Khoobsurat [part 27]

शिल्पा अपने हाथों में, वो विज्ञापन का पर्चा लिए, अपने सामान सहित रिक्शे में बैठी हुई थी ,वैसे तो वो अपनी स्कूटी से भी जा सकती थी किन्तु किसी अनजान जगह के लिए उसने रिक्शे से जाना ही, उचित समझा।उसके बैग और सामान को देखकर रिक्शेवाले ने सोचा ,ये कोई अध्यापिका होगी। तब वो बोला - मैडम !क्या आप कहीं पढ़ाती हैं ?

नहीं,अभी तो मैं, ख़ुद पढ़ रही हूँ ,कहते हुए मुस्कुराई और इधर -उधर देखने लगी ,वो सोच रही थी -वही शहर है ,किन्तु इधर कभी आना ही नहीं हुआ। आज वह एक ऐसी प्रतियोगिता में भाग लेने जा रही थी ,जहाँ बड़े -बड़े लोग आएंगे ,सोचकर ही मन में गुदगुदी होने लगी, उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी। न जाने कितने लोग होंगे ? इस पर्चे के आधार पर ही,मैं वहां  जा रही हूँ,जीतूँ या न जीतूं मेरे लिए यह कम बड़ी बात नहीं है ,एक बड़ी प्रतियोगिता का हिस्सा बनने जा रही हूँ। 


 तभी मन में थोड़ी घरबराहट का एहसास हुआ और उसे नित्या का स्मरण हो आया। अभी तो मुझे वहां जाकर फॉर्म भी भरना होगा, नित्या से साथ चलने के लिए कहा था किन्तु आज ही उसका टैस्ट है।वो साथ रहती है ,तो मन में शांति रहती है ,बेफ़िक्री सी रहती है। आज थोड़ी घबराहट हो रही है। हो सकता है ,कुमार भी वहां आये ,तभी ख़्याल आया न भी आये क्योंकि उसे तो तमन्ना की पेंटिंग्स से ही लगाव था,वो तो इस प्रतियोगिता में भाग नहीं ले रही है , किन्तु वो ये नहीं जानता ये 'शिल्पा'ही' तमन्ना 'है। 

अचानक उसका ध्यान आने विचारों से हटकर ,रिक्शे पर जा टिका ,रिक्शेवाले का रिक्शा काफी सजा -धजा था ,शायद उसने नया रिक्शा लिया है ,'तक़दीर भी न इंसान को क्या से क्या करवा देती है ?वैसे इसमें बुराई ही क्या है ?अपनी मेहनत करके खा रहा है। कुछ देर पश्चात रिक्शेवाले ने पूछा - मैडम !आप वहां क्यों जाना चाहती हैं ?

शिल्पा उसकी आवाज से, अपने विचारों के भंवर से बाहर आई और बोली - मैं कहाँ और क्यों जा रही हूँ ,तुम्हें इस बात से कोई मतलब नहीं होना चाहिए। तुमसे जो स्थान बताया गया ,मुझे उस स्थान पर छोड़ दो ,तो छोड़ दो ! बस अपने काम से काम रखना चाहिए। शिल्पा के रूखे व्यवहार के कारण ,वो चुप हो गया किन्तु मन ही मन बुदबुदाया -सही तो कह रहीं है ,हमें कोई मतलब नहीं होना चाहिए, कोई कहीं भी जाये।

शिल्पा को लगा था ,शायद उसकी बात रिक्शेवाले को बुरी लगी है ,किन्तु ये लोग, ऐसे ही चिपकने का प्रयास करते हैं। उसने लापरवाही से उसकी तरफ देखा ,वैसे तो देखने से इतना गरीब भी नहीं लग रहा , जवान है ,मजबूत तन लिए हुए है ,पढ़ा -लिखा होता तो आज कहीं ,किसी अच्छी नौकरी पर होता। अभी तक उन्हें चलते हुए लगभग आधा घंटा हो गया था। तभी शिल्पा ने पूछा -ये जगह, अभी और कितनी दूर है ?

बस अब तो दस मिनट का रास्ता रह  गया है,कहते हुए ,उसने तेजी से पैड़ल मारने शुरू किये। 

क्या आप, इधर पहली बार आईं हैं ?

शिल्पा ने सोचा ,न जाने इसके क्या इरादे हैं ? कहीं मुझे इस जगह से अनजान समझ, मुझे ऐसे ही चक्कर न कटवाता रहे या फिर कहीं और जगह ही ले जाये। अनेक विचार मन में कोंध गए ,तब वो बोली -यहाँ की जगहों से तो मैं बहुत पहले से परिचित हूँ किन्तु अबकी बार इधर, बहुत दिनों पश्चात आना हुआ है ,समय के साथ थोड़े बदलाव भी आते रहते हैं, इसीलिए तुमसे पूछ रही थी। 

हम्म्म्म !रिक्शावाला जान गया था ,ये १००/ प्रतिशत झूठ बोल रही है। तब वह बोला -वापस जाने के लिए भी क्या आपको रिक्शा चाहिए ,क्या मैं रुक जाऊँ ? 

क्यों ?तुम ऐसा क्यों पूछ रहे हो ?क्या यहाँ और रिक्शेवाले नहीं मिलते हैं ?

मिलते तो हैं ,किन्तु अनजान जगहों पर भटकने का अंदेशा रहता है ,कुछ लोग, अपने उसी रिक्शेवाले को रुकने के लिए कह देते हैं ताकि उसी से वापिस जा सकें ,कहते हुए उसने एक बड़े से मुख्य दरवाजे की तरफ इशारा करते हुए कहा -लो !आपका स्थान आ गया। 

शिल्पा ने देखा ,एक बड़ी सी इमारत है और उसका मुख्य दरवाजा भी बहुत बड़ा है और उसके ऊपर बड़े -बड़े शब्दों में लिखा था -''नेताजी ऑडिटोरियम '' शिल्पा ने अपना वह पर्चा देखा और निश्चिन्त हो गयी। उसने रिक्शेवाले की तरफ देखा और वो पूछने ही वाली थी कि कितने पैसे हुए ?उससे पहले ही वो बोला -क्या आपको यहीं आना था ?

हाँ ,कहते हुए उसने उस पर्चे की तरफ इशारा किया,उसने औपचारिक रूप से उसे देखा और बोला -ये तो किसी प्रतियोगिता का विज्ञापन है ,किन्तु यहाँ तो आज तक कोई प्रतियोगिता नहीं हुई। 

शिल्पा ने आश्चर्य से उसकी तरफ देखकर ,पूछा -क्या तुम अंग्रेजी पढ़ सकते हो ?

हाँ ,आप मुझे क्या समझ रहीं हैं ?रिक्शा चलाना तो मेरी मजबूरी है ,मैंने'' पॉलिटिकल साइंस'' से मास्टरी की है। उसकी बात सुनकर शिल्पा को आश्चर्य होता है ,अब तक वो उसे अनपढ़- गंवार समझ रही थी। तब उसने पूछा - क्या मैं तुम्हारा नाम जान सकती हूँ ?

वैसे नाम जानने से क्या फर्क पड़ता है ?आपकी नजर में तो मैं एक अनपढ़ रिक्शेवाला होंगा।  

नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं है, झेंपते हुए शिल्पा बोली -उसे लग रहा था ,जैसे उसने उसके हाव -भाव से उसके मन की बात को समझ लिया हो। तब वो बोली -अच्छा अभी मुझे देर हो रही है ,मुझे जाना होगा। क्या आप मेरी रिक्शा से ही वापस जाना पसंद करेंगी ? क्या मैं यहीं रुकूँ ?

नहीं, इसकी आवश्यकता नहीं है ,अभी मुझे समय लगेगा। 

मुझे तो नहीं लगता यहाँ कोई प्रतियोगिता होगी ,वह मन ही मन बुदबुदाया ,तब उसे जैसे कुछ याद आया और बोला -मेरा नाम' रंजन 'है,तब तक शिल्पा उस 'सभागार 'की सीढ़ियों पर चढ़ चुकी थी  शिल्पा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और आगे बढ़ती चली गयी। तब वह अंदर बढ़ती है ,किन्तु वहां बहुत शांति थी ,कोई भी इंसान नजर नहीं आ रहा था। यहीं -कहीं यह प्रतियोगिता हो रही होगी ,ऐसी बड़ी जगहों पर बड़ी शांति सी रहती है। उसने घड़ी में समय देखा ,अभी सुबह के नौ बज रहे थे ,दस बजे प्रतियोगिता आरम्भ होनी है।

 मैं भी न..... उत्सुकता में कितने पहले आ गयी ?मन ही मन अपने आपको डांटा क्योंकि उसका ह्रदय इस प्रतियोगिता के लिए जितना उत्सुक था ,उतना ही यहां का एकांत देख, घबरा रहा था। अब वो किसी को ढूंढ़ रही थी ताकि वह यह निश्चित कर सके कि यहाँ कोई प्रतियोगिता हो रही है। 

तभी उसे दूर से एक आदमी, अपनी तरफ ही आता दिखलाई दिया ,उसे एक उम्मीद जागी ,कम से कम एक इंसान तो यहां दिखलाई दिया ,वह उसकी प्रतीक्षा में थी ,वो कब करीब आये और शिल्पा उससे पूछे -प्रतियोगिता कितने बजे है ?हालाँकि वो प्रतियोगिता का समय जानती है ,तब भी ,इसी बहाने यह तो सिद्ध हो ही जायेगा ,वो गलत स्थान या गलत समय पर नहीं आई है। तभी वह व्यक्ति दूसरी तरफ चला गया। पता नहीं कौन था ?


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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