उन्होंने कहा --
थोड़ा बड़ों का कहना मान लोगी ,
थोड़ा बड़ों का कहना मान लोगी ,
तो तुम्हारा क्या जायगा ?
मम्मी की दो -चार बातें सुन लोगी ,
तो तुम्हारा क्या जायेगा ?
अपनों का मान -सम्मान कर लोगी ,
तो तुम्हारा क्या जायेगा ?
घुघँट थोड़ा नीचे खिसका लोगी ,
तो तुम्हारा क्या जायेगा ?
मैं स्वच्छंद ,नई उमंगों संग ,नीले अंबर में उड़ूँ ,
तो तुम्हारा क्या जायेगा ?
परम्पराओं के साथ ,अपनी भी ,कहीं चलाऊँ ,
तो तुम्हारा क्या जायेगा ?
रीति -रिवाज़ों की बंदिशों में न बंधु ,
तो तुम्हारा क्या जायेगा ?
मैं सारा दिन रसोईघर में लगी रहूँ ,
कभी तुम भी हाथ बटाओ ,तो तुम्हारा क्या जायेगा ?
कहीं कोई ,कभी मुझको कुछ कहे ,उसमें -
तुम मेरा साथ दोगे तो तुम्हारा क्या जायेगा ?
मेरे सपनों को ,मेरे अरमानों को नई उड़ान दो ,
तो तुम्हारा क्या जायेगा ?
मैं सूट ,साड़ी छोड़ अपनी पसंद के कपड़े पहनूँ ,
तो तुम्हारा क्या जायेगा ?
क्यूँ एहसास कराते हो ,मुझे रह -रहकर ,
कि तुम ही इस घर के रहनुमा ,रहबर हो ,
कभी मुझे भी एहसास कराओ ,
तो तुम्हारा क्या जायेगा ?
मेरी जिंदगी तुम से जुडी ,पर मुझे मेरे होने का ,
एहसास कराओ ,तो तुम्हारा क्या जायेगा ?
मेरे आत्मसम्मान को ठेस न पहुँचे ,
मैं स्वाभिमान के साथ जी लूँगी ,
तो तुम्हारा क्या जायेगा ?
जिंदगी की उलझनों में उलझी मैं ,
इन उलझनों को मेरे साथ सुलझाओगे ,
तो तुम्हारा क्या जायेगा ?
मैं आँचल में तारे भर ,तितलियों संग उड़ान भरूँ ,
तो तुम्हारा क्या जायेगा ?