कैसी ,ये बेचैनी है ?
क्या ?
मिलने की आस बंधी है।
या ,
बिछुड़ने का दर्द ,जिसे पाया नहीं।
या ,
या ,
मैंने छोड़ दिया उसको ,मात्र 'हास 'के साथ।
तिलस्म बना है ,ये कैसा ?
समझ सकूँ न उसको' मैं '
क्या ?वो मेरी बेचैनी का कारण है।
शायद !
उसको पाया मैंने ,
फूलों में ,पेड़ों में ,
आज ,कल और परसों में ,
अपनों में ,परायों में ,
भूली थी, मैं जिसको ,
दर्द का रिश्ता बना है ,उससे।
क्या? पा जाऊँगी उसको।
यही सोच' मैं ',बैठी थी।
उससे गुस्से से ऐंठी थी।
आंख मूँद ,
पाया मैंने उसको अपने में।
अनजान खड़ी ,
पूछा मैंने ,कौन तुम ?
प्रकाशपुंज !
तेरी बेचैनी का कारण।
बोल उठी ,मुझसे वो ऐसे।
अनेक दर्द समेटे हों , जैसे।
मैं तुममें हूँ ,तुम मुझमें हो ,
सुना! आर्तनाद तुम्हारा।
रोक सकी , न मैं अपने को।
भुला दिया था ,तुमने मुझको ,
बढ़ी बेचैनी ,तुम्हारी थी।
मुझे नहीं पहचाना ,पगली !
मैं ,मन की शांति ,
वो पवित्र आत्मा ,
जिसे कहते हो' परमात्मा '
चाहती हो ,मुझको पाना ,
पड़ेगा तुम्हें 'सुकून 'गँवाना।
