराते हुए ,उसे नज़र आये। किसी  भी अनजान स्त्री -पुरुष के मिलने का  ये समाज क्या अर्थ लगाता है ?न जाने कितनी अर्थपूर्ण नजरें उनका पीछा करती नजर आती हैं। हो भी क्यों न ?कोई भी किसी से यूँ ही तो मिलने नहीं आ जायेगा। बिना स्वार्थ के तो रिश्तेदार भी बात न करें ,फिर ये तो ,घरवालों की नज़र में गैर पुरुष है ,पता नहीं भगवान मेरी क्या परिक्षा लेना चाहते हैं ?वैसे तो मैं मना कर दूँ ,तो कोई जबरदस्ती तो नहीं करेगा किन्तु मैं नहीं चाहती कि वो किसी भी तरह मुझे कमजोर समझे और उसका लाभ उठाने का प्रयत्न करे। प्रत्यक्ष में बोली -हाँ -हाँ क्यों नहीं ,आ जाओ!मधु ने  घर में सबको बता दिया- कि मेरे घर के पास किराये पर रहता था और अचानक उससे मुलाकात हो गयी तो मैंने उसे खाने पर बुला लिया। वो अपने बीवी -बच्चों के साथ दोपहर के खाने पर आ गया। खाना खाने के बाद ,प्रकाश भी उससे बातें करने लगे और मैं अपनी रसोई   समेटने लगी। उसके बाद अक्सर उसके फोन आते ,मैंने सोचा- पिछली बातों को भूल हम दोस्त बनकर तो रह ही सकते हैं किन्तु वो फोन पर उल्टी -सीधी बातें ही करता। मधु ने उसे समझाने का प्रयत्न करते हुए कहा -ऐसी बातें तुम्हें शोभा नहीं देतीं ,तो वो हँस देता। 
               हमारे बड़े -बुजुर्गों ने ठीक ही कहा है -'आग और फूँस का कोई मेल नहीं 'जहाँ तक मैंने जाना पुरुष को स्त्री में एक ही रूप नज़र आता है ,वो भी पराई स्त्री में। कभी -कभी 'वीडियो कॉल 'करता  और बातें करते -करते कुछ न कुछ अश्लील हरकत कर जाता। मधु उसकी हरकतों  पर उसे डपट भी देती किन्तु वो हँसकर नज़र अंदाज़ कर देता। परिवार की तरफ से बेफ़िक्र थी क्योंकि उनसे उसे  पहले ही मिलवा चुकी थी ,कभी -कभी लगता, कहीं मैंने उसे फोन नंबर देकर कोई गलती तो नहीं कर दी। एक दिन अचानक वो बोला -तुम्हारे पति कैसे हैं ?मधु बोली -ठीक ही हैं ,क्यों ?पराग  बोला -मुझे नहीं लगता कि वो  तुमसे प्यार करता है। क्यों ,तुम्हें ऐसा क्यों लगता है ?फिर विवाह को इतने वर्ष हो गए ,क्या अब भी ऐसा ही प्यार बना रहेगा ,मुस्कुराकर मधु ने  बात का रुख़ मोड़ना चाहा। पराग जैसे बात को आगे बढ़ाना चाहता था ,बोला -मैं जो बात कहना चाह रहा हूँ ,वो तुम समझकर भी समझना नहीं चाहती। पहली बार जब तुम्हें बाज़ार में देखा था ,तब भी तुम परेशान थीं, किन्तु  मुझे देखते ही अपनी परेशानी छुपा गयीं। मैं थोड़ा बहुत तुमसे मज़ाक कर लेता हूँ किन्तु मुझे तुम्हारी परेशानी दिखती है ,उसने मधु के चेहरे पर नजरें गड़ा दीं। मधु ने सोचा -शायद ये अपनी हरकतों से मुझे इसी बहाने ख़ुश रखने का प्रयत्न करता हो और मैं इसे ग़लत समझ बैठी। पहले सोचा -इसे बता दूँ किन्तु दूसरे ही पल मन ने कहा -इस पर कैसे विश्वास करूं ?इसी असमंजस में उसने फ़ोन रख दिया। एक सप्ताह तक वो कोशिश करता रहा। एक दिन मधु ने सोचा -ये भी शादीशुदा है और मेरा भी परिवार है ,फिर इसे अपनी उलझन बताने में कोई बुराई भी नहीं है और उसने अपने मन की सोच उसे बता दी। उसने मधु से संवेदना जताते हुए फ़ोन रख दिया। 

                       एक दिन पराग का  फ़ोन आया बोला -आज बाहर मिलने आ जाओ ,कब तक फोन पर ही बातें करते रहेंगे ,कभी मिलने भी आ जाओ !मधु ने -सोचेंगे ,कहकर फ़ोन रख दिया। शाम को उसका फिर से फोन आया -मैं कल तुम्हारा ',प्रयाग रेस्त्रां 'में तुम्हारा इंतजार करूँगा। मधु ने मन ही मन सोचा -क्या मुसीबत है ,इतनी बातें तो फ़ोन पर हो ही जाती हैं ,अब क्या नई 'राम कहानी' है ?वो बोला -मैं कुछ नहीं जानता ,तुम्हें बस आना होगा। अगले दिन वो तैयार होकर वो उससे मिलने चल दी ,आज उसने सूट अथवा जीन्स न पहनकर साड़ी पहनी ,यदि पराग  के मन में कुछ भी गलत सोच हो तो बदल जाये ,मुझे देखकर उसे लगे कि मैं किसी की पत्नी हूँ। वो  मधु को साड़ी में देख चौंका -वाह !कहकर चुप हो गया। हमने खाना खाया ,फिर पूछा -यहाँ किसलिए बुलाया है ?वो बोला -अभी तुम्हारे लिए ,कुछ विशेष इंतजाम किया है ,देखोगी तो चौंक जाओगी और वो उसका हाथ पकड़कर लगभग खींचते हुए एक जगह ले गया ,वो उस रेस्तरां का एकांत था ,वहां उसने बड़े जोश में स्वागत किया वो स्थान सजा हुआ था और कई उपहार भी थे। मधु बोली -ये सब क्यों ?आज तो मेरा जन्मदिन भी नहीं है। पराग बोला -इतना सब तो मैं तुम्हारे लिए कर ही सकता हूँ। मधु बोली -नहीं ,मुझे ये सब पसंद नहीं ,परिवार और बच्चों को छोड़कर इस तरह आना भी मुझे ठीक नहीं लग रहा था ,वो तो तुम्हारी ज़िद पर मैं आ गयी ,यदि मुझे पता होता तुम ये सब करोगे तो कभी न आती। पराग  बोला -मैंने इतना सब तुम्हारे लिए किया और तुम उस परिवार और पति के लिए परेशान हो ,जहाँ तुम्हें कोई पूछता नहीं ,कोई तुम्हें नहीं चाहता। उसने मधु का हाथ पकड़ते हुए कहा -अब तो हम मिल सकते हैं। उसकी सोच और उसका इरादा भाँपकर मधु ने अपना हाथ छुड़ाया। वो समझ गयी कि वो मेरी दोस्ती को  ग़लत रास्ते ले जा रहा है और आज इसका यहीं अंत करना होगा। 
                मधु बोली -ये तुम्हारी गलतफ़हमी है कि मैं अपने पति के व्यवहार से परेशान होकर ,रोने के लिए तुम्हारा कंधा तलाशुँगी ,या तुम्हारे सीने पर सिर रखकर ,अपना मन हल्का करूंगी और तुम मेरी कमज़ोर भावनाओं का लाभ उठाओगे। हालांकि उनके व्यवहार से कभी -कभी मैं परेशान होकर कमज़ोर पड़  जाती हूँ ,उसी कमज़ोरी में मैंने तुम्हें अपनी बात बताकर ग़लती की। इसका मतलब ये नहीं कि मैं उनके साथ गद्दारी करूं ,बेवफ़ाई करूं। उनका व्यवहार उनके साथ है ,वे प्यार करते हैं या नहीं ,मैं तो उनसे प्यार करती हूँ और मैं अपने प्यार के साथ बेवफ़ाई नहीं कर सकती। परिवार मेरा है ,बच्चे मेरे हैं। तुम क्या कर रहे हो ?तुम तो स्वयं अपनी पत्नी को धोखा दे रहे हो। तुम्हारे इस व्यवहार से दो घर उजड़ जायेंगे ,न जाने कितनों का विश्वास टूटेगा। मैंने गलती की जो तुमसे मिली और तुम्हें नज़दीक आने का मौक़ा दिया और अपनी परेशानी तुमसे बाँटी। आज से हम कभी नहीं मिलेंगे ,फोन भी मत करना ,कहकर वो तेज़ी से बाहर निकल गयी। ये 'पुरुष जाति 'भी कैसी नीच है ?यूँ ही नहीं  समाज संदिग्ध नज़रों से देखता। किसी को मजबूर या कमज़ोर देखा नहीं कि कंधा देने के बहाने अपनी हवस मिटाने का साधन जुटाने लगते हैं। असल में इन्हें किसी की भी भावनाओं से कोई सरोकार नहीं। मैंने अपने मन की दो -चार बातें क्या कह दीं ?अपनी 'स्वार्थ सिद्धि' के लिए साधन जुटाने लगा। ये तो उस औरत का भी सगा नहीं जो इसे अपना सुहाग माने बैठी है ,इस पर विश्वास  करती है। सोचते -सोचते अचानक उसके मुँह से निकला -धोखेबाज़ कहीं का। 
               इसी उधेड़बुन में कब घर आ गया ?उसे याद ही नहीं रहा वो अंदर गयी। बच्चे कैरम खेल रहे थे ,सास अपने धारावाहिक में लीन थीं। आज प्रकाश जल्दी आ गए थे ,अंदर ही लेटे थे। बोले -कहाँ गयीं थीं ?मधु बोली -यहीं पास में किसी सहेली के पास। आज पराग के मन की गंदगी देखकर उसे प्रकाश सीधा और सच्चा लग रहा था किन्तु मन में अनेक प्रश्न घुमड़ रहे थे ,सोचा अभी नहीं फिर कभी पूछूँगी।  एक दिन मधु बोली -न ही आपके  पास मेरे लिए समय है ,न ही कभी हम साथ में बाहर घूमने गए ,जैसे और सभी पति अपनी पत्नियों का ख़्याल रखते हैं ,उनकी इच्छाएँ पूर्ण करते हैं और एक आप हो लापरवाह पति ,ऐसे पतियों की पत्नियों के अक्सर पैर फ़िसल जाया करते हैं, कहकर मधु प्रकाश का चेहरा तकने लगी। प्रकाश बोला -मैं अपने कर्तव्य का निर्वाह करता हूँ ,ये मेरी सोच और मेरी ज़िंदगी है। तुम्हारी अपनी ज़िंदगी है जो मुझसे जुडी है किन्तु तुम्हारी सोच पर तुम्हारे जीवन पर मेरा अधिकार नहीं। मेरा कर्त्तव्य है कि मैं तुम्हारी खुशियों का ख़्याल रखूँ ,वो मैं प्रयत्न करता हूँ कि तुम्हें किसी बात की कमी न हो। तुम्हारा अपना स्वतंत्र जीवन है ये नहीं कि मुझसे विवाह होने के बाद तुम मेरे ही इशारों पर चलो। अब उस जीवन के साथ तुम क्या करती हो ?ये तुम्हारी अपनी सोच है। रही बात कदम  बहकने की ,तो जिनके क़दम बहकने होते हैं ,वो अधिकार और प्यार दिखाते भी बहक जाते हैं। मैंने कभी तुम्हें कहीं आने -जाने से टोका या रोका, इतना तो इस  रिश्ते में विश्वास होना ही चाहिए मैंने तुम पर विश्वास करके अपना घर सौंपा अपना जीवन तुम्हारे हवाले किया किन्तु तुम्हारी स्वतंत्रता मैं छीनना नहीं चाहता ,जो चाहो कर सकती हो, ये जीवन तुम्हारा है, बस विश्वास मत तोडना। सही राह चुननी है या ग़लत ये तुम्हारा अपना कर्म है। तुम कोई ताले  में रखने वाली वस्तु नहीं हो। 

              प्रकाश बोले जा रहे थे -मुझे इस बात पर गर्व है कि तुमने भी हर कदम पर मेरा साथ निभाया। फिर एकाएक बोले -तुम औरतें भी अज़ीब हो ,जब विश्वास करें तब भी परेशान ,अधिकार जतायें ,हर छोटी -छोटी बात का ध्यान रखें तो परेशान ,फिर कहती हैं -हमें आज़ादी से जीने नहीं देते ,हमें कैद कर लिया ,आज़ादी दो तो हमारा ख़्याल ही नहीं रखते। आज प्रकाश पहली बार इतनी देर बोले ,उनकी बातें सुनकर मैं निरुत्तर हो गयी। उनके सोच की गहराई को मैं ही नहीं समझ पाई। 



















laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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