maa

माँ मुझे, अक़सर याद आती है। 
 यादों के झरोखों से ,मुस्कुराकर ,
    मेरी तन्हाइयों को ,छेड़ जाती है। 
      माँ मुझे ,अक़सर याद आती है। 
        उसकी याद से ,
                   चेहरे पर मुस्कान आती है। 
        पर ,उसके न होने का ,
                    एहसास दिलाती है। 
  माँ मुझे ,अक़सर याद आती है। 
     उसका वो मंद -मंद मुस्काना ,
      मेरा इंतजार करना ,दूध में ,
             मकई की रोटी भिगोना। 
         गुड़ से प्यार से खिलाना। 
     ये बातें ,उसकी याद दिलाती हैं। 
  माँ मुझे ,अक़सर याद आती है। 
    उसका मेरी उँगली पकड़ घुमाना ,
                सबसे मिलाना ,
      स्कूल से न आने पर ,
            दरवाजे पर खड़े रहना ,
    इन बातों को याद कर ,आँख भर आती है। 
  माँ मुझे ,अक़सर याद आती है। 
        मेरे रूठने पर ,मुझको मनाना। 
       चूड़ी वाले से ,चूड़ी दिलाना। 
      बिखरे बाल संवारना। 
   इन बातों से ,उसकी याद मुझे रुलाती है। 
   यादों के झरोखों से ,मुस्कुराकर ,
       तन्हाइयों को ,छेड़ जाती है। 
          माँ मुझे ,अक़सर याद आती है। 
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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