Vishvas ko khote der nahi lagti

  रामप्यारी, बहुत दिनों से नहीं बल्कि सालों से खन्ना जी के यहां काम करती आई है। खन्ना के परिवार में जैसे घुल- मिल गई है, वे लोग भी उसे, नौकरानी नहीं, परिवार का ही एक सदस्य समझते हैं। खन्ना का परिवार भी, उसकी उम्र के हिसाब से उसे, सम्मान भी देते हैं।  कभी भी उससे  नौकर की तरह व्यवहार नहीं किया। रामप्यारी एक बार बीमार क्या हुई ,धीरे-धीरे कमजोर भी होती जा रही थी। डॉक्टर ने उसे आराम करने के लिए कहा। अपने घर से ज्यादा रामप्यारी को, खन्ना परिवार की चिंता हो रही थी , मेरे बिना उनका कार्य कैसे होगा ? 


मिसेज़ खन्ना बोलीं -अपना स्वास्थ्य पहले है, काम तो होता रहेगा। यदि तुम चाहती हो कि यहां पर तुम्हारे अलावा कोई और न आए तो कोई तुम्हारी रिश्तेदार, जो भी परिवार के कार्य को संभाल सकता है , उसे अपने बदले में भेज सकती हो। तुम पर हमारा विश्वास है, बरसों से तुम यहां काम कर रही हो इसलिए तुम अपने स्थान पर जिसे भी भेजोगी , वह तुम जैसा ही, ईमानदार भी होगा। 

रामप्यारी उनकी यह बातें सुनकर भावुक हो गई, उसे लगा, इन लोगों को मुझ पर कितना विश्वास है ? मैं इनका विश्वास टूटने नहीं दूंगी, यह सोचकर बोली -देखती हूं , कुछ दिनों के लिए मैं, अपनी जगह किसी और को भेज दूंगी। 

बहुत सोच- समझकर रामप्यारी ने, खन्ना के घर पर अपनी पोती को भेज दिया क्योंकि उसकी पोती उसकी तरह ही अच्छा काम करती थी। रामप्यारी की पोती ने पहली बार इतना बड़ा आलीशान घर देखा था। वहां की चीजों को देखकर उसकी आंखें चुंधिया गई। वहां पर एक से एक महंगे सामान थे, जो उसने कभी अपने सपने में भी नहीं देखे थे। उसे आश्चर्य हुआ कि उसकी दादी ऐसे घर में कार्य करती थी , उसने भी,अपनी दादी की तरह बढ़िया काम किया। खन्ना परिवार भी उसके काम से अत्यंत प्रसन्न हुए , अच्छी तरह से प्यार से बातें करते, किंतु रामप्यारी की पोती के मन में तो अब लालच समा गया था।

 एक दिन उसने मिसेज खन्ना के कान की सोने की झुमकी देखीं , उसने देखा -कि मिसेज खन्ना, बाथरूम से नहा कर आई थी और अपनी झुमकी वहीं पर भूल आईं । उस समय नेहा ने वे झुमकी नहीं उठाईं  और धीरे से किसी डिब्बे के पीछे रख दीं , वह यह देखना चाहती थी कि यह झुमकी उन्हें याद हैं भी या नहीं। किसी ने भी उन झुमकियों के विषय में कोई बात नहीं की, अगले दिन भी वे झुमकी वही रहीं। तब नेहा को लगा, इतने पैसे वाले लोग हैं, ये छोटी सी झुमकी इन्हें कहां याद होगी ? यह सोचकर उसने,वे झुमकियां अपने कपड़ों में छुपा लीं और चुपचाप घर वापस आ गई। घर आकर वह अपनी माँ को वह झुमकियां दिखा रही थी, तभी रामप्यारी ने भी वे झुमकी देख लीं और बोली -ये तो मालकिन की झुमकी हैं, तुम्हारे पास कैसे आई ?

उन्होंने यह झुमकी  खुश होकर मुझे दे दी, नेहा ने बहाना बनाया। 

झूठ मत बोलो ! सोने की झुमकी वह तुम्हें इनाम क्यों देंगीं ? क्या तुमने कोई ऐसा अच्छा कार्य किया है ?

और समझ गई कि नेहा झूठ बोल रही है, तब उसे नेहा पर क्रोध आया बोली- मैंने इसीलिए तुम्हें, वहां काम के लिए भेजा था कि तुम अपना कार्य ईमानदारी से करोगी।  तुम्हें पता है, मैं वहां वर्षों से काम कर रही हूं। और उन लोगों को मुझ पर बहुत विश्वास है। उस विश्वास को बनाए रखने के लिए ,मैंने सालों उस घर में काम किया है और तुम उस विश्वास को पल भर में तोड़ देना चाहती हो। जिस विश्वास को कमाने में मैंने बरसों लगा दिए, अब तुम उस घर में नहीं जाओगी , कहते हुए रामप्यारी ने नेहा से, वे झुमकी ले लीं। 

अगले दिन वह स्वयं काम पर गई , उसे देखकर खन्ना परिवार के लोग अत्यंत प्रसन्न हुए किंतु उसे वे परेशान भी दिखलाई दिए। तब रामप्यारी ने पूछा -क्या कोई परेशानी है। 

तब मिसेज खन्ना ने बताया -बाथरूम में, मेरी सोने की झुमकियां रखी थीं, किंतु मिल नहीं रही हैं। 

रामप्यारी जानती थी, वह झुमकियां यहां नहीं मिलेंगी क्योंकि उन्हें तो मेरी पोती ने चुरा लिया था इसलिए वह बोली - मालकिन !आप परेशान मत होइए, अब मैं आ गई हूं , मैं आपकी झुमकियां आपको ढूंढ कर दूंगी यह कहते हुए, वह बाथरूम में गई उसे समझ नहीं आ रहा था कि किस तरह से वह झुमकी, मालकिन को दिखाएं तभी उसने कपड़ों की मशीन देखी, उसमें गंदे कपड़ों का ढेर लगा हुआ था। रामप्यारी ने, उन कपड़ों को टटोलने का अभिनय किया और चुपके से झुमकी उन कपड़ों में डाल दीं, तभी वह चिल्लाई -देखो, मालकिन! आपकी, झुमकी मिल गई , यहां कपड़ों में गिरी हुई थीं। 

अच्छा! यहां कैसे आ गई ? खुश होते हुए उसने अपनी झुमकी रामप्यारी के हाथों से ले लीं। राम प्यारी भी मन ही मन खुश हो रही थी, कि मेरा विश्वास टूटा नहीं है, यदि इनको पता चल जाता कि ये  झुमकियाँ मेरी पोती ने चुराई थीं  तो उनका'' विश्वास खोने में मुझे ज्यादा समय नहीं लगता।'' 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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