Sanskar [part 3 ]

 मिश्राजी के तीनों बच्चों का विवाह हो जाता है ,मिश्राजी उनकी पत्नी अपना उत्तरदायित्व  पूर्ण करके निश्चिन्त हो जाना चाहते हैं ,किन्तु घर में प्रतिदिन कुछ न कुछ ऐसा घटित हो जाता है कि मिथिलादेवी को घर के कार्यों से अभी तक छुट्टी नहीं  मिली। वो समझ नहीं पा  रहीं  हैं कि कारण क्या है ?किसी को दोष भी नही  दे  सकतीं किसी की गलती भी नहीं लगती ,सब सुचारु रूप से चल रहा है किन्तु कहीं न कहीं कुछ तो कमी है किसी से क्या कहें ?


 फ़ोन की घंटी बज रही है। शिल्पी..... शिल्पी ......  देख तो जरा ,किसका फ़ोन है ?तभी शिल्पी रसोईघर से निकलकर आती है ,उसका एक हाथ आटे में सना है ,वो आटा गूँथ रही थी ,तभी सास की आवाज सुनकर बाहर आई और दूसरे हाथ से फ़ोन उठाया ,बोली -हैलो !दूसरी तरफ से आवाज आई -और क्या कर रही है ?छुटकी !प्रसन्नता से वो बोली -अरे ,भइया !आप ,कैसे हो ? भाभी कैसी हैं ?
सब मज़े में हैं ,तेरी भाभी को तो घर के कामों में समय ही नहीं मिलता ,तेरे भाई की भी क्या हालत हो चुकी है ?क्यों क्या हुआ ?बीमार हो क्या ? शिल्पी चिंतित होकर बोली।
 अरे नहीं ,पगली !सारा दिन दफ्तर, फिर घर के काम ,मम्मी -पापा से तो अब इतना काम होता नहीं इसीलिए तेरी भाभी की मदद हो जाये, तो सफाई वाली भी रख ली क्योंकि वो तो ठहरी आज्ञाकारी बहु ,इतने मम्मी खाना न खा लें ,अगली के गले से निवाला भी नहीं उतरता। सारा दिन उन्हीं के कार्यों में लगी रहती है ,तुझे तो पता ही है -मम्मी को  तो सभी कार्य अपने हाथों से करने की आदत है ,उसे भी साथ में लगाए रखती हैं। शिल्पी बोली -मम्मी -पापा ठीक तो हैं। अरे उन्हें क्या होगा ?सारा दिन बहु से सेवा ले रहे हैं ,उनकी तो मौज आ रही है, विशाल ने बताया। 
शिल्पी उत्साहित होकर बोली -मेरा भी बड़ा मन कर रहा है ,मम्मी-पापा और भाभी से मिलने का ,जबसे भाभी आई हैं ,मैं एक दिन भी उनके साथ नहीं रही। अभी वो कुछ और कहने ही वाली थी ,तभी उसकी बात बीच में काटते हुए विशाल बोला -इसीलिए तो मैंने फोन किया ,तेरी भाभी भी तो यही कह रही थी,' कि शिल्पी दीदी से मिलना नहीं हुआ ,उनसे मिले बहुत दिन हो गए। तब मैंने भी उससे कह दिया ,इसमें कौन सी नई बात है ?तेरा उससे मिलने का दिल कर रहा है तो हम मिलवाये देते हैं ,आखिर तेरा भाई हूँ ,''प्राण जाये पर वचन न जाये।  ''इसीलिए तो तुझे फ़ोन किया ,देख दीवाली तो हम अपने घर ही मनायेंगे ,उसने अहसान जताते हुए कहा किन्तु अगले दिन हम दोनों तेरे घर होंगे और ''भाई दूज ''मनाकर ही आएंगे। तेरा भी अपनी भाभी से मिलना हो जायेगा और उसका भी दिल लग जायेगा। बेचारी जब से यहां आई है ,तबसे कहीं नहीं गयी। मम्मी -पापा की सेवा और घर के कार्यों में ही व्यस्त रहती है। ठीक है भइया ,कहकर शिल्पी फोन रख देती है  और रसोईघर की ओर चल देती है ,उसकी सास पूछती है -किसका फ़ोन था ?अपने आँसुओं को रोकते हुए ,कहती है -भइया का था ,अबकि ''भाई दूज ''पर यहीं आ रहे हैं। 

सास बोली -''भाई दूज ''पर तो तू अपने घर जाने के लिए उत्साहित थी ,हाँ वो मरी सी आवाज में बोली। उसे अपने भइया -भाभी के आने पर प्रसन्नता होनी चाहिए थी किन्तु उसे तो रोना आ रहा है कितने दिनों से इस दिन की प्रतीक्षा कर रही थी ?कि घर जाऊँगी ,अपने मम्मी -पापा से मिलूंगी ,नई भाभी के साथ रहूंगी ,उनके हाथों का बना खाना खाऊँगी। जबसे यहां आई हूँ ,काम ही काम ,थोड़ा आराम भी हो जायेगा। मायके में तो माँ सिखाने के लिए कराती ही थी ,यहां तबसे उसका ''टैस्ट ''ही दे रही हूँ। 
घर आकर विशाल बोला -मम्मी अबकि बार छुटकी ''भाई दूज ''पर नहीं आ रही। मिथिलाजी परेशान होकर बोलीं -क्यों क्या हुआ ?क्या उसकी ससुराल वाले नहीं भेज रहे ?बेचारी जब से गयी है ,बस एक बार ही आई है ,मैं तो सोच रही थी -अबकि बार दो -चार दिन रखकर भेजूंगी। बेचारी बच्ची !अब क्यों नहीं आ रही ?विशाल बोला -अब मुझे क्या पता ?उसका फोन आया था ,कह रही थी -भाभी -भइया ,तुम लोग ही यहां आ जाओ ,मेरा शहर भी घूम लेना और कुछ दिन रहकर जाना ,ननद -भावज मस्ती करेंगे।
 वो तो बड़ी ज़िद कर रही थी कि दीवाली से पहले ही आ जाओ, किन्तु मैंने मना  कर दिया ,कहा कि त्यौहार तो हम अपने ही घर में मनायेंगे। पिंकी की इस घर में पहली ''दीवाली ''है ,वो तो अपनी ससुराल में ही मनाएगी, किन्तु उसके पश्चात हम आ सकते हैं।विशाल ने अपनी बातों का तड़का लगाया। 
क्यों ,उसके  भी तो ,अपने पहले त्यौहार है ?अब ऐसी ससुराल की हो गयी कि मैके में आने का मन ही नहीं करता ,तुम्हें ही बुलवा लिया मिथिलाजी अपनी बेटी के व्यवहार से थोड़ी क्षुब्ध थीं। 
अब मुझसे तो जैसे उसने कहा ,मैंने बता दिया ,अब आपकी इच्छा, कि हम त्यौहार पर उसके घर जायें या नहीं ,लो, मैं फ़ोन मिलाकर देता हूँ  अब आप ही उससे मना कर दो कि तेरे भइया -भावज नहीं आएंगे।  कहते हुए फोन मिलाने का उपक्रम करने लगा। चल अब छोड़ ,जैसा तेरी बहन कह रही है ,वैसा ही कर लो ,अब मना करेंगे तो उसे भी दुःख होगा। मिथिला जी ने बात को समाप्त करते हुए कहा। 
विशाल अंदर पिंकी के पास जाकर बोला -लो कुछ दिनों की मस्ती का मैंने इंतजाम कर लिया ,अब आराम से अपनी सुंदर - सुंदर साड़ियाँ पैक कर लो,मेरी सुंदर सी बीवी सुंदर दिखनी चाहिए। कहकर दोनों हँस पड़े। 

इस कहानी में ,गलत कौन है ?किसी ने भी, दिल दुखाने की बात नहीं की ,वाक्यों से लगता है - सभी एक -दूसरे की परवाह करते हैं ,किसी का किसी से  कोई झगड़ा नहीं ,ये तो घर -गृहस्थी की आम बातें हैं ,किसी को भी किसी पर शक नहीं जायेगा क्योंकि ये सभी अपने ही क़रीबी रिश्ते हैं। नोक -झोंक ,हँसी -ठिठौली ये सब परिवार में आम है। और जब हम एक -दूसरे से प्रेम करते हैं तो अविश्वास की तो गुंजाईश ही नहीं ,किन्तु जब ये ही बातें जड़ पकड़ लेती हैं और एहसास होता है कि कौन किसे मूर्ख बना रहा था या मूर्ख समझ रहा  है ,तब दिल को बहुत ठेस पहुंचती है।कई बार रिश्तों को संभालने के लिए भी हम, जानबूझकर अनजान बन जाते हैं। अब आप  अपनी भी समीक्षा दीजिये 
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post