Sanskari [part 1]

बहु सबको ही संस्कारी चाहिए, इसीलिए ऐसी लड़की की ख़ोज होती है जो संस्कारी हो। किन्तु ये ही लड़की विवाह के बाद अपनी ससुराल में  आकर कैसे ''असंस्कारी ''हो जाती है ? शायद इस कहानी से आप अंदाजा लगा सकें -
 
                मिश्राजी के एक बेटे का तो विवाह हो गया ,बहु भी अच्छी आई ,घर के कामों में भी सुघड़ ,कहना भी मान लेती या यूँ कहें -''संस्कारी ''बहु मिली है। एक बेटी भी है ,उसका विवाह तय हो  गया है ,अब तो बस छोटे की बारी है ,उसके लिए भी कोई अच्छी सी बहु मिल जाये तो मिश्रा परिवार की  ज़िम्मेदारियाँ पूर्ण हों और दोनों पति -पत्नी ''गंगाजी नहाएं ''

किसी ने मिश्राजी से पूछा -संस्कारी बहु कैसी होती है या कैसी होनी चाहिए ?
देखिये !हमारी नजर में तो संस्कारी लड़की वही  है ,जो  ज़िम्मेदारियों को समझे ,ज़बान न चलाये ,कहा माने ,इस घर को भी अपना घर समझे और क्या जी ?हमें दो रोटी समय पर मिल जाएँ। '' मिश्रा जी की नज़र में एक संस्कारी बहु की यही परिभाषा है। 
छोटी बहु की अभी तलाश जारी है ,इनकी जो  बेटी  है वो   पढ़ाई के साथ -साथ ,घर के सभी कार्यों में पारंगत है। दोनों माँ -बेटी घर के कार्यो को स्वयं ही करती हैं ,उन्होंने कभी कामवाली नहीं लगाई। ऐसी ही बहु भी आ गयी ,वो भी जब भी ,अपनी नौकरी से आतीे  तभी वो भी उन दोनों के संग, घर के कार्यों में अपना सहयोग देती।
 विशाल उठा और उसने देखा,'' उसे अपने दफ्तर जाना है और उसकी कमीज़ पर तो इस्त्री ही नहीं है ,उसने झट से छुटकी को आवाज दी और बोला -तू सारा दिन क्या करती रहती है ?मेरी इस कमीज़ पर इस्त्री भी नहीं की ,अब मैं क्या पहनकर जाऊंगा ?हालाँकि छुटकी का विवाह विशाल से पहले हो रहा है क्योंकि मिश्राजी को तो अपनी जिम्मेदारियां पूर्ण करनी हैं। उन्हें अच्छे परिवार का लड़का मिल गया तो उसका रिश्ता पहले कर दिया। 
                  इस्त्री करते समय ,उसके  हाथ पर गर्म इस्त्री लग गयी ,उसकी जलन तो बहुत तेज होती है ,उसने भाई को कमीज़ दी और बोली -आपकी जल्दबाज़ी के कारण ,मेरा हाथ भी जल गया। भाई ने बहन की तरफ देखा और बोला -आँख खोलकर ठीक से काम किया कर ,और नाश्ता करके चला गया। अपनी छोटी  बहन के  लिए दो शब्द भी' प्यार 'के नहीं थे। माँ ने भी ये बातें सुनी और वहीं से बोलीं -फ्रीज़ में से बर्फ़ लेकर लगा ले। उनके लिए तो ,जैसे ये प्रतिदिन की बातें हैं ,बहन -भाइयों में तो चलता रहता है। 

छुटकी ने एक -दो बार ,अपनी मम्मी से कहा भी ,मम्मी अब तो बहुत दिन हो गए ,कामवाली लगा लो। तब मिथिलाजी कहतीं -काम से कभी कोई मरता है ,सेहत भी अच्छी रहती है। पता नहीं ,कब कैसी परिस्थिति आ जाये ?अपना कार्य स्वयं करने की आदत होनी चाहिए और अब तो हम काम करने वाली तीन हैं और जब तुम चली जाओगी ,तब एक और आ जायेगी। सभी मिलजुलकर अपने कार्य निपटा दिया करेंगे। ये सभी बातें , अपनी भाभी के पास बैठा विशाल सुन रहा था ,जो भाभी के द्वारा ,काटे गए फलों को खा रहा था ,तब अपनी भाभी से बोला -आप तो काम करती हो , किन्तु मेरी बहु आएगी तो ,वो इतना काम नहीं करेगी।
तब उसकी भाभी हँसते हुए बोली -सुन रही हो ,मम्मीजी !आपके लाड़ले बेटे क्या कह रहे हैं ?उसकी बात मिथिलाजी ने भी सुन ली और बोलीं - ये तो  ऐसे  ही बोलता है ,कहकर हँस दीं।
 विशाल  सबसे छोटा है ,कुछ भी बोलता है तो, उसका बचपना समझ ,सभी इसी तरह मुस्कुरा देते हैं  किन्तु औरत होने के नाते भाभी समझती है ,ये कोई हँसी नहीं। तभी भाभी कहती -एक तुम्हारे भइया हैं ,कभी मेरा ख़्याल नहीं रखते ,कभी मन को रखने के लिए भी ''दो मीठे बोल नहीं बोलते ''
विशाल हंसकर कह देता ,भाई नहीं रखते ,तो हम तो आपका ख़्याल रखते हैं ,भाभी मुस्कुराकर चली जाती। विशाल का बड़ा भाई' प्रकाश 'अपने काम में ही रहता है ,वो महिलाओं के पचड़े में नहीं पड़ना चाहता। पत्नी की सुने या माँ की ,इसी कारण पत्नी को ही ,अपनी माँ के पास छोड़ा हुआ है ,ताकि माँ को ये न लगे किविवाह होते ही , बेटा बहु को अपने साथ ले गया। छुटकी तो विवाह के  पश्चात ,अपनी ससुराल चली गयी। 
मिश्राजी को भी अपने घर के लिए 'संस्कारी बहु ' मिल गयी। अब सब ठीक है ,प्रकाश बोला -माँ अब तो विशाल की बहु भी आ गयी है ,मुझे भी वहां खाने -पीने की परेशानी होती है इसीलिए अब आपकी बड़ी बहु को अपने साथ ले जाता हूँ। ये बात माता -पिता को भी ठीक लगी और उन्होंने बड़ी बहु को उसके पति के साथ भेज दिया अब घर में मम्मी -पापा और विशाल और उसकी पत्नी ही रह गए। घर के सदस्य भी कम तो काम भी कम। अभी एक रस्म और रह गयी है ,तभी विशाल की बहु अपनी जिम्मेदारी संभालेगी। दोनों पति -पत्नी घूमते, मज़े करते ,मम्मी अब रसोई की रस्म की प्रतीक्षा कर रही थीं। बहु को आये ,अब पंद्रह दिन होने वाले थे। शाम को पिंकी से बोलीं -बहु कल तुम्हारी रसोई की रस्म है ,सुबह जल्दी ही उठ जाना। जी मम्मीजी !कहकर बहु अपने कमरे में चली गयी। 
 पिंकी सुबह शीघ्रता से उठी ,तभी विशाल की आँखें खुल गयीं और उसको अपने पास खींचते हुए बोला -इतनी सुबह -सुबह उठकर कहाँ चल दीं ?पिंकी ने उसे बताया -आज मेरी पहली रसोई की रस्म है ,मुझे नहाकर रसोईघर में भी जाना है। 

उसकी बातें सुनकर ,विशाल बोला -अच्छे -खासे मज़े में दिन कट रहे थे। चलो आओ !कुछ देर बैठो कहकर उसने पिंकी का हाथ पकड़ा, पिंकी भी उसकी बातों में बहक कर ,उसके क़रीब बैठने ही वाली थी ,तभी मिथिलाजी की आवाज आई -बहु नहाकर ,रसोईघर में आ जाओ !
विशाल उनकी आवाज सुनकर बोला -न  तो ये स्वयं  ही चैन से रहती हैं ,न ही रहने देती हैं। उसकी झुँझलाहट को देखकर, पिंकी हँसते हुए ,नहाने चली गयी। 
शाम को ,जब विशाल अपने दफ्तर से आया तो बहुत ही गंभीर था ,माता -पिता ने उसका चेहरा देखा और परेशान हो गए , ऐसा तो आज तक नहीं हुआ ,हँसता हुआ आता था  ,नया -नया विवाह हुआ है और उसका इस तरह लटका चेहरा देखकर ,पूछा क्या हुआ ? विशाल बोला -अभी -अभी तो ये आई है। पति -पत्नी एक दूसरे का मुँह देखने लगे ,ये कहना क्या चाहता है ?विशाल आगे बोला -ये अकेली रसोई संभालेगी या झाड़ू -पोछा लगायेगी और यदि मम्मी सुबह -सुबह ,नई बहु के रहते झाड़ू -पोछा लगायेंगी ,तो अच्छा लगेगा ,उल्टे उसने ही उनसे प्रश्न किया ,किन्तु वे उसकी बात तब भी नहीं समझ पाए ,वो फिर बोला -ये भी अभी कुछ दिनों पहले ही तो आई है ,ये तो झाड़ू -पोछे में ही थक जायेगी और हमें बुराई मिलेगी, कि आते ही बहु से खूब काम ले रहे हैं ,इसीलिए मैंने एक कामवाली से बात कर ली है और कल से वो घर की सफाई के लिए आएगी। 
आखिर विशाल ने जो इतनी लम्बी -चौड़ी भूमिका बाँधी थी ,उसका अंत किया। दोनों पति -पत्नी चुपचाप बैठे रहे ,तभी मिथिलाजी बोलीं -जब तेरी बहन ,और मैं सफ़ाई करते थे ,तब तो तूने एक बार भी नहीं सोचा न ही कहा। तेरी  बेचारी बहन ने तो एक -दो बार कहा भी था ,तब तो तू कुछ नहीं  बोला। 

माँ के प्रश्नो के विशाल क्या उत्तर देता है ?और आगे क्या -क्या करता है ?जानने के लिए पढ़िए -संस्कारी भाग दो  
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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