becheni

कैसी ,ये बेचैनी है ?
क्या  ?
मिलने की आस बंधी है। 
या ,
बिछुड़ने का दर्द ,जिसे पाया नहीं। 
या ,
अनजाने ही कोई मिला है ,मुझको। 

या ,
मैंने छोड़ दिया उसको ,मात्र 'हास 'के साथ। 
तिलस्म बना है ,ये कैसा ?
समझ सकूँ न उसको' मैं '
क्या ?वो मेरी बेचैनी का कारण  है। 
शायद !
उसको पाया मैंने ,
फूलों में ,पेड़ों में ,
आज ,कल और परसों में ,
अपनों में ,परायों में ,
भूली थी, मैं जिसको ,
दर्द का रिश्ता बना है ,उससे। 
क्या? पा जाऊँगी उसको। 
यही सोच' मैं ',बैठी थी। 
उससे गुस्से से  ऐंठी थी। 
आंख मूँद ,
पाया मैंने उसको अपने में। 
अनजान खड़ी ,
पूछा मैंने ,कौन तुम ?
प्रकाशपुंज !
तेरी बेचैनी का कारण। 
बोल उठी ,मुझसे वो ऐसे। 
अनेक दर्द समेटे हों , जैसे। 
मैं तुममें  हूँ ,तुम मुझमें हो ,
सुना! आर्तनाद तुम्हारा। 
रोक सकी , न मैं अपने को। 
भुला दिया था ,तुमने मुझको ,
बढ़ी बेचैनी ,तुम्हारी थी। 
मुझे नहीं पहचाना ,पगली !
मैं ,मन की शांति ,
वो पवित्र आत्मा ,
जिसे कहते हो' परमात्मा '
चाहती हो ,मुझको  पाना ,
पड़ेगा तुम्हें 'सुकून 'गँवाना। 






















laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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