Umar

'' उम्र'' बढ़ती और ज़िंदगी घटती नज़र आती है। 
 हर वर्ष मनाते हैं ,जन्मदिन ,
 हर वर्ष ज़िंदगी कम होती नज़र आती है। 
 अंधकार से भरा गहरा ,कुँआ है ज़िंदगी ,
 ये धुंध की तरह ,गहरी होती नज़र आती है। 
 आज ,कल ,परसों न जाने कब ?जीया ,
 अब तो ज़िंदगी , उजाड़ दुनिया सी नज़र आती है। 
'' उम्र ''बढ़ती और ज़िंदगी घटती नज़र आती है। 
 बरसों हुए ,ज़िंदगी जीने की चाह में ,

 ' मौत 'ही बस हमदर्द ,दोस्त ,नज़दीक नज़र आती है। 
 कमबख़्त !ज़िंदगी को ठीक से जिया ही नहीं ,
 अब तो दूर खड़ी ,मुस्कुराती नज़र आती है। 
 हर वर्ष ज़िंदगी ,कम होती नज़र आती है। 
 इस ज़िंदगी को बड़े क़रीब से देखा हमने ,
 बड़ी नखरीली ,बेदर्द ,बेरहम नज़र आती है। 
'' उम्र'' बढ़ती और ज़िंदगी घटती नज़र आती है। 
 बड़ी शिदद्त से चाहा इसको ,ये कभी अपनी न हुयी। 
' बेवफ़ा 'ज़िंदगी फिर भी ख़ूबसूरत नज़र आती है। 
  उम्र बढ़ती और ज़िंदगी घटती नज़र आती है। 
  रुला देती है ,ज़िंदगी ,ख़ुशामद कराती  है ,
  कभी -कभी ,छोटी- छोटी खुशियों में नज़र आती है। 
 '' उम्र ''के इक पड़ाव में ,'अलविदा 'कहती नज़र आती है।
  हर वर्ष ज़िंदगी कम होती नज़र आती है। 
 '' उम्र ''बढ़ती और ज़िंदगी घटती नज़र आती है। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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