अभी तक आपने पढ़ा ,मिश्राजी के परिवार में तीन बच्चे हैं ,तीनों का विवाह हो चुका है ,किन्तु मिथिला जी को अभी भी काम से आराम नहीं ,परिस्थितियाँ ऐसी पड़ जाती हैं कि उन्हें ही काम करना पड़ जाता है। किसी को दोष भी नहीं दे सकतीं ,किसी से कहें भी तो क्या ?सब अपने ही हैं ,अपने बच्चे हैं ,अबकि बार त्यौहार पर बेटी के आने की उम्मीद थी ,उसके आने से घर में रौनक सी हो जाती और दिल भी लग जाता किन्तु विशाल ने तो आकर बताया कि वो यहां नहीं आ रही वरन अपने भाभी -भइया को ही ,अपने पास बुला रही है ,सुनकर उन्हें दुःख हुआ -अब तो बेटी भी अपनी ससुराल की होकर रह गयी ,उधर बेटी को भी दुःख होता है ,यही तो मौका था अपने मायके जाने का, वो भी चला गया ,अबकि बार भइया -भाभी ही यहां आ रहे हैं। अब आगे -
आज रविवार है ,मेरे एक सप्ताह के कपड़े हैं ,वे भी धुलेंगे। पिंकी तू नाश्ता बना ,मैं मशीन में अपने कपड़े डालता हूँ। तू भी क्या -क्या करेगी ?नाश्ता करके, मिथिलाजी और मिश्राजी बाहर धूप का आनन्द लेने बैठे ,तभी विशाल ने भी अपनी चारपाई धूप में डाली और बोला -सारा दिन दफ्तर में बैठने से कमर भी अकड़ जाती है। पिंकी..... जरा तेल तो गर्म करके लाना ,और थोड़ी सी, मेरे सिर की मालिश कर देना। वो तेल लेकर आई तब मिथिलाजी बोलीं -ला मैं तेरे सिर की मालिश कर देती हूँ। अरे नहीं मम्मी ! आप आराम करो ,ये मालिश करेगी। तभी मशीन की आवाज़ आई। विशाल बोला -अरे! इसे तो मैं भूल ही गया ,पापा जरा आप मेरे कपड़े सूखने के लिए ''ड्रायर ''में डाल देना और भी कपड़े डालकर मशीन चला देना ,मैं अभी इससे मालिश करवाकर आता हूँ ,वरना तेल ठंडा हो जायेगा। मिश्राजी उठे और अपने बेटे के कपड़े मशीन में डालने लगे।
मिथिलाजी अपनी बहु को देख रही थीं और सोच रही थीं -परसों मेरे सिर में कितना दर्द था ?और मैंने इससे कहा भी था ,ये अपनी भाभी से बातें करती रही किन्तु इसने मालिश नहीं की। तभी बेटा बोला -मम्मी मैं तो आपको बताना ही भूल गया ,आज या कल में भइया भी आ रहा है ,एक सप्ताह की छुट्टी लेकर। मिथिलाजी अपने बड़े बेटे का आना सुनकर प्रसन्न हुईं ,मिश्राजी फिर से धूप में आकर बैठ गए। तब विशाल बोला -पापा आप बाजार कब जा रहे हैं ?क्यों क्या हुआ ?वो भइया आ रहा है ,थोड़ा घर का सामान ले आते। आपको तो पता ही है ,मुझे तो सप्ताह में एक ही छुट्टी मिलती है इसमें मैं क्या -क्या कर लूं ?अभी अपने कपडे भी धोने हैं। उसके पश्चात पिंकी से बोला -जा पापा को सामान की सूची और एक थैला दे दे। पहले मेरी कमर पर भी थोड़ा सा तेल और लगा दे ,सर्दी में सारी त्वचा शुष्क हो गयी है। मिश्राजी ,पैसे और थैला लेकर चले गए ,तब विशाल मिथिलाजी से बोला -मम्मी मैं ,कपड़े धोता हूँ , कपड़े धोकर, बाल्टी माँ के सामने रख दी ,मम्मी आप कपड़े सुखा दो ,वो अंदर पता नहीं क्या कर रही है ?मिथिलाजी बाल्टी उठाकर चली ही थीं तभी उसका भाई आ जाता है। प्रसन्नता जाहिर करते हुए ,बोला -आप तो आज ही आ गए ,मैं तो सोच रहा था कि कल आओगे। वो आज ही मौका लगा तो आज ही आ गए प्रकाश ने जबाब दिया।
पिंकी.... भइया आये हैं ,जरा चाय बना ला ,उसके आवाज लगाते ही चाय आ गयी। अरे !इतनी जल्दी ,प्रकाश भी चौंक गया। हाँ ,मैंने आपके आने की आवाज सुन ली थी ,चाय रखकर उसने दोनों के पैर छुए और अंदर चली गयी। अभी पिंकी को ही बुला रहा था कि मैंने कपड़े धो दिए तू सुखा दे ,तभी मम्मी बोलीं -चल मैं सुखा देती हूँ ,बहु को और काम करने दे ,सारा दिन तो वैसे ही लगी रहती है। बड़ी बहु ,बाल्टी उठाकर चुपचाप कपड़े सुखाने चली गयी। मिथिलाजी ,सोच रही थीं -ये अवश्य ही, बहु इसे सिखाकर रखती है। अपने भाई के सामने कैसे बात बदल दी ?स्वयं तो कुछ कहती नहीं किन्तु इससे कहलवाती रहती है। मेरा बेटा तो सीधा था ,इतनी हेरा -फेरी नहीं जानता था ,इसके साथ रहकर ऐसा हो गया।
भाई आया है ,दोपहर का खाना भी खायेगा ,सोचकर -अरे पिंकी !जरा देखना क्या सब्ज़ी है ?या कुछ लाना पड़ेगा। अरे सब्ज़ी भी क्या हैं ?आजकल वो ही गोभी ,मटर ,दाल मैं तो पूरे सप्ताह ये सब खा -खाकर थक गया। चलो आज कुछ बाहर से मंगा लेते हैं विशाल ने प्रकाश से कहा। तब तक भाभी भी कपड़े सुखाकर आ गयी थी।प्रकाश बोला -बताओ भाभी ,क्या खाओगी ?दाल मक्ख़नी ,मिक्स वेज़ या फिर डोसा उसने कई नाम पिंकी की पसंद के गिना दिए। प्रकाश बोला -पिंकी से भी पूछ लो ,वो क्या खायेगी ?
अरे ,उसकी क्या पसंद ?जो हम खायेंगे ,वो भी वही खायेगी, विशाल ने ऐसे दर्शाया जैसे उसे,पिंकी की कोई परवाह नहीं। दोपहर को खाना बाहर से आ गया ,शाम को विशाल बोला -पुलाव बना लो ,ज्यादा भूख भी नहीं है। मिथिलाजी और मिश्राजी ,इस उम्र में , बाहर का अथवा गरिष्ठ भोजन नहीं करते ,तब उनके लिए रात की सब्ज़ी में दुबारा तड़का लगाकर उसके साथ फुल्के सेक दिए।
अगले दिन विशाल ने छुट्टी ले ली ,पिता ने पूछा -छुट्टी क्यों ली ?
अब भाभी -भइया इतनी दूर से आये हैं ,तब थोड़ा समय उनके लिए भी तो होना चाहिए। मिश्राजी मन ही मन सोच रहे थे -मैंने इससे अपनी आँखें दिखाने के लिए कहा था ,तब बोला -मुझे छुट्टी नहीं मिलेगी वरना मेरे पैसे कट जायेंगे। उन्होंने यह सोचकर ही, संतोष कर लिया ,चलो भाई के लिए तो इसने समय निकाला। कुछ समय पश्चात ,देखा कुछ तैयारियां चल रही हैं ,कुछ सामान गाड़ी में भी रखा जा चुका है। क्या तुम लोग कहीं जा रहे हो ?मिश्राजी ने प्रश्न किया। हाँ ,पापा हम लोग किसी पहाड़ी स्थल पर घूमने जा रहे हैं ,सारी साल तो यहीं पड़े रहते हैं विशाल बोला। तुम्हारी मम्मी की तबियत थोड़ी ठीक नहीं लग रही ,मिश्राजी परेशान होते हुए बोले। अब क्या बात विशाल थोड़ा रूढ़ होकर बोला -कल तो अच्छी खासी थीं ,अब अचानक क्या हो गया ?अब आप भी तो हो ,उनके पास। वो तेजी से बाहर गया और कुछ फ़ल लेकर आया और दवाई भी। फिर चारों घूमने निकल गए। मिश्राजी को तो बहुत क्रोध आ रहा था ,माँ की ऐसी हालत देखकर भी दोनों चले गए ,काहें की औलाद ?किन्तु मिथिला जी उन्हें समझाते हुए बोलीं -काहें को परेशान होते हो ?उनकी तो घूमने -फिरने की यही उम्र है ,अब नहीं घूमेंगे तो क्या हमारी उम्र में घूमेंगे ?हम दोनों तो साथ हैं ,मुझे अकेली तो नहीं छोड़कर गए। अपनी पत्नी के समझाने पर वो थोड़ा शांत हो गए।
अब तक के हालात , देखते हुए मिथिलाजी के मन में ,यह बात तो बैठ ही गयी थी ,बहु संस्कारी नहीं ,इसने तो लड़के को आते ही मुट्ठी में कर लिया ,इसी का कहना मानता है ,मेरा बेटा तो ऐसा नहीं था ,चुपके से इसके कान भर देती है और ये कठपुतली की तरह चल देता है ,वो इतना भी समझ गयीं कि इसकी बहु पर काम का बोझ न पड़े ,इसीलिए भाभी -भइया को भी बाहर घुमाने ले गया। एक सप्ताह किसी तरह बीता -दोनों पति -पत्नी वापस जाते समय ,थोड़े चुप थे। रास्ते में मधु बोली -आपने देखा ,मम्मी कुछ अशांत थीं। पापा भी जैसे खुश नहीं थे। हाँ ,मैंने महसूस किया ,विशाल पहले से बहुत अधिक बदल गया है ,मैं उससे कुछ कह भी नहीं सकता , मैंने उसे समझाना चाहा ,तो कल को यदि उसने कुछ कह दिया तो मैं कुछ नहीं कर पाउँगा। मतलब, मधु ने पूछा।