आज बहुत दिनों बाद उसके कदम उस गांव में पड़े हैं ,जिस गाँव को उसने आज से छब्बीस साल पहले छोड़ दिया ,वो अपने बेटे के साथ बस से उतरी। बस उन्हें छोड़ अपने गंतव्य की ओर बढ़ चली। उसने किसी अनजान की तरह अपने चारों ओर नज़र दौड़ाई ,सड़क सुनसान थी ,कोई इक्का -दुक्का दूर कहीं जाता नज़र आया। बेटे ने उसका और अपना थैला उठाया और आगे बढ़ चला वो उसके पीछे -पीछे हो ली। वो उन सड़कों और गलियों को पहचानने का प्रयत्न कर रही थी, जिन्हें वो वर्षों पहले छोड़कर जा चुकी थी । आज तो कोई भी उसे नहीं देख रहा ,न ही कोई जानता होगा। इतने वर्ष बाद गांव में काफी बदलाव भी आ गया
कच्चे रास्ते अब ईंटों के खड़ंजे बन गए, कोई किसी घर के आगे खड़ा दिख जाता तो किसी अनजान की तरह देखता रहता या कोई पूछ भी बैठता -किस घर के मेहमान हो या किसके घर जाना है ?विद्या ने तो घूँघट निकाल लिया था क्योंकि वो उसकी ससुराल जो थी , वो तो कुछ नहीं कहती, न ही किसी को पहचान पायी ?बस उत्तम ही जबाब दे देता या उसका चेहरा देखकर ही लोग समझ जाते क्योंकि उसका चेहरा हूबहू अपने पिता से जो मिलता है। उत्तम एक हवेली के आगे जाकर रुका और बोला -घर आ गया। विद्या ने थोड़ा घूँघट उठाकर उस हवेली को नज़र भर देखा तो उसकी आँखें फटी की फटी रह गयीं। क्या शानदार हवेली लग रही है? किसी दुल्हन की तरह सजी थी और पूरी हवेली में पत्थर लगा था।वो अंदर गयी ,कई अनजान नज़रों ने उसे घूरा और उसे एक कमरे में बिठा दिया गया। थोड़ी देर बाद एक महिला जो उस घर में कार्य करती थी। शर्बत और अल्पाहार देकर वो चली गयी। विद्या को लगा, कि जैसे वो भी उसे गहरी नज़रों से देख रही थी किन्तु बिना कुछ बोले चली गयी। उत्तम और विद्या ने शर्बत पीया थोड़ी सफ़र की थकावट उतरी तो उत्तम अपनी मम्मी से बोला -आप आराम करिये ,मैं घेर [मर्दानी जगह ]में जाता हूँ।
कच्चे रास्ते अब ईंटों के खड़ंजे बन गए, कोई किसी घर के आगे खड़ा दिख जाता तो किसी अनजान की तरह देखता रहता या कोई पूछ भी बैठता -किस घर के मेहमान हो या किसके घर जाना है ?विद्या ने तो घूँघट निकाल लिया था क्योंकि वो उसकी ससुराल जो थी , वो तो कुछ नहीं कहती, न ही किसी को पहचान पायी ?बस उत्तम ही जबाब दे देता या उसका चेहरा देखकर ही लोग समझ जाते क्योंकि उसका चेहरा हूबहू अपने पिता से जो मिलता है। उत्तम एक हवेली के आगे जाकर रुका और बोला -घर आ गया। विद्या ने थोड़ा घूँघट उठाकर उस हवेली को नज़र भर देखा तो उसकी आँखें फटी की फटी रह गयीं। क्या शानदार हवेली लग रही है? किसी दुल्हन की तरह सजी थी और पूरी हवेली में पत्थर लगा था।वो अंदर गयी ,कई अनजान नज़रों ने उसे घूरा और उसे एक कमरे में बिठा दिया गया। थोड़ी देर बाद एक महिला जो उस घर में कार्य करती थी। शर्बत और अल्पाहार देकर वो चली गयी। विद्या को लगा, कि जैसे वो भी उसे गहरी नज़रों से देख रही थी किन्तु बिना कुछ बोले चली गयी। उत्तम और विद्या ने शर्बत पीया थोड़ी सफ़र की थकावट उतरी तो उत्तम अपनी मम्मी से बोला -आप आराम करिये ,मैं घेर [मर्दानी जगह ]में जाता हूँ।
उत्तम के जाने के विद्या लेट गयी और सोचने लगी -कभी ये घर मेरा ससुराल था ,मेरा अपना घर था,मैं इस घर की मालकिन थी। आज इस घर में मैं किसी अज़नबी ,पराये की तरह आई हूँ। सोचते -सोचते वो छब्बीस वर्ष पहले की यादों में पहुंच गयी। विद्या !विद्या !माँ उसे पुकार रही थी ,वो चुपचाप माँ के पास आकर खड़ी हो गयी। माँ ने पलटकर देखा ,तो बोलीं -तू अपनी शरारतों से बाज नहीं आएगी ,कहाँ घूमती रहती है ?इतनी देर से तुझे ढूँढ रही हूँ। अब तो आ गयी ,बोलो, क्या कहना है ?विद्या बोली। मुझे क्या कहना है ?कुछ घर के काम -धाम भी सीख ले ,कल को मुझे ही चार बातें सुनने को मिलेंगीं कि माँ ने बेटी को कुछ नहीं सिखाया। विद्या बोली -माँ, मैं पढ़ रही हूँ ,नौकरी करुँगी और राज करूंगी तुम्हारी बेटी घर के कामकाज़ के लिए नहीं बनी। उसने अपनी बात रखी तो माँ बोली -मानती हूँ ,तू पढ़ रही है ,तेरे सपने बहुत बड़े हैं ,अब लोगों की सोच बदल रही है ,बेटियों को पढ़ा भी रहे हैं, किन्तु सभी की सोच नहीं बदली है फिर पता नहीं ससुराल में , किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ जाये ?काम तो अपने को आना ही चाहिए। पढ़ाई के साथ -साथ लड़की को घर का काम आता है कि नहीं , ये भी देखते हैं ,माँ ने चिंता व्यक्त की। विद्या लापरवाही से बोली -कुछ नहीं होगा ,होगा वही जो मैं चाहूँगी।
कुछ महीनों बाद, विद्या के लिए एक पढ़े -लिखे ,सरकारी नौकरी में कार्यरत लड़के का रिश्ता किसी ने बताया। माँ बहुत ही प्रसन्न थी कि बहुत ही पैसे वाले हैं ,बेटी तो घर बैठे राज करेगी ,उन्हें भी पढ़ी -लिखी लड़की ही चाहिए। सब कुछ ठीक था ,बस घर को संभालने वाली लड़की चाहिए क्योंकि लड़के की माँ नहीं थी। दो भाई और पिता , छोटा सा परिवार था ,दौलत भी बेशुमार थी। माँ तो खुश थी कि मेरी बेटी के तो भाग [भाग्य ]ही खुल गए। विद्या को भी लड़का पसंद आ गया किन्तु वो अपनी बात कहना चाहती थी कि मैं शादी के बाद नौकरी करूंगी किन्तु उस समय लड़के -लड़कियों को मिलवाया नहीं जाता था ,सब चीज़ें बड़े -बूढ़े तय करते थे। बच्चों को तो सूचना दी जाती थी कि विवाह तय हो गया। नियत समय पर विद्या ब्याहकर अपनी ससुराल आ गयी। कितना !ज़ेवर चढ़ा था उसे ,जब अपने मैके गौने की रस्म निभाने आयी थी तो उसकी भाभी की तो आँखें फटी की फटी रह गयी थीं और वो भी अपने को किसी सेठानी से कम नहीं मान रही थी ,उसकी सहेलियाँ तो उसकी किस्मत से जल -भुन गयीं।सब कुछ अच्छा ही था किसी भी बात की कोई कमी नहीं थी ,उसे तो बस कहने भर की देर थी और सामान उसके सामने हाज़िर हो जाता। ऐसी आरामदायक ज़िंदगी कौन जीना पसंद नहीं करेगा ?किन्तु विद्या को फिर भी कुछ कमी खटक रही थी। मायके से ससुराल ,ससुराल से मायके का सफ़र करते, विवाह को एक वर्ष कब बीत गया? पता ही नहीं चला। हां ,इस बीच एक खुशखबरी और मिली, कि विद्या माँ बनने वाली है। घर के सभी लोग प्रसन्न थे किन्तु विद्या को पता नहीं क्यों ख़ुशी नहीं हुई ?
उसके ख़ुश न होने की बात, प्रतीक से भी छुपी नहीं रह सकी। प्रतीक ने इसका कारण पूछा -तब वो बोली -मैं अभी और पढ़ना चाहती हूँ और नौकरी भी करना चाहती हूँ ,मैं अभी माँ नहीं बनना चाहती। प्रतीक ने समझाया -'जो हो रहा है ,होने दो ,रही बात पढ़ने की, वो तो तुम अब भी पढ़ सकती हो। घर के काम का तो कोई दबाब नहीं रहेगा। घर में ही बैठकर अपनी बाक़ी की शिक्षा पूर्ण कर सकती हो ,मैं सारा इंतजाम कर दूंगा। सुनकर विद्या को अच्छा लगा और खुश हो गयी। वो'' व्यक्तिगत रूप'' से शिक्षा ग्रहण करने लगी। समय आने पर उत्तम ने जन्म लिया ,सारा घर खुशियों से झूम उठा।विद्या ने भी अपने मायके जाकर अपनी परीक्षा दी। परीक्षा के बाद ,उसे फिर से इच्छा हुई कि अब मुझे नौकरी करनी है और उसने अपनी इच्छा प्रतीक को बताई। प्रतीक बोलै -अभी उत्तम छोटा है ,उसे सम्भल जाने दो ,तब देखेंगे। अभी उत्तम को किसके ऊपर छोड़कर जाओगी ?उस समय तो विद्या चुप रही किन्तु प्रतीक परेशान हो गए। उनकी परेशानी का कारण न ही उत्तम था ,न ही विद्या। उनकी परेशानी का कारण विद्या और प्रतीक के पिता की सोच थी। उसे पता था, कि पिताजी विद्या को कभी भी नौकरी की इज़ाजत नहीं देंगे। अपनी यही समस्या उसने अपनी सास को भी बतलाई थी, तब उन्होंने ही सुझाव दिया था- कि कह देना, अभी उत्तम की ठीक से परवरिश करो ,घर गृहस्थी में पड़ जाएगी तो नौकरी का सारा भूत उतर जायेगा।'' माँ भी कैसी होती हैं ?अपनी बेटी को पालती -पोषती हैं ,उसके सुखी भविष्य की कल्पना करती हैं किन्तु उसके सपनों को बांध देती हैं ,उसके सपनों का उनकी नज़र में कोई मूल्य नहीं। उड़ान भरने देती हैं किन्तु उस उड़ान की एक सीमा निश्चित कर देती हैं और वो सीमा ससुराल की दहलीज़ तक होती है। बेटी तो पराई हो जाती है किन्तु दामाद अपना हो जाता है ,उसके और उसके परिवार की बातों का मूल्य होता है किन्तु बेटी को सिखाया जाता है ,अब वो घर तेरा अपना है वे लोग तेरे अपने हैं यहाँ तक तो सही लगता है किन्तु उन लोगो के लिए अपने सपने ,अपने अरमान भुला दो, ये कहाँ तक सही है ? तब वो माँ भी अपनी नहीं रह जाती। वो अपनी बेटी के सुखी भविष्य को नज़र में रख समझौते का परामर्श देती है क्योंकि उसने ज़िंदगी को जिया होता है उसकी दूरदर्शिता उसे ये सब करने के लिए विवश करती है कि बेटी के सुखी जीवन के लिए बेटी का विरोधी हो जाना पड़ता है।''
विद्या ने फिर से अपनी बात प्रतीक के सामने रखी और बोली -अब वो एक वर्ष का हो गया है उसका इंतज़ाम मैंने कर दिया है ,अब आप बस मुझे नौकरी करने की इजाज़त दे दो। प्रतीक ने अनमने भाव से कहा -ठीक है ,मैं पिताजी से बात करता हूँ ,मैंने तुम्हें बताया नहीं कि उनकी इजाज़त होगी तभी तुम जा सकती हो किन्तु अपने सपनों के सामने विद्या को सब कुछ बड़ा आसान लग रहा था और वो बोली -इसमें पिताजी को क्या परेशानी होगी ?उनकी पढ़ी -लिखी बहु नौकरी भी कर रही है। प्रतीक चुप रहे ,शायद वो अपने को ,पिताजी के सामने बोलने के लिए तैयार कर रहे थे। अगले दिन बड़े गुस्से में, किन्तु शांत होते हुए ,बोले -बहु ,हमारे यहाँ बहु -बेटियाँ बाहर जाकर काम नहीं करतीं। भगवान का दिया सब कुछ है, हमारे घर में। पहले तो हमारे यहां शिक्षा की ही इजाज़त नहीं थी ,अब समय के साथ हमने भी अपनी बेटियों को पढ़ाया ,बहु भी पढ़ी -लिखी लाये। शिक्षा का ये अर्थ नहीं, कि नौकरी ही की जाये। अपने घर को सुचारु रूप से चलाना आना चाहिए, इतना बड़ा घर है उसकी जिम्मेदारी समझो। तुम्हारी सास जब तक थी ,तब सब संभाला। किसको क्या देना है ,क्या लेना है ?वो तो इतनी पढ़ी भी नहीं थी तब भी सब अच्छे से संभाला था। सारा हिसाब मुँहज़बानी कर लेती थी। मैं भी चाहता हूँ ,तुम भी नौकरी का ख़्याल छोड़ घर को सम्भालो।
कहकर पिताजी चले गए और विद्या अपने कमरे से बाहर निकलकर आयी ,वहीं से खड़े -खड़े वो अपने ससुर की बातें सुन रही थी, पर्दा करती थी ,न ही उनसे बोलती थी इसीलिए चुपचाप सुनती रही और प्रतीक के आने का इंतजार करती रही। शाम को उसने सारी बातों से प्रतीक को अवगत कराया। खाना खाते हुए प्रतीक बोले -मैं पहले ही जानता था कि वो नौकरी करने की इज़ाजत नहीं देंगे ,अब तुम भी ये ख़्याल त्याग दो ,ये ही हमारे जीवन के लिए अच्छा होगा। विद्या लगभग चीख़ते हुए से बोली -मैंने इतनी पढ़ाई की ,मेहनत की क्या इसलिए कि घर में बैठकर रोटी सेकूं, घर सम्भालूं ?क्या यही मेरे जीवन का उद्देश्य है ?मेरे सपने कोई महत्व नहीं रखते। मैं अपने आत्मसम्मान के साथ जीना चाहती हूँ तो इसमें किसी को क्या परेशानी हो सकती है ? क्रमशः
कहकर पिताजी चले गए और विद्या अपने कमरे से बाहर निकलकर आयी ,वहीं से खड़े -खड़े वो अपने ससुर की बातें सुन रही थी, पर्दा करती थी ,न ही उनसे बोलती थी इसीलिए चुपचाप सुनती रही और प्रतीक के आने का इंतजार करती रही। शाम को उसने सारी बातों से प्रतीक को अवगत कराया। खाना खाते हुए प्रतीक बोले -मैं पहले ही जानता था कि वो नौकरी करने की इज़ाजत नहीं देंगे ,अब तुम भी ये ख़्याल त्याग दो ,ये ही हमारे जीवन के लिए अच्छा होगा। विद्या लगभग चीख़ते हुए से बोली -मैंने इतनी पढ़ाई की ,मेहनत की क्या इसलिए कि घर में बैठकर रोटी सेकूं, घर सम्भालूं ?क्या यही मेरे जीवन का उद्देश्य है ?मेरे सपने कोई महत्व नहीं रखते। मैं अपने आत्मसम्मान के साथ जीना चाहती हूँ तो इसमें किसी को क्या परेशानी हो सकती है ? क्रमशः
विद्या क्या नौकरी कर सकी या नहीं ,उसे अपना गांव यानि ससुराल क्यों छोड़ना पड़ा ?इतने वर्षों कहाँ रही और छब्बीस साल बाद किस उद्देश्य से आई ?इसको जानने के लिए पढ़िए अगला भाग।