Door ke dhol

 दूर के ढ़ोल ,सुहावने लगते हैं। 

समीप में,वही राग पुराने लगते हैं। 

 इक तस्वीर पर कितनों ने दिल भेजा ?

यही सब देख ,सपने सुहाने लगते हैं।



  तस्वीरों से जुड़े रिश्ते सुहाने लगते हैं। 

दूर बैठे वही बेगाने,आज अपने लगते हैं। 

 वही अनजाने रिश्ते, लुभावने लगते हैं।

 क़रीब के रिश्ते ,गैरों से बेगाने लगते हैं।


  खुश हो लेता हूँ ,इन दूरी के रिश्तों से ,

 उलझन भरे फ़साने,अफ़साने लगते हैं।

 तलाशता हूँ ,सच्ची मोहब्बत बेगानों में ,

  सब्ज़बाग में खो ,स्वप्न सुहाने लगते हैं।  


आज 'दूर के ढ़ोल सुहावने' लगते हैं। 

 अपनों के क़िस्से अब फ़साने लगते हैं। 

 कभी बीते थे दिन वो ,संग अपनों के ,

 वो स्मृति खूबसूरत अफ़साने लगते हैं।  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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