'ताराचंद जी ',टेलीविजन पर समाचार देख रहे थे ,तभी एक ऐसी खबर आई, जिसे देखकर ,उनकी ''आँखें नीची हो गयीं। '' और उन्होंने तुरंत ही टेलीविजन बंद कर दिया। तब अपने बेटे 'प्रभात' को बुलाया और उससे पूछा -क्या तुमने आज का ''समाचार- पत्र ''पढ़ा है ?
नहीं तो..... आज ऐसी कौन सी ख़बर ख़ास खबर है ,जो आप पूछ रहे हैं। तभी प्रभात के लिए एक फोन आया ,उस फोन वाले ने जो कुछ भी उसे बताया -उसे सुनकर 'प्रभात 'के जैसे'' पैरों तले जमीन ख़िसक गयी। ''
ताराचंद जी ,एक प्रतिष्ठित कॉलिज के प्रधानाचार्य रह चुके हैं ,अपने कॉलिज के सेवाकाल में उन्होंने बहुत प्रतिष्ठा और मान -सम्मान कमाया। अपने बच्चों को भी अच्छे संस्कार दिए ,एक बेटा डॉक्टर तो दूसरा अभियंता है। दोनों ही अपने -अपने कार्यक्षेत्र में कुशल हैं ,उन्होंने यह कार्यक्षेत्र अपनी इच्छानुसार चुना है । केशव ,एक प्रतिष्ठित अस्पताल में नौकरी करता है और उसका अपना क्लिनिक भी है। उसने यह कार्य इसीलिए चुना ताकि वो लोगों की'' सेवा कर सके।
दूसरा प्रभात नई -नई और अपनी डिज़ाइन की इमारतों के सपने देखता था। एक ऐसे प्रदेश की कल्पना करता था ,जहाँ लोगो को हर सुख -सुविधा मिले। एक साफ -सुथरे और विकसित स्थल की कल्पना करता था ,जो उसके नाम से जाना जाये किन्तु आज जब उसे अपने अधीनस्थ काम करने वाले रोहन का फोन आया तो उसे आश्चर्य हुआ ,तब उसने भी वो वीडियो देखी और परेशान हो गया।
तब उसे अपने पिता की बात का मर्म समझ आया कितने अरमानों से , ईमानदारी से वो अपने कार्य को अंजाम दे रहा था किन्तु उस बिल्डर ने उसके अरमानों के साथ ही नहीं ,बल्कि उसके चरित्र के साथ भी खेला। प्रभात, ईमानदारी से ,अच्छे माल के साथ ,उन इमारतों को मजबूत बनाना चाहता था किन्तु याकूब चाहता था ,माल की गुणवत्ता को घटाकर, अपना लाभ देखना चाहिए। इसके बावजूद भी, जब प्रभात उसकी शैतानी चालों में शामिल नहीं हुआ तो उसने रिश्वत लेते हुए प्रभात की तस्वीरें लीं और यही ख़बर 'जंगल में आग की तरह फैल गयी। ''और यही खबर समाचार -पत्रों में , टेलीविजन पर दिखाई जा रही थी।
जिसने भी देखा ,उसने ही विश्वास कर लिया ,' प्रभात' की बहुत बदनामी हो रही थी ,उसे नौकरी से भी निकाल दिया गया था। 'प्रभात की आँखों में आंसू आ गए ,क्या मेरी ईमानदारी का यही परिणाम है ? मुझे फंसाया गया है ,मैंने ऐसा कुछ किया ही नहीं है।
जब उसने यही बात अपने पिता से कही तब वो बोले - बेटा !तुम्हारी वो रिश्वत लेते हुए ,तस्वीर मैंने भी देखी ,उसे देखकर तो शर्म के मारे 'मेरी नज़रें नीची हो गयीं'। मुझे विश्वास तो नहीं हुआ था किन्तु उस तस्वीर को देखकर विश्वास करना पड़ा। हमने अपने जीवन में बहुत इज्जत कमाई है ,हमें अपनी परवरिश पर पूरा विश्वास है ,यदि तुम सही हो तो, घबराना नहीं ,हम तुम्हारे साथ हैं ,तुम उस बिल्ड़र की 'पोल खोलना' और अपना मान -सम्मान वापिस लौटाना ताकि हमें अपनी परवरिश पर कभी लज्जित न होना पड़े।
प्रभात पर केस चला और बाद में साबित हुआ, कि वो तस्वीरें गुमराह करने के लिए बनाई गयी थीं ,वे सभी तस्वीरें झूठी थीं ,ताराचंद परिवार ने कई परेशानियां तो उठाई किन्तु अपनों के साथ वो इस' ज़िंदगी की जंग' को जीत ही गए।