अनजान नगरी ,अनजाने लोग ,
कहीं मधुर मुस्कान ,
कहीं तीखे शब्द बाण।
कहीं छलकता प्रेम ,
कहीं कड़वे बैन ,
कौन पराया ?
ये अब तक समझ न आया।
इस अनजान नगरी की मुसाफ़िर ,
डगमग नैया ,डोलती ,
मैं ,वाणी में अमृत घोलती।
अनजान नगरी ,अनजाने लोग ,
कैसे कहूँ ,ये अपने हैं ,
सच्चे हैं ,या बेगाने हैं।
कल जो नगरी अनजानी थी।
मुझसे बेगानी थी।
आज वहीं पर रहना है।
आज वो ही, मेरा सपना है।
हर कोई ,मेरा अपना है।