दूर के ढ़ोल ,सुहावने लगते हैं।
समीप में,वही राग पुराने लगते हैं।
इक तस्वीर पर कितनों ने दिल भेजा ?
यही सब देख ,सपने सुहाने लगते हैं।
तस्वीरों से जुड़े रिश्ते सुहाने लगते हैं।
दूर बैठे वही बेगाने,आज अपने लगते हैं।
वही अनजाने रिश्ते, लुभावने लगते हैं।
क़रीब के रिश्ते ,गैरों से बेगाने लगते हैं।
खुश हो लेता हूँ ,इन दूरी के रिश्तों से ,
उलझन भरे फ़साने,अफ़साने लगते हैं।
तलाशता हूँ ,सच्ची मोहब्बत बेगानों में ,
सब्ज़बाग में खो ,स्वप्न सुहाने लगते हैं।
आज 'दूर के ढ़ोल सुहावने' लगते हैं।
अपनों के क़िस्से अब फ़साने लगते हैं।
कभी बीते थे दिन वो ,संग अपनों के ,
वो स्मृति खूबसूरत अफ़साने लगते हैं।