शिल्पा का आकर्षण, कुमार के प्रति बढ़ता जा रहा था,अब वह, नित्या को भी, संपूर्ण बात नहीं बताती थी। उसे लगता था, यदि वह नित्या को, संपूर्ण सच्चाई बता देगी, तो वह ,उसे रोकने अथवा समझाने का प्रयास करेगी इसलिए वह नहीं चाहती थी, कि नित्या को उसके और कुमार के विषय में कुछ भी पता चले। शिल्पा को लगता था, कुमार उससे और उसकी कला से प्रसन्न है ,यह बात, नित्या बर्दाश्त नहीं कर पाएगी क्योंकि वह अपने को मुझसे सुंदर समझती है,हालाँकि ये बात नित्या ने, उससे कभी नहीं की किन्तु उसने अपने मन में ही नित्या के प्रति यह दुर्भावना बना ली है।
शिल्पा के लिए भी, यह बहुत ही आश्चर्य और रोमांच कर देने वाली बात थी, कि जिस कुमार ने, नित्या से ठीक से बात भी नहीं की , अब वही कुमार उससे मिलने आने लगा है। उसके मोह का आकर्षण बढ़ता जा रहा था।
शिल्पा अब प्रसन्न रहने लगी थी, अक्सर वह कभी-कभी,कुमार के साथ, घूमने चली जाती थी, जिस बात की जानकारी नित्या को भी नहीं होती थी। एक- दो बार नित्या ने उससे यह जानने का प्रयास किया कि वह कहां जा रही है ?या आजकल कहाँ जाती है ?
तब शिल्पा ने बहाना बनाया, कि वह अपनी सहेली 'मधुलिका' के घर जा रही है। कुमार भी, शिल्पा को बढ़ावा दे रहा था। कभी -कभी अधिकार से उसका हाथ पकड़ लेता ,तो शिल्पा अपनी रगो में बह रहे, रक्त के स्थान पर' लावा' महसूस करने लगती, किन्तु वो तो जैसे उसी के लिए ही बनी है ,उससे अपना हाथ छुड़वाने का प्रयास भी नहीं करती। अब वो कुमार के प्रेम रस में डूबी, बहुत ही आकर्षक और सुंदर पेंटिंग बनाने लगी थी । अपने हृदय के भाव, उन रंगों के माध्यम से कैनवास पर उतार देती थी। चित्र तो वो पहले से ही सुंदर बनाती थी किन्तु अब उसके चित्र बोलने लगे थे।
शिल्पा, अपने को एक आसमान में उड़ती परी की तरह महसूस करती थी। वह परी, जो सबको पसंद करती है किंतु एक राजकुमार है जो सिर्फ उसे ही पसंद करता है और वह उसके सपनों में ख्यालों में खोई रहना चाहती है। शिल्पा के ह्रदय के भावों के लिए ,अब कैनवास भी छोटा पड़ने लगा था। उसने अपने कमरे की दीवारों को भी रंगीन कर दिया था, अब वे दीवारें बोलती थीं , उसका हर रंग कुछ कहता नजर आता था, प्रेम ,बहार,बसंत सब कुछ उन दीवारों में बस गया था। जहाँ अप्रत्यक्ष रूप से शिल्पा और कुमार विचरण करते नजर आते थे। वो किसी को दिखलाई नहीं पड़ते थे किन्तु वे दीवारें शिल्पा और कुमार के प्रेम के लिए जी उठी थीं।
एक दिन नित्या को रास्ते में ,मधुलिका मिल गई , बातों ही बातों में नित्या ने मधुलिका से पूछा- तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है ?
मधुलिका ने बताया- बहुत, अच्छी चल रही है।
क्या तुम भी चित्रकारी करती हो ?ये तुमने अच्छा किया जो तुम दोनों साथ में मिलकर अभ्यास करने लगीं हो ।
मैं कुछ समझी नहीं, दीदी ! यह आपसे किसने कहा ? कि मैं चित्रकारी करती हूँ बल्कि मुझे तो, चित्रकारी बिल्कुल भी नहीं आती, शिल्पा को तो अच्छी चित्रकारी आती है।
इसीलिए तो पूछ रही थी, अक्सर शिल्पा तुमसे मिलने जो चली आती है। मैंने सोचा - दोनों का एक ही विषय होगा इसलिए वह तुम्हारे साथ, अपना समय और पढ़ाई दोनों व्यतीत करती है।
नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं है वह तो मुझे महीनों से नहीं मिली भी नहीं ,कॉलेज में भी, अक्सर दिखलाई नहीं देती है।
तब वह कहां चली जाती है ? नित्या ने आश्चर्य से पूछा।
मुझे क्या मालूम ?मुझसे तो मिलती भी नहीं है और न ही, बात करती है।
इस बात पर नित्या अत्यंत परेशान हो गई, वह अपनी बुआ से यह सब बता देना चाहती थी, उसे लग रहा था। अवश्य ही नित्या कोई गलत कदम उठा रही है, यदि ऐसा नहीं होता तो वह उसे अवश्य बताती,फिर भी उसने एक बार उससे बात कर लेना उचित समझा।ऐसी क्या बात हो सकती है ?जो उसने मुझसे छुपाई है।
शाम को जब शिल्पा, एक नई पेंटिंग की शुरुआत कर रही थी , तब नित्या बोली -इन रंगों में, एक रंग छुपा हुआ होना चाहिए। वह होना भी चाहिए किंतु किसी को दिखलाई न दे !
ऐसा कैसे हो सकता है ? हर रंग का अपना अलग-अलग महत्व है। जब तक उसको दर्शाया नहीं जाएगा, उसके न होने से भी, कोई अंतर नहीं आएगा। यदि किसी में मिला भी दिया ,उस रंग का महत्व समाप्त हो जाएगा,उसका होना न होने के बराबर ही रहेगा, हां यह बात अवश्य है यदि उस रंग को किसी दूसरे रंग में मिला दिया जाए, तो उसका अस्तित्व होने के बावज़ूद भी ,परिवर्तित हो जायेगा।
जैसे कि इंसान के जीवन में झूठ का महत्व है, इंसान, एक साधारण व्यक्ति है, एक सुंदर आत्मा है किंतु यदि उसमें अभद्रता के रंग मिला दिया जाए तो उसका चरित्र साधारण नहीं रहेगा,किन्तु आत्मा सुंदर भी नहीं रहेगी। वो कई रूपों में बंटकर बिखर सा जाता है। कभी-कभी उसका स्वयं का चरित्र ही, स्पष्ट नहीं होता। और वह उन विषैले में रंगों में डूबता चला जाता है और एक समय ऐसा आता है, जब इन सब रंगों को एक रंग अपने में समाहित कर लेता है। एक काला रंग और वह सब रंगों को अपने आगोश में ले लेता है,यानि हमारे जीवन में कोई भी काली परछाई ,हमारे जीवन के सभी रंगों को भी कलुषित कर देती है। तब हम अपने उन रंगों को अपने अस्तित्व को खोजने लगते हैं।
यह तू, आज कैसी बातें कर रही है ? यदि मैं ऐसी चित्रकारी करती हूं तो कोई भी उसे पसंद नहीं करेगा। चित्रकार, का जो मूल उद्देश्य है, उसके मन की खुशी है, वह उभर कर नहीं आ पाएंगी। ऐसे रंग, कौन पसंद करता है ? जिनमें एक सुंदर चित्र उभर कर न आ पाए। प्रीत के, सुंदर सुनहरे सपनों के, आकर्षक रंग ही पसंद करते हैं। दुख -दर्द यह कोई नहीं चाहता।
ऐसा नहीं है ,हर रंग का अपना अलग महत्व है ,जैसे काला रंग न हो तो, अँधेरे का भान कैसे होगा ?गगन में काले बादल कैसे उमड़ेंगे ?किन्तु तुमने देखा है ,अंधकार सभी रंगों को लील जाता है इसीलिए उसका प्रयोग आवश्यकतानुसार ही किया जाता है। जैसे नीला रंग न हो ,तो तुम गगन और जल कैसे बनाओगी ?किन्तु इसको प्रयोग करने की भी एक सीमा है यदि तुम हर जगह नीला रंग ही लगाओगी तो चित्र सुंदर और उभरकर नहीं आ पायेगा ,यदि अपनी कलाकृति दो ही रंगों से बनानी है तो उसके लिए किसी दूसरे रंग का सहयोग तो लेना ही होगा। इसी प्रकार हमारा जीवन भी, विभिन्न रंगों से सजा है ,उन रंगों को हमारे कर्म ही और सुंदर बना देते हैं और बदसूरत भी ,जो हमारे जीवन की कलाकृति को उभारकर ले आते हैं।
आज तो तुम, बड़े ज्ञान की बातें कर रही हो ?क्या कोई बात है ?आज से पहले तो तुमने, कभी मुझसे इस तरह की चर्चा नहीं की।
चर्चा का विषय जब मिले, तभी तो चर्चा होगी वरना ज़िंदगी तो यूँ ही सुकून से, अपने ढ़र्रे पर चलती ही रहती है।
क्या मैं जान सकती हूँ ?ये चर्चा आज किसलिए ?
ये तुम अपने आपसे पूछो !क्या तुम्हारे जीवन का कोई 'पन्ना' ऐसा है ,जो तुम हमसे ही नहीं अपने आप से छुपाना चाहती हो ,कहीं अनजाने ही, उस चित्र में काला रंग का प्रयोग तो नहीं हो रहा है।