अरे !सुन मेरा रिश्ता तय हो गया ,नीतू ने पीछे से आकर मेरे कंधे पर हाथ रखा। मैंने मुड़कर पीछे देखा। नीतू खड़ी मुस्कुरा रही थी। मुझे उसकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ। उसके चेहरे पर नजरें गड़ाते मैंने कहा -चल झूठी ,मज़ाक करने के लिए ,क्या मैं ही मिली थी ?उसने फिर से मुझे यक़ीन दिलाते हुए कहा -सच में ,मैं न ही झूठ बोल रही हूँ ,न ही मज़ाक कर रही हूँ। पापा के एक दोस्त हैं ,उन्होंने अपनी जानकारी में कोई लड़का इंजीनियर है ,पापा को बताया। पापा देखने गए, बड़े ही पैसे वाले लोग हैं ,लड़का पापा को पसंद आ गया ,वहीं रिश्ता पक्का कर आये। उसकी बातें सुन मैं सोच रही थी- कि ये तो खुश है ,मैंने कहा -अभी तो तेरी पढ़ाई भी पूरी नहीं हुई ,इतनी जल्दी ,कैसे ?उसने मुँह बनाते हुए कहा -पढ़ाई भी हो जाएगी। मैंने यही बातें मम्मी के सामने दोहराई। मम्मी बोलीं --लड़कियों को भी इस उम्र में पता ही नहीं होता-' कि क्या सही है ,क्या गलत ?अभी भी कुछ माता -पिता लड़कियों को इतना भी इसीलिए पढ़ाते हैं जिससे उनका सही जगह विवाह हो जाये ,वो भी इसीलिए कि पढ़ी -लिखी लड़की मांगने लगे हैं,लड़के वाले। उसके पापा ने पैसे वाला लड़का ढूंढा ,इंजीनियर भी है तो फिर क्या परेशानी हो सकती है ?माँ -बाप ने जो भी लड़का ढूंढा होगा, अपनी बेटी की भलाई सोचकर ही ढूंढा होगा। मम्मी ने मुझे समझाते हुए कहा। सब कुछ इतनी जल्दी हो रहा था ,समझ नहीं आ रहा था कि मुझे खुश होना चाहिए। बड़ी ही अजीब स्थिति थी।
नीतू के विवाह का समय भी आ गया। मैं भी उसके विवाह में शामिल हुई ,पैसे की चकाचोंध देखते ही बनती थी।जो भी उसके विवाह में शामिल हुआ वही उसकी किस्मत पर आश्चर्य चकित हो रहे थे। कुछ को जलन भी थी किंतु उसके चाचा ये विवाह नहीं चाहते थे। मैंने कारण जानना चाहा तो बोली -जलन है ,उनकी बेटियों को नहीं मिला ऐसा रिश्ता। मैंने उसकी चाची से पूछा ,तो उन्होंने कोई जबाब नहीं दिया। मैंने भी समझा कि उन्हें इसकी किस्मत से ईर्ष्या हो रही है। नीतू का विवाह हो गया, वो ख़ुशी -ख़ुशी अपनी ससुराल चली गयी। मैं अपनी पढ़ाई में लग गयी। एक -दो बार उससे मुलाकात हुई तो वो बेहद खुश थी। अपने ससुराल की बातें बताती ,अपने घूमने की तस्वीरें भी दिखाईं ,उसकी बातों से भी लगा कि वो प्रसन्न है। मुझे जो मन में उसे लेकर अजीब सी बेचैनी थी ,वो अब शांत हो चुकी थी। पढ़ाई पूरी होने के बाद मेरी नौकरी लग गयी ,इधर मम्मी भी मेरे लिए लड़का देखने लगीं। वर्षों तक न ही मेरी उससे मुलाकात हुई ,न ही कोई बातचीत। मेरा विवाह तय हो गया ,तब मेरी इच्छा हुई कि मेरी सहेली भी आये। मैंने उसका पता जानने लिए उसके भाई से सम्पर्क किया तो पता चला कि वो नहीं आ सकती क्योंकि वो तीसरे बच्चे की माँ बनने वाली है। सुनकर मुझे बड़ा ही आश्चर्य हुआ कि छब्बीस -सत्ताईस साल की उम्र में तीसरे बच्चे की माँ बनने जा रही है। मेरी शादी हुई ,मैं भी अपने परिवार को समझने और उन्हें जानने में व्यस्त हो गयी। लगभग दस साल बाद अचानक किसी की आवाज ने मुझे चौंका दिया -प्रिया !मैंने पलटकर देखा। चेहरा और आवाज जानी -पहचानी सी लगी। मैंने देखा एक महिला घुंघराले बाल कंधे तक कटे,प्लाज़ो के साथ ढीला कुरता पहने ,कंधों पर झूलता बैग मैंने अंदाजा लगाकर पूछा -नीतू ?वो बोली चलो अच्छा है ,पहचान तो गयी। मैंने भी आश्वस्त होकर कहा -पहचानती कैसे नहीं ?तू ही तो मेरी सबसे अच्छी सहेली रही है। तू तो काफी बदल गयी। चोटी से कटे बालों में आ गई ,ओहो! .... क्या अदा है ?आजा !चल अंदर ,साथ में कौन है ?मैंने पूछा। कोई नहीं, उसका छोटा सा जबाब था।तुझे मेरा पता कैसे मिला ?मैंने तो तुझसे मिलने की उम्मीद ही छोड़ दी थी। पता नहीं ,कब ?कौन से देश में घूम रही हो ?मैंने उस पर व्यंग साधा।अब बता बच्चे कैसे हैं ?क्या कर रहे हैं ?मैंने पूछा। वो बोली --बेटी का ही दाखिला कराने आयी थी, यहां। यहां का कॉलिज अच्छा है। फिर सोचा, तुझसे भी मिल लूँगी। मैं चाय बनाते हुए मन ही मन सोच रही थी कि इसके पति ने इसे कितना' स्मार्ट' बना दिया। देश -विदेशों में घूमना ,जो लड़की बिना भाई को साथ लिए अकेली कहीं नहीं जाती थी ,आज वो अकेली मेरे शहर में अपनी बेटी का दाखिला कराने आ गयी। और बताओ, तुम्हारे पति महाशय कहाँ हैं ?क्या कर रहे हैं, आजकल ?मेरे इस प्रश्न पर वो थोड़ी गंभीर हो गयी बोली -'अंकुर' अब नहीं रहे ,मुझे अकेली छोड़कर कई साल पहले चले गए जितनी आसानी से उसने वो बात कही ,उतनी आसानी से मैं इस बात को हज़म नहीं कर पाई। क्या मज़ाक कर रही है ?वो बोली -मजाक नहीं कर रही ,यही सच है। उन्हें गए तो सात साल हो गए। सुनकर मुझे जैसे धक्का सा लगा लेकिन उसके पहनावे को देखकर लग नहीं रहा था कि वो एक विधवा है। मैंने कहा -इतने बड़े दुःख को लेकर तू जी रही है सुनकर दुःख हुआ। वो बोली -उसके जाने का क्या दुःख ?उससे बड़ा दुःख तो मेरा रहा। जाने वाला तो चला गया मुझ पर तीन बच्चों की जिम्मेदारी छोड़ गया। पीछे परेशानी भुगतने को तो मैं रह गयी। शुरू के दो साल तो मैं समझ ही नहीं पाई क्या करूँ ?तुझे लगता होगा कि मुझे देश -विदेश घूमाता था लेकिन उसके जाने के बाद पता चला जो कमाया ,खर्चा किया। बैंक में कुछ पैसा नहीं था। बिना पैसे तीन बच्चे पालना आसान काम नहीं था। शुरू के दो -तीन साल मैंने कैसे गुजारे ?मुझे ही पता है। जैसे वो बातें करती -करती उस समय में पहुंच गयी हो। मैंने उसे सांत्वना देते हुए कहा -मम्मी -पापा ने तो मदद की होगी, भाई को बुला लेती। वो एकाएक गुस्से में भर गयी बोली -उनका तो नाम ही मत लो ,भाई मेरे घर आता था लेकिन जब ये हादसा हुआ वो आकर झाँका भी नहीं ,कहीं माता -पिता जो पैसा मेरे बच्चों पर लगाते हैं ,अब बहन के ऊपर न खर्च कर दें। क्यों, क्या उन्होंने मदद नहीं की ?मदद, वो तो व्यापारी निकला उसने गुस्से से जबाब दिया। मैं समझी नहीं ,कौन व्यापारी निकला ?मैंने न समझते हुए पूछा। और कौन ?मेरा बाप। अब तो उसे पापा कहने का भी दिल नहीं करता। इस तरह की भाषा का प्रयोग तो उसने कभी नहीं किया था। मैं फिर भी उसकी बातों का सार समझ नहीं पाई। मैंने कहा -तू शांत होकर पूरी बात विस्तार से बता। वो बोली -जब मेरा विवाह हुआ था तब मैं कितनी छोटी थी ?ये तो तुझे पता है ,मुझे भी अक़्ल नहीं थी। बस इस बात की ख़ुशी थी कि मेरा विवाह हो रहा है। मेरे बाप को तो अक़्ल थी ,उसने अपने फायदे लिए मेरा विवाह पंद्रह साल बड़े लड़के से करवा दिया। इसमें अंकल का क्या फायदा हो सकता है? मैंने प्रश्न पूछा। जिससे दहेज़ न देना पड़े। यहाँ हमसे कह दिया कि मैंने बहुत सामान दिया है। वो तो मुझे वहाँ जाकर पता चला। उम्र कम थी ,हम अपने पापा डरते भी थे ,हिम्मत भी नहीं थी कि विरोध करते। तब तो मैं खुश थी लेकिन बाद में एहसास हुआ कि इस इंसान ने मेरी पढ़ाई भी पूरी नहीं होने दी और दहेज़ न देना पड़े इस कारण बड़ी उम्र के लड़के से विवाह कर अपना पल्ला झाड़ लिया। वो तो अंकुर ने अपने आलस के रहते मुझे सब सिखा दिया। मतलब ?मैं समझी नहीं ,मैं बोली। अंकुर आलसी था। सारे काम मुझसे ही करवाता था -बैंक जाना ,बाज़ार के सारे काम निपटाना ,इसके लिए उसने मुझे गाड़ी ,स्कूटी चलाना सब सिखाया। चलो जो भी हुआ ,अब तेरे काम तो आया मैंने समझाते हुए कहा। जो हुआ उसे भूल जा ,ये बता अंकल -आंटी ने तेरी बाद में मदद क्यों नहीं की ?जैसे उसे याद आया बोली -उसके जाने के बाद मैं परेशान रही ,मैंने नौकरी की तो बच्चों को कौन संभाले ?मैंने मम्मी को बुलाया तो भेजा नहीं। उन्हें ये हो गया कि बच्चों को लेकर यहाँ न आ जाये। न ही कोई मेरे पास आया न ही मदद की। जहाँ मैं नौकरी करती थी ,वहीं एक महिला मेरी मदद के लिए आगे आई। वैसे अंकुर की मौत कैसे हुई ?कोई बीमारी थी क्या ?मेरे प्रश्न का उत्तर उसने कुछ ही शब्दों में निपटा दिया -जमीन -जायदाद को लेकर दोनों भाइयों में झगड़ा हुआ ओेर गोली लग गयी और वहीं मौत हो गयी। मैं सोच रही थी कि कितनी आसानी से वो अपनी कहानी सुना गयी। इतनी कम उम्र में न जाने उसने क्या -क्या नहीं सहा?जिंदगी के थपेड़ों ने मेरी भोली -भाली ,सीधी सी दिखने वाली सहेली को हर तरह से मजबूत बना दिया। समय भी पता नहीं क्या -क्या रंग दिखा देता है ?जिंदगी भोले -भाले इंसान को फौलाद बना देती है। जब बच्चा दुःखी या परेशान होता है तब वो अपनों की तरफ ही हसरत भरी निगाहों से देखता है और उसके सबसे ज्यादा नजदीक उसके अपने माता -पिता ही होते हैं ,उसके बाद भाई -बहन आते हैं। वहाँ से भी उसे निराशा या फ़रेब मिले तो इस संसार में अपना कौन है? जो उसके दुःख -दर्द को कम कर सके। इस कलियुग में तो माँ का आँचल भी छोटा होता जा रहा है और पिता व्यापारी।यहाँ भी लड़की के साथ भेदभाव। बेटे का साथ हैं ,वो अपना है ,बेटी अपनी होते हुए भी पराई। पराये लोगों का कैसे वो साथ दे सकते हैं? ये भेदभाव आज भी जस का तस है।
मेरा बाप