chrcha

आदमी का जीवन जब तक  है , कुछ न  कुछ उसके जीवन में घटता ही  रहता है ,मनुष्य जीवन ही घटनाओं -दुर्घटनाओं से जुड़ा है और वे घटनाएँ अथवा दुर्घटनाएं ही चर्चा का विषय बन जाती है। मेरा तो मानना है कि जीवन में घटना अथवा दुर्घटना का इंतज़ार क्या देखना ?चर्चा तो जीवन के  किसी भी पहलू पर हो सकती है। देखा जाये तो सारा जीवन ही चर्चा का विषय बन सकता  है। जब हम जवान थे ,तब चर्चा का विषय रहता था -पढ़ाई और नौकरी। माता -पिता स्वयं तो परेशान रहते ही थे किन्तु हमें भी आराम से नहीं रहने देते थे। मन करता, कि शांत मन से, आराम  से लेटकर 'लता मंगेशकर ''के या ''मोहम्मद रफ़ी
''साहब के गाने सुने। अभी सुनने  शुरुआत ही की थी कि माता -पिता का अलग ही राग बजने लगा -''इन चीजों से कुछ नहीं होने वाला ,समय बर्बाद मत करो। समय बहुत कीमती है ,ये ही उम्र है, अपना जीवन संवारने की ,गाने सुनने में समय बर्बाद मत करो। जीवन में सफल हो जाओ ,कुछ बन जाओ ,तब जिंदगी भर गाने ही सुनते रहना। पढ़ाई में तो मन ही नहीं था ,मन करता था कि तितलियों से रंग चुराकर जिंदगी के कैनवास पर जीवन को रंगीन बना लूँ,उसमें नए -नए रंग भरूं। लेकिन सुनने को मिलता -''इससे कुछ नहीं होने वाला ,इससे पेट नहीं भरता। ड्राइंग या पेंटिंग छोडो ,पढ़ाई करो, पढ़ाई। आई.ए.एस. बनो पी.सी.एस. की तैयारी करो ,ये भी कोई शौक है। अगले वर्ष ड्राइंग विषय लेने ही नहीं दिया। कहते -सारा दिन इसी विषय में बर्बाद होगा और विषयों पर ध्यान ही नहीं जायेगा। 
                विवाह हुआ ,घर -गृहस्थी में  लग गए। आई.ए.एस.तो बने नहीं ,ड्राइंग -पेंटिंग छुड़ा  दी  गयी ,विवाह करके घर ही बसा लिया। पति ठीक -ठाक कमा  लेते, किसी न किसी को तो गृहस्थी संभालनी ही  थी तो ये त्याग हमने किया। काम निपटाने के बाद सब इकट्ठा होतीं,  किसी न किसी बहाने से एक -दूसरे के घर में झाँक आतीं।' सुमन जी' ,क्या हो रहा है ?अरे ,क्या बताऊँ ,मेरी सास का स्वभाव तो तुम जानती ही हो। अरे ,कल्पना की सास का भी यही हाल है, उसने उसका जीवन नर्क बना रखा है। ये ही सब बातें धीरे -धीरे पूरे मोेहल्ले में चर्चा का विषय होतीं।कुछ समय तक सब व्यस्त रहीं, एक -आध बार कभी, हाय !हैलो !हो जाती, कुछ साल बाद फिर चर्चा का विषय बदल गया।नैना जी, तो आजकल पता नहीं कहाँ घूमती रहती हैं? ,तभी नैना जी दिख जातीं हैं। कहाँ जा रहीं हैं ?आजकल दिखाई ही नहीं देतीं सुमन ने पूछा। नैना जी बलखाती सी आती हैं, बोलीं -मैंने बेटे को शहर के सबसे महंगे स्कूल में डाला है उसी की भाग -दौड़ चल रही है ,पता है, बच्चे का भी टैस्ट हुआ और हमसे भी बहुत से सवाल पूछे गए  ,''अंग्रेजी माध्यम'' है न।' नैना जी' का रवैया देखकर' कल्पना' थोड़ी सी चिढ़ गयी, बोली -इतनी ज्यादा' फीस' देकर भी, बच्चा माँ -बाप को पढ़ाना पड़े तो क्या फ़ायदा ?इससे तो हमारे बच्चों का स्कूल ही सस्ता और अच्छा है। हमारी सिरदर्दी नहीं बच्चे अपने -आप ही पढ़ते रहते हैं। नैना ने मुँह बनाया बोली -तुम क्या जानो ?बड़े स्कूलों की पढ़ाई और तुनककर चली गयी।' कल्पना' बड़बड़ाई -नंबर दो की कमाई है कहीं न कहीं तो ठिकाने लगानी पड़ेगी।  ' कमला जी' आकर बोलीं -मेरे बेटे ने आज ए.बी.सी.डी. पूरी लिखीं हैं। तभी 'कल्पना जी' बोलीं -आपने मेरी बेटी का नृत्य नहीं देखा कितना सुंदर करती है ? 
           धीरे -धीरे समय व्यतीत हुआ, तो चर्चा का विषय भी परिवर्तित हुआ।  लोगों की कुछ तो मजबूरी हो गयी और कुछ के लिए स्तर का सवाल बन गया। एक -दूसरे की होड़ में' काम वाली' लगाई जाने लगीं और जहाँ काम है, वहीं समस्याएं भी हैं। 'कमला जी' घर आई, बोलीं -क्या 'सुमन जी 'आज भी हमारी  कामवाली नहीं आई ,आपकी' कामवाली' आई है क्या ?उसे थोड़ी देर के लिए मेरे घर भेज देना। ये' कामवाली' भी न ,जब इसकी ज्यादा जरूरत हो तो छुट्टी करके बैठ जाती है। इनके तो सास से भी ज्यादा नख़रे हैं ,झेलने भी पड़ते हैं।एक दिन सब  बाहर धूप में कुर्सी डालकर बैठ गईं। आपको पता है ,विमला जी ने तो अपनी कामवाली को हटा भी दिया सबकी दृष्टि' सुमन' की तरफ घूम गयी। क्यों क्या हुआ ?एक ने  पूछा। सुना है उनकी सोने  की झुमकी स्नानागार में रखी थीं, उन पर हाथ साफ कर गयी। पुलिस को बुलाया गया ,उसने पूछ -ताछ की, तब जाकर पता चला कि साठ हजार की झुमकी किसी को भी ऐसे ही चालीस हजार में बेच दी। यूँ ही तो किसी पर विश्वास नहीं  किया जा सकता। लो, एक किस्सा और सुनो !मिसेज गुप्ता ने भी अपनी' कामवाली ' हटा दी ,क्यों विमला बोली। अपने सामने वाली को देखकर ,क्या मतलब मैं समझी नहीं किसी ने पूछा। उनके सामने वाली बहुएँ सारे काम अपने आप करती हैं ,उन्हें देखकर, उनकी सास बोली  जब वो दो बहुएँ घर का  सारा काम कर   सकती हैं फिर तुम तो तीन हो,, पैसों की तंगी तो रहती ही थी लेकिन दिखावे के लिए कामवाली लगा रखी थी। उनकी बहु सामने वाली से शिकायत करने आयी -तुम्हारे कारण हमारी कामवाली भी हटा दी गयी। 
                 समय बदला जो जवान थे वे अधेड़ उम्र में जीने को बाध्य होने लगे कुछ -कुछ सफ़ेद हुए बालों को नए -नए रंगों में रंगने लगे। ये उम्र ऐसी थी कि व्यक्ति एकाएक स्वीकार नहीं कर  पा  रहा था अपनी उम्र का बढ़ना। लग रहा था ,जिंदगी अभी ठीक से शुरू भी नहीं हुई ,अभी तो'' नून तेल लकड़ी'' के चक्कर में पड़े थे, उम्र थी कि  निकलती जा रही थी। चर्चा का विषय भी सास ,पति ,बच्चे से हटकर बच्चों के भविष्य ने ले लिया मिलने की जगह घर  या मौहल्ले से हटकर  किटी पार्टियों ने ले ली। तभी एक का सुझाव आया -घर गृहस्थी से हटकर कभी -कभी देश में क्या हो रहा है ?उस पर भी नजर डाल लिया करो। अरे !देश की
राजनीति के लिए इतने लोग हैं ,उसमें भी हम सिरदर्दी करें। घर में, क्या राजनीति कम खेली जाती है ?घर की राजनीति से ही फुरसत नहीं। कल मेरी देवरानी मुझसे  कह रही थी -दीदी! मम्मी को कुछ मत बताना और बाज़ार जाकर नया  सूट  ले आई। मैं चुप रही, लेकिन फिर स्वयं ही जाकर दिखा आई और बोली -दीदी तो मना कर रहीं थी लेकिन मैंने कहा -नहीं ,हमारी सास हैं ,वे भी खुश ही होंगी।  गुस्सा तो बहुत आया। नीलम -मेरे बेटे का चुनाव अभियंता[इंजीनियर ] के लिए हो गया है। बहुत ही अच्छा ,बहुत -बहुत बधाइयाँ हो आपको। मेरी बेटी तो' बिजनेस मैनेजमेंट' की तैयारी कर  रही है। मेरा बेटा' बैंक'  तैयारी कर रहा है।   
             नेहा जी! क्या आपको मालूम है ?'सुनीता जी' ने एक छोटा सा  कुत्ता लिया है। अच्छा, नेहा ने सीधे -सपाट स्वर में कहा।आप ये नहीं पूछेंगी, कितने का लिया है ? पूरे अट्ठारह हज़ार का। सुनकर नेहा की आँखें फैली, फिर संयत होकर बोली -उनके पास पैसा है तो ले सकती हैं ,पता नहीं उनका  बेटा, कहाँ का बैंक लूट रहा है ?अंधाधुंध कमाई हो रही है। सब क़िस्मत की बात है। 'शालिनी जी 'का बेटा भी तो उसी के साथ था वो' पच्चीस -तीस' हज़ार की नौकरी कर रहा है। यहाँ तो अपने बच्चों की जरूरतें ही पूरी हो जायें अंदर ही अंदर तिलमिलाते हुए नेहा बोली।' पूनम जी' भी तो अपनी लड़की के लिए लड़का ढूंढ़ रही हैं ,हाँ भई ,बच्चों की उम्र जो हो रही है। समय से विवाह कर देना ही बेहतर है वरना  बच्चे हाथ से निकल जाते हैं। पुष्पा जी ने तो अपनी बेटी का विवाह समय से ही कर दिया ,पिछले महीने ही उसके बेटा हुआ है। हमारी तो बेटी सुनती ही नहीं ,अभी तो नौकरी ढूंढ़ रही है,'' रमा जी'' निराशा भाव से बोलीं। नौकरी वाली बहु मेरी बुआ के लड़के की है ,कितनी तेज़ ,काम के नाम पर तो हिलती ही नहीं। कहती है नौकरी करती हूँ तो काम क्यों करूँ ?बेटी को पढ़ाया तो इसीलिए जाता है कि घर परिवार को सही तरीक़े से ,परिस्थितियों  के अनुसार घर चलाये लेकिन वो तो आकर हावी होती हैं किसी की नहीं सुनती। 
              अब उम्र ही कितनी रह गयी है ?घुटनों में भी दर्द रहने लगा है ,बेटी सुनती नहीं ,बेटा बाहर रहता है अपना करियर बनाने में लगा है। तीस पर हो गया। कब विवाह करेगा ,कब बच्चे होंगे ?रमा जी निराशा से घुटने सहलाती हुई बोलीं। जब मेरा विवाह हुआ था, मेरी सास भी जवान थी ,पच्चीस साल की मैं दो बच्चों की माँ बन गयी थी यहाँ देखो, किसी का भी मन नहीं विवाह करने का। क्या बहु का सुख देखेंगे ?जैसी इन्होंने बताई अपनी बुआ के बेटे की बहु , तो हमारा बुढ़ापा तो संवर ही जायेगा। सोच कर भी सिहरन होती है। उफ़ !ये चर्चा भी न कितनी बड़ी हो गयी ?समय बदले ,लोग बदले ,चर्चा का स्थान बदला  लेकिन जब तक जीवन है , चर्चा तो होती ही रहेगी। 






















 
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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