'' उम्र'' बढ़ती और ज़िंदगी घटती नज़र आती है।
हर वर्ष मनाते हैं ,जन्मदिन ,
हर वर्ष ज़िंदगी कम होती नज़र आती है।
अंधकार से भरा गहरा ,कुँआ है ज़िंदगी ,
ये धुंध की तरह ,गहरी होती नज़र आती है।
आज ,कल ,परसों न जाने कब ?जीया ,
अब तो ज़िंदगी , उजाड़ दुनिया सी नज़र आती है।
'' उम्र ''बढ़ती और ज़िंदगी घटती नज़र आती है।
' मौत 'ही बस हमदर्द ,दोस्त ,नज़दीक नज़र आती है।
कमबख़्त !ज़िंदगी को ठीक से जिया ही नहीं ,
अब तो दूर खड़ी ,मुस्कुराती नज़र आती है।
हर वर्ष ज़िंदगी ,कम होती नज़र आती है।
इस ज़िंदगी को बड़े क़रीब से देखा हमने ,
बड़ी नखरीली ,बेदर्द ,बेरहम नज़र आती है।
'' उम्र'' बढ़ती और ज़िंदगी घटती नज़र आती है।
बड़ी शिदद्त से चाहा इसको ,ये कभी अपनी न हुयी।
' बेवफ़ा 'ज़िंदगी फिर भी ख़ूबसूरत नज़र आती है।
उम्र बढ़ती और ज़िंदगी घटती नज़र आती है।
रुला देती है ,ज़िंदगी ,ख़ुशामद कराती है ,
कभी -कभी ,छोटी- छोटी खुशियों में नज़र आती है।
'' उम्र ''के इक पड़ाव में ,'अलविदा 'कहती नज़र आती है।
हर वर्ष ज़िंदगी कम होती नज़र आती है।
'' उम्र ''बढ़ती और ज़िंदगी घटती नज़र आती है।