Khoobsurat [part 93]

बातें करते हुए ,कुमार ने देखा'' यामिनी'' ने आज साड़ी पहनी हुई है ,उस साड़ी में वह बहुत ही खूबसूरत लग रही है।उस दिन इसे पहली बार' पश्चिमी सभ्यता' के वस्त्रों में लिपटे हुए देखा था ,तब भी बहुत अच्छी लग रही थी। कुमार से रुका नहीं गया और कह बैठा -आप खूबसूरत तो पहले से ही हैं किन्तु आज इस साड़ी में आपका रूप और निखर आया है। क्या आपको साड़ी पहनना पसंद है ?

जी ,ऐसी कोई बात नहीं है ,मैं अधिकतर वेस्टर्न कपड़े ही पहनती हूँ ,अब जबकि मैं आपके देश में हूँ तो सोचा ,साड़ी ही पहन लेते हैं। यहाँ कि महिलाएँ साड़ी में बहुत अच्छी दिखती हैं ,आपने देखा होगा ,मेरी कई पेंटिंग्स में भारत की नारी है ,जो घर को संभालती है और अपने पति का सहयोग भी करती है।वे मेरे लिए प्रेरक हैं।  


हाँ ,मैंने देखा है ,आपने भारतीय संस्कृति को बड़े अच्छे से समझा है ,आप हिंदी भी बहुत अच्छी बोल लेती हैं ,आपको देखकर लगता नहीं ,आप विदेशी होकर भी इतनी अच्छी हिंदी बोलती हैं। 

हाँ ,मुझे हिंदी बहुत अच्छे से आती है दरअसल जब' मैं' अपनी कला को निखारने का प्रयास कर रही थी ,तभी मेरी दोस्ती एक इंडियन से हुई थी ,उसी से हिंदी भी सीखी। वैसे मूल रूप से हम भी इंडियन ही हैं ,हमारे पूर्वज..... कुमार को समझाने का प्रयास करते हुए बोली - मुझे लगता है ,आप कला के बहुत बड़े पारखी हैं, क्या आप भी चित्रकारी करते हैं ? 

मैं, चित्रकारी तो नहीं करता हूं किंतु चित्रों का और कलाकारों का बहुत आदर करता हूं। 

वह तो आपको देखकर ही लग रहा है , वैसे अब तक आपने कितनी प्रदर्शनियां लग चुकी हैं ? कुमार ने पूछा -मेरी प्रदर्शनियां, विदेशों में ही ज्यादा लगी है किंतु भारत में यह मेरा पहला चांस है। कला से तो मैं बहुत पहले से ही जुड़ी हुई थी एक तरह से आप कह सकते हैं, बचपन से ही कला से जुड़ी हुई थी। रंगों से खेलना  मुझे अच्छा लगता था किंतु वह आत्मविश्वास नहीं आ पा रहा था, अब मुझ में आत्मविश्वास भी है। 

क्या आप मुझसे ही, पहली बार मिल रहे हैं या आपने अन्य कलाकारों की कलाकृतियों का भी इसी तरह भूरी भूरी प्रशंसा की है। 

मैंने आपसे बताया न..... मैं कला और कलाकार का प्रशंसक रहा हूं लेकिन मुझे सच्चे  और अच्छे कलाकार पसंद है, जो वे अपनी कलाकृति में दिखाते हैं वही मुझे उनके जीवन में भी देखना पसंद है। 

यानी की सुंदरता ! अचानक से यामिनी बोल उठी,' लोग ज्यादातर सुंदरता के पुजारी होते हैं, लेकिन ''कलाकृति ऐसी होती है वह जीवन के हर रूप को अपने रंगों में ढ़ालती है। जैसे ही बालपन, युवावस्था, या फिर वृद्धावस्था ही क्यों ना हो ? उसके लिए, हर अवस्था में एक सुंदरता होती है।जब हम लाइफ़ यानि ज़िंदगी के विषय में सोचते हैं तो वो केवल रंगीन ही नहीं ,संघर्ष भरी भी नजर आती है और संघर्षपूर्ण जीवन कभी ,रंगीन और खूबसूरत नहीं होगा, देखा जाये तो खूबसूरती उसमें भी है किन्तु उस खूबसूरती को एक कलाकार ही समझ सकता है''या ये भी कह सकते हैं -'ख़ूबसूरती' तो देखने वाले की नजर में होती है।   

आप सही कह रही हैं ? जिस तरह एक जौहरी ही हीरे को परख सकता है ,उसी प्रकार कलाकार ही, उस कला की गहराई को समझ सकता है ,हम जैसे मामूली इंसान कला और कला की गहराई को क्या समझेंगे ? 

आप चाय लेना पसंद करेंगे या कॉफी ! इससे पहले की कुमार कुछ कहता यामिनी ने दो एस्प्रेसो कॉफी का ऑर्डर दे दिया।

कुमार ने आश्चर्य से पूछा - क्या आप जानती हैं ? मुझे कॉफी पसंद है, वह भी एस्प्रेसो !

नही, मैं भला कैसे जानूँगी ? बस अंदाजा लगाया,वैसे मुझे भी कॉफी पीने की इच्छा हो रही थी , कहकर वह मुस्कुरा दी।

  कुमार देख रहा था, यह कितनी सुंदर है उतनी ही सुलझी हुई, नजर आ रही है , लोगों को समझना इसे बखूबी आता है, तभी तो इतनी सुंदर कलाकार है। तब वह बोला -अपने विषय में कुछ और बताइए !

अपने विषय में क्या बताऊं ? मैं तो 'खानाबदोश' हूं। 

मतलब !

मतलब यही, कि अपनी कलाकृतियों के लिए देश-विदेश भटकती रहती हूं, कुछ नया सीखने को मिल जाता है उसे सीख लेती हूं। 

यह तो अच्छी बात है, आपको तरह-तरह के लोग मिलते होंगे, कुछ कला के प्रेमी, और कुछ कलाकार के....  कहकर मुस्कुराया। आप बुरा ना माने तो क्या मैं आपसे पूछ सकता हूं? आप मिस या. मिसेज... कहकर उसकी तरफ देखने लगा। मन ही मन सोच रहा था कहीं मैंने कोई गलत प्रश्न तो नहीं पूछ लिया कहीं यह बुरा तो नहीं मान जाएगी।

 किंतु ऐसा नहीं हुआ मुस्कुराते हुए वह बोली -हम कोई दोस्त क्यों बनाते हैं ? हमें किसी साथी की तलाश होती है , लगता है, जैसे उससे सहारा मिलेगा , लेकिन दूसरा भी तो हममें अपना सहारा ढूंढता है।तभी कुछ क्षण रुककर पूछा -मुझे ऐसा क्यों लग रहा है ?कि आप जानना चाहते हैं ,मेरा परिवार और बच्चे हैं या नहीं।

उसकी बात से कुमार झेंप गया और बोला -नहीं ,किन्तु फिर भी अपने पसंदीदा कलाकार के निजी जीवन में जानने की इच्छा तो होती ही है। 

अचानक ही ,यामिनी के चेहरे के भाव बदल गए और बोली - न जाने क्यों लोग ,किसी भी व्यक्ति के जीवन में घुसने का प्रयास करते हैं ,क्या बिना पति और बच्चों के उसका अपना जीवन नहीं हो सकता। हमें अपनी ज़िंदगी अपने लिए जीनी है ,अपनी इच्छा से जीनी है ,किन्तु हमारी इस भावना की क़द्र न कर ,लोग हमारे जीवन में झाँकने का प्रयास करने लगते हैं। 

नहीं, ऐसा नहीं है ,परिवार से मतलब माता -पिता और भाई -बहन से भी तो हो सकता है ,कुमार ने अपने शब्दों के भाव को बदलते हुए कहा। 

उसकी बात सुनकर यामिनी मुस्कुरा दी ,बहुत चालाक हैं ,आप ! वैसे मुझसे ही सब पूछते रहेंगे ,कुछ अपने विषय में भी बतलाइये !आपका परिवार, बच्चे !

वैसे तो मैं एक कारोबारी हूँ कारोबार के सिलसिले में इस शहर से उस शहर आता -जाता रहता हूँ ,परिवार के विषय में बताना तो नहीं चाहता था किन्तु ''छल करना चाहता था वो भी ईमानदारी से..... इसीलिए बोला -मेरा विवाह तो हुआ है किन्तु.... तभी एक वेटर आकर दो कॉफी वहां रखकर चला जाता है ,उसके जाने के पश्चात बोला -हम भारतीयों को कैसे भी रिश्ते में बांध दिया जाता है ?इसमें उनकी इच्छा -अनिच्छा का तो प्रश्न ही नहीं उठता क्योंकि ये रिश्ता भी हमारे परिवार वाले ही जोड़ देते हैं। आप लोगों की तरह स्वतंत्र जीने की आजादी समय से पहले ही छीन ली जाती है। ''  


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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