अजीब सी स्थिति थी ,न इधर का रहा न उधर का। पत्नी की नहीं सुनता तो घर में क्लेश होता ,माँ -बाप की तरफ ध्यान न दूँ तो वो कहेंगे ,कुछ नहीं। लेकिन मेरा अपना मन धिक्कारता है। जिस माँ -बाप ने पढ़ा -लिखा कर इतना बड़ा बनाया कि मैं सम्मान के साथअपना जीवन बसर कर सकूँ। मेरी ही ख़ुशी के लिए उन्होंने मेरी शादी की। ख़ुशी -ख़ुशी बहु भी लेकर आए क्योंकि उनका बेटा दूर बैठा बाहर का खाना या बाई के हाथ का खाना खा रहा होगा। सुख -दुःख में भी कोई साथ देने वाला नहीं होगा। न जाने क्या -क्या सोचकर मेरी शादी कर दी ,मेरा ही सुख देखा और निशा को मेरे ही साथ भेज दिया। मैंने मम्मी -पापा से साथ चलने के लिए कहा ,तो बोले -अपनी गृहस्थी बसाओ, उसमें रच -बस जाओ ,एक दूसरे को समझो ,तब हम आयेंगे। यह कहकर हमें भेज दिया।
निशा जब नई -नई आई ,तो मैं उस पर मुग्ध था। सुंदर होने के साथ -साथ उसने सारा काम एक समझदार व सुलझी हुई गृहणी की तरह संभाल लिया। हर काम वो इस तरीक़े से करती कि मैं उसकी एक -एक अदा पर मुग्ध होता चला गया ,मैं खुश था कि मुझे इतनी सुघड़ व सुंदर पत्नी मिली। एक वर्ष कब बीत गया ,पता ही नहीं चला। मेरी तंद्रा तब टूटी ,जब मम्मी का फोन आया कि बेटा कल तुम्हारी शादी को एक साल हो जायगा। उन्होंने विवाह की वर्षगांठ की अग्रिम बधाई दी। बोलीं -बेटा आ जाओ, मिलने। अगर तुम आ जाओ तो कल एक छोटी सी पार्टी भी कर लेंगे। तुम्हारे पापा की भी इच्छा है। अभी तो हम है ,फिर कब बुलावा आ जाये। मम्मी की बात सुनकर मैं थोड़ा भावुक हो गया ,मैंने कहा -आप दोनों ही यहाँ आ जाइये ,यहीं पार्टी भी करेंगे ,आप लोगों का घूमना भी हो जायेगा और कुछ दिन अपनी बहु के हाथ का खाना भी खाइये। थोड़ी ना नुकुर के। बाद मम्मी मान गईं।
मम्मी के फोन की बात मैंने निशा को बताई बताया कि मैंने मम्मी -पापा ही यहाँ बुला लिया है। वो तो हमें ही बुला रहे थे ,लेकिन मैंने सोचा, यहाँ आयेंगे तो घर भी देख लेंगे उनका घूमना भी हो जायगा। जब से हमारी शादी हुई है तब से एक बार भी यहाँ नहीं आये। शरारत भरे लहज़े में सोहेल ने कहा -ये भी देख लेंगे ,कि मेरे लिए कैसी अच्छी बहू ढूढ़ी हैउन्होंने। सोहेल थोड़ी देर में आया कहकर बाहर निकल गया। उसके जाते ही निशा कुछ सोचने लगी ,उसके चेहरे से हँसी ग़ायब थी। जिस पर सोहेल ने ध्यान नहीं दिया था ,वो अपनी ख़ुशी में था कि मम्मी -पापा को सारा शहर घुमाना है ,और उनकी जरूरत का क्या -क्या सामान लेना है ? सोचता जा रहा था।
मम्मी -पापा आये ,हमने एक होटल में छोटी सी पार्टी रखी। केक काटा ,खाना खाया। मैं पूरा समय मम्मी -पापा को देना चाहता था। इस बीच निशा बिल्कुल चुप रही ,किसी भी बात का उसने हाँ या ना में ही जबाब दिया। सोहेल ने कहा -अब तो कुछ दिन तक यहीं रहना, वहाँ जाकर भी क्या करना है ?हम तो परसों ही चले जायेंगे मम्मी बोलीं। सोहेल के बार -बार जिद करने के कारण मम्मी-पापा कुछ दिन के लिए रूक गए। इस बीच निशा ने कुछ नहीं कहा ,सबने सोचा कि निशा की चुपी में ही हाँ है। फिर भी पापा ने उसकी तरफ इशारा करके कहा -बेटा कोई परेशानी तो नहीं ?उसने भी न में गर्दन हिलाई, सब घूमते -घामते घर पहुँचे।
अगले दिन पापा नहाने के लिए गए तो पानी गर्म नहीं हो सका ,पापा नहाकर निकले बोले -बेटा क्या गीज़र नहीं चल रहा ,तुम्हें तो पता है ,मैं गर्म पानी में नहाता हूँ। सोहेल बोला -कल तक तो ठीक था ,आज अचानक कैसे ख़राब हो गया। मैंने निशा से पूछा ,तो बोली -मैं किस -किस चीज का ध्यान रखूँ ,कुछ तुम भी कर सकते हो। उसकी आवाज में झुंझलाहट थी। मैं सकते में आ गया क्योंकि अभी तक उसने मुझसे ऐसे कभी बात नहीं की। मैंने पूछा -क्या हुआ ?बोली- कुछ नहीं। कहकर अपने काम में लग गई। जितनी ख़ुशी माँ -पापा के आने की थी ,उतना ही मैं निशा के व्यवहार से परेशान था। पता नहीं इसे आज क्या हुआ ?ख़ैर मैं मम्मी-पापा से मिल ऑफ़िस आ गया।
मम्मी -पापा नाश्ता करके सो गए, थके हुए थे। कुछ समय बाद ही उनकी तेज़ आवाज़ से आँख खुल गई। ध्यान से सुना बर्तनों की आवाज थी। [मोहिनी जी रसोईघर में देखने गईं ],देखा बहु बर्तन साफ कर रही थी। मम्मी ने पूछा -बेटा बर्तन वाली नहीं लगाई। निशा बोली -लगा तो रक्खी है ,पर जब देखो ऐसे समय पर गायब हो जाती हैं ,जब उनकी जरूरत हो। जब इन्हे लगता है कि घर में मेहमान आये हैं ,बर्तन ज्यादा होंगे तो छुट्टी कर ली। तुमने कहा नहीं कि बाहरके लोग नहीं हैं ,घर के ही हैं ,हमारे सास ससुर हैं। वे कहाँ मानती हैं ?[मोहिनी जीने ने हाथ बटाँने की कोशिश की ]लेकिन निशा ने मना कर दिया -आप बैठिये मैं कर लूँगी ।
धीरे -धीरे बहु के व्यवहार से व उसकी बातचीत से लगने लगा कि बहु हमारे रहने से खुश नहीं थी। हम उसके घर में जबरदस्ती पड़े हैं ,वो हमारे बेटे का घर नहीं वो बहु का घर था। ये एहसास उसने हमें अपनी बातों व व्यवहार से करा दिया था। जिस बेटे को पढ़ाया -लिखाया ,पाला इतना बड़ा किया। अब वो हमारा कहाँ रहा ?उसे अपना कहने का अधिकार हम उसकी शादी के बाद ही खो चुके हैं। अब रहना व्यर्थ था ,हम बहाना बनाकर आ गए ,क्योंकि हमें पता चल चुका था ,गीजर का खराब होना ,कामवाली का न आना ये बहु की ही कारस्तानी थी ,जिससे हम परेशान होकर चले जायें। ये सब सोहेल ने भी महसूस किया लेकिन कर कुछ नहीं सका।
मम्मी -पापा अपना आशीर्वाद देकर चले गये।
लेकिन सोहेल के दिल के हिस्से में कहीं कुछ चटक गया। जो भृमित जीवन वो जी रहा था वो आँखों पर बँधी पट्टी उतर चुकी थी। लेकिन शादी का रिश्ता न तोडा ही जा सकता था और न ही आँखों देखि निगला जा रहा था। मम्मी - पापा के जाने के बाद वो एकांत में बहुत देर तक रोया। कई साल बीत गए बच्चे भी हो गए ,फिर वो कभी नहीं आये। जब पापा नहीं रहे तब मैं गया . मम्मी को साथ चलने को कहा लेकिन वो नहीं आई। अपनी बेबसी पर व माँ के अकेलेपन पर मैं रोकर आ जाता माँ से भी मैंने जबरदस्ती नहीं की , पता नहीं मेरे पीछे माँ से क्या व्यवहार करे। मैं लाचार सा एक घुटन व बेबसी की जिंदगी जीने को विवश था। मेरा मन मुझसे बार-बार प्रश्न पूछता ,क्या मैं इन्ही दिनों के लिए पढ़ा था? या ऐसे ही दिन देखने के लिए ही मैं अपने बच्चों को पढ़ा रहा हूँ। ऐसी पढ़ाई का क्या फायदा ,जो इस घुटन भरी जिंदगी का इलाज न कर सके। मैं सोचता हूँ, क्या उसे मुझसे भी प्यार है, जिन माँ - बाप के कारण मैं इस संसार में आया वो उन्हें ही न अपना बना सकी। मैं नहीं न जाने कितने ऐसी विवशता भरी जिंदगी जी रहे होंगे।"
निशा जब नई -नई आई ,तो मैं उस पर मुग्ध था। सुंदर होने के साथ -साथ उसने सारा काम एक समझदार व सुलझी हुई गृहणी की तरह संभाल लिया। हर काम वो इस तरीक़े से करती कि मैं उसकी एक -एक अदा पर मुग्ध होता चला गया ,मैं खुश था कि मुझे इतनी सुघड़ व सुंदर पत्नी मिली। एक वर्ष कब बीत गया ,पता ही नहीं चला। मेरी तंद्रा तब टूटी ,जब मम्मी का फोन आया कि बेटा कल तुम्हारी शादी को एक साल हो जायगा। उन्होंने विवाह की वर्षगांठ की अग्रिम बधाई दी। बोलीं -बेटा आ जाओ, मिलने। अगर तुम आ जाओ तो कल एक छोटी सी पार्टी भी कर लेंगे। तुम्हारे पापा की भी इच्छा है। अभी तो हम है ,फिर कब बुलावा आ जाये। मम्मी की बात सुनकर मैं थोड़ा भावुक हो गया ,मैंने कहा -आप दोनों ही यहाँ आ जाइये ,यहीं पार्टी भी करेंगे ,आप लोगों का घूमना भी हो जायेगा और कुछ दिन अपनी बहु के हाथ का खाना भी खाइये। थोड़ी ना नुकुर के। बाद मम्मी मान गईं।
मम्मी के फोन की बात मैंने निशा को बताई बताया कि मैंने मम्मी -पापा ही यहाँ बुला लिया है। वो तो हमें ही बुला रहे थे ,लेकिन मैंने सोचा, यहाँ आयेंगे तो घर भी देख लेंगे उनका घूमना भी हो जायगा। जब से हमारी शादी हुई है तब से एक बार भी यहाँ नहीं आये। शरारत भरे लहज़े में सोहेल ने कहा -ये भी देख लेंगे ,कि मेरे लिए कैसी अच्छी बहू ढूढ़ी हैउन्होंने। सोहेल थोड़ी देर में आया कहकर बाहर निकल गया। उसके जाते ही निशा कुछ सोचने लगी ,उसके चेहरे से हँसी ग़ायब थी। जिस पर सोहेल ने ध्यान नहीं दिया था ,वो अपनी ख़ुशी में था कि मम्मी -पापा को सारा शहर घुमाना है ,और उनकी जरूरत का क्या -क्या सामान लेना है ? सोचता जा रहा था।
मम्मी -पापा आये ,हमने एक होटल में छोटी सी पार्टी रखी। केक काटा ,खाना खाया। मैं पूरा समय मम्मी -पापा को देना चाहता था। इस बीच निशा बिल्कुल चुप रही ,किसी भी बात का उसने हाँ या ना में ही जबाब दिया। सोहेल ने कहा -अब तो कुछ दिन तक यहीं रहना, वहाँ जाकर भी क्या करना है ?हम तो परसों ही चले जायेंगे मम्मी बोलीं। सोहेल के बार -बार जिद करने के कारण मम्मी-पापा कुछ दिन के लिए रूक गए। इस बीच निशा ने कुछ नहीं कहा ,सबने सोचा कि निशा की चुपी में ही हाँ है। फिर भी पापा ने उसकी तरफ इशारा करके कहा -बेटा कोई परेशानी तो नहीं ?उसने भी न में गर्दन हिलाई, सब घूमते -घामते घर पहुँचे।
अगले दिन पापा नहाने के लिए गए तो पानी गर्म नहीं हो सका ,पापा नहाकर निकले बोले -बेटा क्या गीज़र नहीं चल रहा ,तुम्हें तो पता है ,मैं गर्म पानी में नहाता हूँ। सोहेल बोला -कल तक तो ठीक था ,आज अचानक कैसे ख़राब हो गया। मैंने निशा से पूछा ,तो बोली -मैं किस -किस चीज का ध्यान रखूँ ,कुछ तुम भी कर सकते हो। उसकी आवाज में झुंझलाहट थी। मैं सकते में आ गया क्योंकि अभी तक उसने मुझसे ऐसे कभी बात नहीं की। मैंने पूछा -क्या हुआ ?बोली- कुछ नहीं। कहकर अपने काम में लग गई। जितनी ख़ुशी माँ -पापा के आने की थी ,उतना ही मैं निशा के व्यवहार से परेशान था। पता नहीं इसे आज क्या हुआ ?ख़ैर मैं मम्मी-पापा से मिल ऑफ़िस आ गया।
मम्मी -पापा नाश्ता करके सो गए, थके हुए थे। कुछ समय बाद ही उनकी तेज़ आवाज़ से आँख खुल गई। ध्यान से सुना बर्तनों की आवाज थी। [मोहिनी जी रसोईघर में देखने गईं ],देखा बहु बर्तन साफ कर रही थी। मम्मी ने पूछा -बेटा बर्तन वाली नहीं लगाई। निशा बोली -लगा तो रक्खी है ,पर जब देखो ऐसे समय पर गायब हो जाती हैं ,जब उनकी जरूरत हो। जब इन्हे लगता है कि घर में मेहमान आये हैं ,बर्तन ज्यादा होंगे तो छुट्टी कर ली। तुमने कहा नहीं कि बाहरके लोग नहीं हैं ,घर के ही हैं ,हमारे सास ससुर हैं। वे कहाँ मानती हैं ?[मोहिनी जीने ने हाथ बटाँने की कोशिश की ]लेकिन निशा ने मना कर दिया -आप बैठिये मैं कर लूँगी ।
धीरे -धीरे बहु के व्यवहार से व उसकी बातचीत से लगने लगा कि बहु हमारे रहने से खुश नहीं थी। हम उसके घर में जबरदस्ती पड़े हैं ,वो हमारे बेटे का घर नहीं वो बहु का घर था। ये एहसास उसने हमें अपनी बातों व व्यवहार से करा दिया था। जिस बेटे को पढ़ाया -लिखाया ,पाला इतना बड़ा किया। अब वो हमारा कहाँ रहा ?उसे अपना कहने का अधिकार हम उसकी शादी के बाद ही खो चुके हैं। अब रहना व्यर्थ था ,हम बहाना बनाकर आ गए ,क्योंकि हमें पता चल चुका था ,गीजर का खराब होना ,कामवाली का न आना ये बहु की ही कारस्तानी थी ,जिससे हम परेशान होकर चले जायें। ये सब सोहेल ने भी महसूस किया लेकिन कर कुछ नहीं सका।
मम्मी -पापा अपना आशीर्वाद देकर चले गये।
लेकिन सोहेल के दिल के हिस्से में कहीं कुछ चटक गया। जो भृमित जीवन वो जी रहा था वो आँखों पर बँधी पट्टी उतर चुकी थी। लेकिन शादी का रिश्ता न तोडा ही जा सकता था और न ही आँखों देखि निगला जा रहा था। मम्मी - पापा के जाने के बाद वो एकांत में बहुत देर तक रोया। कई साल बीत गए बच्चे भी हो गए ,फिर वो कभी नहीं आये। जब पापा नहीं रहे तब मैं गया . मम्मी को साथ चलने को कहा लेकिन वो नहीं आई। अपनी बेबसी पर व माँ के अकेलेपन पर मैं रोकर आ जाता माँ से भी मैंने जबरदस्ती नहीं की , पता नहीं मेरे पीछे माँ से क्या व्यवहार करे। मैं लाचार सा एक घुटन व बेबसी की जिंदगी जीने को विवश था। मेरा मन मुझसे बार-बार प्रश्न पूछता ,क्या मैं इन्ही दिनों के लिए पढ़ा था? या ऐसे ही दिन देखने के लिए ही मैं अपने बच्चों को पढ़ा रहा हूँ। ऐसी पढ़ाई का क्या फायदा ,जो इस घुटन भरी जिंदगी का इलाज न कर सके। मैं सोचता हूँ, क्या उसे मुझसे भी प्यार है, जिन माँ - बाप के कारण मैं इस संसार में आया वो उन्हें ही न अपना बना सकी। मैं नहीं न जाने कितने ऐसी विवशता भरी जिंदगी जी रहे होंगे।"