'मोको कहाँ ढूढ़े रे बंदे 'ये कबीरदासजी के दोहे की पंक्ति है। इतनी योनियों के बाद ये मानुस तन मिला ,उसका क्या उपयोग किया? सोचो जरा !सही इंसान ही नहीं बन पाए। अपनी जिम्मेदारियों से भागते हैं ,जो हमारे अंदर है उसे जगह -जगह ढूंढते हैं। उसी ने तो भेजा है इस संसार में ,उसका काम समझ कर जिम्मेदारी पूरी तो करें। गृहस्थ जीवन भी उसी की देन है वरना जीवन चक्र रुक जायेगा। कर्म करते हुए भी व्यक्ति ज्ञान से सराबोर हो सकता है। कार्य को अपना न समझकर उसकी दी हुई जिम्मेदारी समझ कर कार्य करे। अपने मन रूपी रेत को [जो इधर -उधर भटकता रहता है ,तनिक हवा का झोंका आते ही उड़ जाता है ]ज्ञान रूपी पोंछे से समेटकर परमात्मा रूपी बोरे में भरकर अपने को उस परमात्मा समर्पित करें।
इधर -उधर भाग -भागकर क्यों समय व्यर्थ गवाँ रहे हो? इस संसार में जो कुछ भी है उसी की देन है ,ये जो कुछ भी है उसी की सम्पत्ति है ,जिसके हम रखवाले हैं। जाते समय ये सब सम्पत्ति उसी के भेजे अन्य लोगों को सौंपकर जाना होता है। क्योंकि एक उम्र के बाद हमें भी इन जिम्मेदारियों से मुक्त होना होता है ,इसी कारण हम अपने साथ कुछ नहीं ले जा सकते। ले जा सकते हैं तो सिर्फ़ अपनी जिम्मेदारियों [कर्मों ]का ब्यौरा। जिम्मेदारी निभाने के लिए किसी को धन दिया कि धनवान होकर धन को धर्म के काम में लगाओ ,भूखों की भूख मिटाओ। जिन्हें औलाद का सुख मिला उनकी जिम्मेदारी है कि इन भविष्य के चौकीदारों को संस्कार दो, ज्ञानवान बनाओ जिससे जीवन चक्र यूँ ही चलता रहे।
पद दिए ,कि अपनी योग्यतानुसार [चिकित्सक ,नेता ,अध्यापक ,लेखक इत्यादि ]उस पद का उपयोग करें ,दुरूपयोग नहीं। लेकिन इंसान ने इन सबका दुरूपयोग या तिरस्कार ही किया। इन सबका तिरस्कार कर उसे [परमात्मा को ]जगह -जगह ढूंढता फिर रहा है। एक अंधी दौड़ है ,जिसका उसे पता ही नहीं कहाँ जाना है ?क्या करना है ?अपनी जिम्मेदारियों से भागता फिर रहा है ,जो जीवन की जिम्मेदारियाँ मिली उन्हें भी पूरा नहीं किया। कभी साधू बना ,कभी नेता बना जीवन के न जाने कितने रूप अपनाये लेकिन वो सही रूप से इंसान भी नहीं बन पाया।
घर में पत्नी या बच्चे ,माता -पिता कोई भी बीमार हैं लेकिन बाहर समाज -सेवा चल रही है। बाल -गोपाल की पूजा करता है ,उन्हें दूध मख़ाने खिलाता है। अपना बच्चा या पोता -पोती पड़ा रो रहा है ,उसे देखता भी नहीं। क्या उसमें उसे बाल -गोपाल की छवि नहीं दिखती। ये सब भी तो उसी की देन है वरना औलाद भी हर किसी को नसीब नहीं होती। पीर -फकीरों के चक्कर काटने पर भी ये जिम्मेदारी भी हर किसी को नहीं मिलती। परमात्मा ने इंसान बनाया लेकिन इंसानियत हर कोई नहीं निभा सकता। घर में पति बीमार है ,उसे पानी- खाना ,प्यार व अपनेपन की आवश्यकता है। और तुम सतसंग में समय व्यतीत करो। क्या वो परमात्मा का ही एक रूप नहीं? इंसानियत के नाते ही भगवान के इस रूप की भी सेवा कर सकते हो। ये सब भी तो उसी की ही दी हुई जिम्मेदारी है ,फिर इस सेवा से क्यों डरते हो ?तुम्हारे आस -पास ही तो परमात्मा भिन्न -भिन्न रूपों में है फिर उसे कहाँ खोजते फिर रहे हो ?
जब उसके दिए कामों से थक जाओ तब आदमी रात में सोता है ताकि भगवान के दिए कार्य को पूरी ताकत ,जोश के साथ दिन में कर सकें इसलिए उसने रात -दिन भी बनाये उसकी मेहरबानी तो देखिये उसने हमारे आराम का भी पूरा ध्यान रखा। फिर भी हम उसे समझ नहीं पाते पूरी जिंदगी भटकते रहते हैं।
इधर -उधर भाग -भागकर क्यों समय व्यर्थ गवाँ रहे हो? इस संसार में जो कुछ भी है उसी की देन है ,ये जो कुछ भी है उसी की सम्पत्ति है ,जिसके हम रखवाले हैं। जाते समय ये सब सम्पत्ति उसी के भेजे अन्य लोगों को सौंपकर जाना होता है। क्योंकि एक उम्र के बाद हमें भी इन जिम्मेदारियों से मुक्त होना होता है ,इसी कारण हम अपने साथ कुछ नहीं ले जा सकते। ले जा सकते हैं तो सिर्फ़ अपनी जिम्मेदारियों [कर्मों ]का ब्यौरा। जिम्मेदारी निभाने के लिए किसी को धन दिया कि धनवान होकर धन को धर्म के काम में लगाओ ,भूखों की भूख मिटाओ। जिन्हें औलाद का सुख मिला उनकी जिम्मेदारी है कि इन भविष्य के चौकीदारों को संस्कार दो, ज्ञानवान बनाओ जिससे जीवन चक्र यूँ ही चलता रहे।
पद दिए ,कि अपनी योग्यतानुसार [चिकित्सक ,नेता ,अध्यापक ,लेखक इत्यादि ]उस पद का उपयोग करें ,दुरूपयोग नहीं। लेकिन इंसान ने इन सबका दुरूपयोग या तिरस्कार ही किया। इन सबका तिरस्कार कर उसे [परमात्मा को ]जगह -जगह ढूंढता फिर रहा है। एक अंधी दौड़ है ,जिसका उसे पता ही नहीं कहाँ जाना है ?क्या करना है ?अपनी जिम्मेदारियों से भागता फिर रहा है ,जो जीवन की जिम्मेदारियाँ मिली उन्हें भी पूरा नहीं किया। कभी साधू बना ,कभी नेता बना जीवन के न जाने कितने रूप अपनाये लेकिन वो सही रूप से इंसान भी नहीं बन पाया।
घर में पत्नी या बच्चे ,माता -पिता कोई भी बीमार हैं लेकिन बाहर समाज -सेवा चल रही है। बाल -गोपाल की पूजा करता है ,उन्हें दूध मख़ाने खिलाता है। अपना बच्चा या पोता -पोती पड़ा रो रहा है ,उसे देखता भी नहीं। क्या उसमें उसे बाल -गोपाल की छवि नहीं दिखती। ये सब भी तो उसी की देन है वरना औलाद भी हर किसी को नसीब नहीं होती। पीर -फकीरों के चक्कर काटने पर भी ये जिम्मेदारी भी हर किसी को नहीं मिलती। परमात्मा ने इंसान बनाया लेकिन इंसानियत हर कोई नहीं निभा सकता। घर में पति बीमार है ,उसे पानी- खाना ,प्यार व अपनेपन की आवश्यकता है। और तुम सतसंग में समय व्यतीत करो। क्या वो परमात्मा का ही एक रूप नहीं? इंसानियत के नाते ही भगवान के इस रूप की भी सेवा कर सकते हो। ये सब भी तो उसी की ही दी हुई जिम्मेदारी है ,फिर इस सेवा से क्यों डरते हो ?तुम्हारे आस -पास ही तो परमात्मा भिन्न -भिन्न रूपों में है फिर उसे कहाँ खोजते फिर रहे हो ?
जब उसके दिए कामों से थक जाओ तब आदमी रात में सोता है ताकि भगवान के दिए कार्य को पूरी ताकत ,जोश के साथ दिन में कर सकें इसलिए उसने रात -दिन भी बनाये उसकी मेहरबानी तो देखिये उसने हमारे आराम का भी पूरा ध्यान रखा। फिर भी हम उसे समझ नहीं पाते पूरी जिंदगी भटकते रहते हैं।

