tumhara kya jayega

 उन्होंने कहा --
थोड़ा बड़ों का कहना मान लोगी , 
                         तो तुम्हारा क्या जायगा ?
मम्मी की दो -चार बातें सुन लोगी ,
                        तो तुम्हारा क्या जायेगा ?
अपनों का मान -सम्मान कर लोगी ,
                         तो तुम्हारा क्या जायेगा ?
घुघँट थोड़ा नीचे खिसका लोगी ,
                        तो तुम्हारा क्या जायेगा ?
मैं पूछती हूँ --
मैं स्वच्छंद ,नई उमंगों संग ,नीले अंबर में उड़ूँ ,
                            तो तुम्हारा क्या जायेगा ?
परम्पराओं के साथ ,अपनी भी ,कहीं चलाऊँ ,
                             तो तुम्हारा क्या जायेगा ?
रीति -रिवाज़ों की बंदिशों में न बंधु ,
                              तो तुम्हारा क्या जायेगा ?
मैं सारा दिन रसोईघर में लगी रहूँ ,
कभी तुम भी हाथ बटाओ ,तो तुम्हारा क्या जायेगा ?
कहीं कोई ,कभी मुझको कुछ कहे ,उसमें -
          तुम मेरा साथ दोगे तो तुम्हारा क्या जायेगा ?
मेरे सपनों को ,मेरे अरमानों को नई उड़ान दो ,
                                     तो तुम्हारा क्या जायेगा ?
मैं सूट ,साड़ी छोड़ अपनी पसंद के कपड़े पहनूँ ,
                                      तो तुम्हारा क्या जायेगा ?
क्यूँ एहसास कराते हो ,मुझे रह -रहकर ,
कि तुम ही इस घर के रहनुमा ,रहबर हो ,
कभी मुझे भी एहसास कराओ ,
                                      तो तुम्हारा क्या जायेगा ?
मेरी जिंदगी तुम से जुडी ,पर मुझे मेरे होने का ,
           एहसास कराओ ,तो तुम्हारा क्या जायेगा ?
मेरे आत्मसम्मान को ठेस न पहुँचे ,
मैं स्वाभिमान के साथ जी लूँगी ,
                                    तो तुम्हारा क्या जायेगा ?
जिंदगी की उलझनों में उलझी मैं ,
इन उलझनों को मेरे साथ सुलझाओगे ,
                                     तो तुम्हारा क्या जायेगा ?
मैं आँचल में तारे भर ,तितलियों संग उड़ान भरूँ ,
                                      तो तुम्हारा क्या जायेगा ?

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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