प्रकाश अपनी पत्नी के साथ ,अपने घर आता है ,विशाल भाभी -भइया के साथ, किसी पहाड़ी इलाके में घूमने चला जाता है ,दोनों पति -पत्नी सोचते हैं- कि विशाल पहले से बदल गया है ,प्रकाश महसूस करता है किन्तु कह नहीं पाता, क्योंकि उसे लगता है -कहने वाली तो बात कोई है ही नहीं, किंतु उसे महसूस किया जा सकता है। परिवार में तो थोड़ा बहुत चलता भी है। जब उसकी पत्नी ने प्रश्न किया -तो बोला -कह तो सकता हूँ किन्तु उसने उलटकर जबाब दे दिया तो ,वो उसकी नज़रों में अपना भी सम्मान खो देगा, एक बात और है ,वो कहना चाहता है किन्तु वो समझ नहीं पाती ,बोली -इसका क्या मतलब ?अब आगे -
प्रकाश कहता है -यदि मैंने उससे कह भी दिया- कि मम्मी -पापा के साथ ऐसा व्यवहार ठीक नहीं और उसने पलटकर जबाब दे दिया ,''कि तुम्हें अच्छा नहीं लगता तो अपने संग ले जाओ ,तो मैं क्या करूंगा ?दो कमरों का किराये का मकान ,ऊपर से इतनी महंगाई ,मैं भी तो अपनी जिम्मेदारी पूर्णतः निभा नहीं पाउँगा। जब मैं कोई कार्य ठीक से नहीं कर सकता ,तब दूसरे को क्या दोष देना ?मधु बोली -मैं भी नौकरी कर लूँगी ,चार पैसे घर में आयेंगे ही। प्रकाश बोला -बात तो वही रही न ,हम दोनों बाहर जायेंगे ,तब भी तो उनकी सेवा नहीं कर पायेंगे। अब जैसा चल रहा है ,चलने दो।
आज चम्पा की लड़की का विवाह है ,मिथिला जी भी ,अपनी बहन की बेटी के विवाह में आई हैं विवाह से चार दिन पहले ही आई हैं। हँसी -ख़ुशी का वातावरण है ,तब भी कुछ क्षण एकांत में मिल ही गए। चम्पा से अपने मन का दर्द ,न छिपा सकीं ,बोलीं -कहने को तो दो बेटे हैं ,किन्तु एक बेबस है ,वो साथ नहीं दे पा रहा ,दूसरे के पास हम रहने के लिए विवश हैं। फिर सोचती हूँ ,-जिनके एक ही बेटा है वो भी तो सब्र कर लेते होंगे। क्यों ,क्या बहु कुछ कहती है ?चम्पा बोली।
ये ही तो दुःख है ,वो कुछ कहती नहीं ,हमारा अपना खून ही ,सब संभाल लेता है ,उसे कहने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। सास -बहु की नोक -झोंक हो, तो बेटा संभाले ,जब बेटा ही ऐसे कार्य करे ,तब किससे कहें ?
साल भर का रिश्ता, पच्चीस साल के रिश्ते पर भारी पड़ गया, मिथिलाजी आँखों में अश्रु भरकर बोलीं।
तुम भी क्या? जिज्जी ! बेबसों वाली ज़िंदगी जी रही हो ?तुम क्या किसी पर निर्भर हो ?बस हिम्मत छोड़े बैठी हो। तुम अपने बेटे से बात क्यों नहीं करतीं ?आखिर तुम्हारा अपना खून है ,समझाओगी , तो समझ जायेगा ,आखिर तुम उसकी माँ हो ,थोड़ा साहस से काम लो ,चम्पा ने उन्हें हिम्मत दी।
तू क्या जाने मेरी परेशानी ? मैंने अपने बेटे से ही कहा ,-क्या तुझे स्मरण है ?कि हम तेरे माता -पिता हैं और क्या तुझे ,ये व्यवहार शोभा देता है ?मिथिलाजी ने बताया।
फिर क्या बोला ?चम्पा उत्सुक होकर बोली। कहने लगा -तुम लोगों का जीवन तो कट गया ,अभी हमें अपनी घर -गृहस्थी चलानी है ,तुम लोगों के चक्कर में ,अपनी गृहस्थी तो बर्बाद नहीं कर सकता ,हममें झगड़े हों और घर -परिवार टूटे, इससे तो बेहतर है , इसी तरह जीवन चलता रहे ,उन्होंने बताया।
हाय ,क्या जिज्जी उसने ऐसा कहा ?आपकी बात सुनकर तो मुझे भी ड़र लग रहा है ,अब तो माँ के बिना कुछ भी नहीं करता ,फिर न जाने क्या होगा ?ऐसा हुआ तो ,मैं तो मर ही जाऊँगी।चम्पा चिंतित होते हुए बोली।
मैं भी क्या अपने बच्चों का बुरा चाहती हूँ ?किन्तु जब ऐसा व्यवहार करते हैं, तो दिल को ठेस पहुंचती है। हम उनका बुरा सोचते ,तो क्या उनका विवाह कर ,घर बसाने का सोचते ?मिथिलाजी ने सफाई दी और बोलीं -मेरी सास देखी थी ,सारा दिन काम में लगे रहने के बाद भी, एक शब्द प्यार का नहीं बोलती थीं और प्रकाश के पापा की तो हिम्मत ही नहीं थी कि बहु की एवज में माँ से तनिक भी ,कुछ बोल जायें। तब मैं सोचती थी -कि अपनी बहुओं से कभी ऐसा व्यवहार नहीं करूंगी ,उन्हें अपनी बेटी बनाकर रखूंगी। एक बेटी जायेगी ,तो दो आ जाएँगी, किन्तु मेरे तो बेटे ही जैसे बहुओं के दास हो गए।पता नहीं ,अंदर ही अंदर क्या पट्टी पढ़ाकर रखती है ,हम लोग तो जैसे उसके दुश्मन हो गए। बहु अच्छे घर की ,संस्कारी नहीं आई ,वे दुःखी होते हुए बोलीं।
आजकल बहु भी सीधी नहीं रहीं ,बेटों पर हावी रहती हैं ,बेचारे उनसे जान छुड़ाने के लिए ,अपनों को ही तो कहेंगे ,उसकी बहु ठीक होती तो ,यदि तुम्हारा बेटा गलत था भी ,तो उसे समझाती -कि तुम मम्मी -पापा से संग सही नहीं कर रहे हो ,जरूर इसमें उसका भी हाथ होगा।चम्पा ने निश्चयात्मक शब्दों में अपना सुझाव दिया। तभी चम्पा की ननद ने उस कमरे में प्रवेश किया ,बोली -चलो गीतों का समय हो गया ,कुछ लाड़ो भी गा लो। उसने उन दोनों बहनों की कुछ बातें सुन लीं। मिथिलाजी के जाने पर अपनी भाभी से पूछने लगी -क्या हुआ ?चम्पा ने अपनी ननद को ये कहकर-' कि किसी से कहना नहीं ',और सम्पूर्ण बातें ,अपनी ननद को बता दीं।
विवाह के पश्चात ,सभी अपने -अपने घरों में चले गए। बात आई -गयी हो गयी ,बातों ही बातों में चम्पा की ननद ने ये बात ,अपनी जेठानी को बता दी जो उसी गांव की थी ,और बात किसी को भी न बताने पर भी पिंकी के मायके तक पहुंच ही गयी।
एक दिन पिंकी के पापा अपनी बेटी की ससुराल जा पहुँचे।उनका अचानक इस तरह ,बेटी की ससुराल में आना, किसी अनहोनी का कारण तो नहीं ,या फिर ऐसे ही मिलने आ गए।जानने के लिए पढ़िए -भाग ६