अभी तक आपने पढ़ा ,मिश्राजी ,के दो बेटे हैं -प्रकाश और विशाल और इन दोनों से छोटी एक बेटी भी है प्रकाश और बेटी का विवाह भी हो चुका है। अब एक संस्कारी लड़की ढूँढ़कर उन्होंने ,विशाल का भी विवाह करा दिया। बड़ी बहु भी, अब अपने पति के साथ चली गयी और बेटी भी अपनी ससुराल चली गयी। अब घर में चार सदस्य ही रह गए। मिथिलाजी ,अब तक घर के सभी कार्य स्वयं ही करती आई हैं किन्तु छोटी बहु पिंकी के आते ही बेटे विशाल ने कामवाली रख ली। यह देखकर मिथिला जी उससे पूछती हैं ,जब से हम लोग घर के सभी कार्य स्वयं ही कर रहे थे ,तब तो तुमने एक बार भी काम वाली लगाने के लिए नहीं सोचा ,अब विशाल अपनी मम्मी को क्या जबाब देता है ? आगे -
विशाल अपनी मम्मी से बोला -मम्मी अब समय बदल रहा है , यदि आप कामवाली लगाती ,तो क्या मैं आपको टोकता ?मैंने कभी आपसे कहा ही नहीं , आप अपनी इच्छा की मालिक हैं ,आप स्वयं ही कहतीं हैं कि काम करने से सेहत ठीक रहती है ,मैंने सोचा -आप घर की मालकिन हैं ,आप जैसा चाहें।
तो क्या तुमसे बहु ने कहा, कि कामवाली लगाओ ? मिथिलाजी ने पूछा।विशाल पिंकी का बचाव करते हुए बोला -न ,न ,वो क्यों कहेगी ?ये तो मैंने आपके कारण ही लगाई है ,आप कब तक काम करती रहोगी ? विशाल अपनी मम्मी के कंधे दबाते हुए बोला। मिथिलाजी भी कहाँ मानने वाली थीं ?बोलीं -जब मैं विवाह के कामों से थकी ,उसके पश्चात भी घर के सभी कार्य कर रही थी ,तब तुमने क्यों नहीं कहा ?कि मम्मी सफाई वाली लगा लो। अब विशाल को लगा ,मम्मी ऐसे ही पटने वाली नहीं, फिर हंसकर बात को बदलते हुए बोला -मेरी माँ तो ''स्ट्रांग ''है ,भला आपकी बराबरी कौन कर सकता है ?फिर पिंकी को आवाज़ लगाकर बोला -जाओ !मम्मी के लिए एक कड़क बढ़िया सी चाय बना लाओ। फिर मम्मी से बोला -अब देखो ,ये कैसे आपकी सेवा करती है ?जब और कामों में फंसी रहती और थक जाती तो आप पर ध्यान नहीं जाता ,अब बहु से सेवा करवाओ।
जितनी देर में चाय बनकर आई ,उतनी देर में विशाल अपने मम्मी -पापा को शीशे में उतार चुका था। वे दोनो भी प्रसन्न हो गए कि हमारा बेटा हमारे लिए सोचता है।
अगले दिन पिंकी उठती है ,और नहाने के लिए तैयारी करती है ,विशाल बोला -अब तुम सुबह -सुबह उठकर कहाँ चल दीं ?पिंकी घबराती सी बोली -उठने में देरी हो गयी ,मम्मीजी तो नहा भी लीं और पूजा कर रही हैं ,उनके लिए चाय बनानी है।विशाल हंसा और बोला -तुम यहां बैठो ,जब देखो ,भागती रहती हो।अब तो तुम्हारे लिए ,सफाई वाली लगा दी ,अब तुम ही उन्हें चाय बनाकर दोगी। अभी इतनी भी बूढ़ी नहीं हुईं हैं ,चाय तो वे स्वयं भी बनाकर पी सकती हैं। मिथिला जी और उनके पति नहाकर चाय पी चुके किन्तु बहु अभी तक कमरे से बाहर नहीं आई। नाश्ते की प्रतीक्षा कर रहे हैं ,तभी आँखें मलता हुआ, विशाल बाहर आया और बोला -रातभर मच्छरों ने इतना काटा कि नींद भी पूरी नहीं हुई।
मिथिलाजी बोलीं -क्यों ?हमारे यहां तो कोई मच्छर नहीं है। तुम्हारे कमरे में तो ''ऑल आउट ''भी लगी है। तुम्हारे विवाह पर भी ,पूरे घर की सफ़ाई कराई थी। तो क्या मैं झूठ बोल रहा हूँ ?उसने अपनी बात को आगे रखते हुए कहा।
पिंकी..... मेरे लिए खाना बनाओ ,मुझे देरी हो रही है , तब तक मैं नहाकर आता हूँ। मिथिलाजी ,बहु की सहायता के लिए रसोईघर में जाती हैं और वहां पिंकी को बिना नहाए ,रसोई घर में खाना बनाते हुए देखकर कहती हैं -ये तुम क्या कर रही हो ? मेरे विवाह को तीस बरस हो गए ,बिना नहाये और पूजा किये मैं आज तक रसोई में नहीं घुसी और तुम नहाई भी नहीं। पिंकी बोली -इन्हें देर हो रही है ,इसीलिए.....
विशाल उनकी बातें सुनकर बोला -अरे मम्मी !इसके तो काम ही ढीले हैं ,मुझे देरी हो रही है ,आप मेरे लिए खाना बना दो। और तुम [पिंकी ]से बोला -तुम भी आराम से न खड़ी रहो ! मेरी जुराबें नहीं मिल रहीं ,ज़रा ढूंढ़कर तो दो। पिंकी मुँह फुलाती हुयी ,विशाल के पीछे चल दी। कमरे में जाकर तो जैसे उसके तेवर बदल गए ,बोला -खाना तो मम्मी बना लेंगी ,तुम अपने अन्य कार्य पूर्ण कर लो ,उसकी बातों का आशय समझकर पिंकी भी प्रसन्न हो गयी। सफाई वाली आई और वो काम भी हो गया ,अब तो करने को कुछ था ही नहीं ,कपड़ों के लिए भी तीसरे दिन मशीन चलती। पिंकी सारा दिन अपने कमरे में बैठी ,मोबाईल चलाती या फिर कोई चलचित्र देखती।
मिथिलाजी और उनके पति दोनों को ही प्रातः काल उठने की आदत थी ,उनके उठने का अंदर लेटे ,पति -पत्नी को पता चल ही जाता ,तब पिंकी के बालों में अंगुली फिराते विशाल कहता -पता नहीं इन दोनों बूढ़े -बुढ़ियाँ को इतनी जल्दी उठने की क्या आवश्यकता है ?पता नहीं ,इन्हें कौन से दफ़्तर जाना है ?और जब तक दोनों नहाकर चाय बनाकर नहीं पी लेते ,तब तक दोनों में से कोई बाहर नहीं आता। जब कभी पिंकी को शर्म महसूस होती तो कहता ,इन्हें ये कार्य करने दो ,बुढ़ापा है ,हाथ -पैर चलते रहेंगे तो ठीक रहेंगे ,इनकी आदतें बिगाड़नी नहीं हैं। बहु को आये ,एक माह हो गया किन्तु आज तक ,मिश्राजी और उनकी पत्नी ने सुबह बहु के हाथ की चाय नहीं पी और न ही बहु कभी रसोईघर में नहाकर आई।
पिंकी और विशाल ,बाहर घूमकर और खाना खाकर आ जाते ,और मजे करते किन्तु घर में आते ही विशाल की त्योरियाँ चढ़ जातीं और किसी न किसी बहाने पिंकी को अपने काम में लगा लेता और मिथिलाजी बेबसी में ,स्वयं ही घर के कार्य करने के लिए विवश हो जातीं। वो बस ये कहकर छूट जाता -इसके तो काम ही बड़े सुस्त हैं ,मेरी माँ की कोई बराबरी नहीं कर सकता। अब तो पिंकी को भी बुरा नहीं लगता ,क्योंकि वो जानती है - कि ये किसलिए और क्यों कर रहा है ?
कभी -कभी हंसी के स्वभाव में होता ,तो हंसकर कह भी देता -मैं नहीं चाहता कि मेरी पत्नी घर के कार्यों में अपना समय बर्बाद करे ,और घर के काम करते -करते उसकी सुंदरता नष्ट हो जाये। हालाँकि वो हंसी में भी अपने दिल की बात कह देता, किन्तु मिथिला जी उसे बेटे का बचपना समझकर हँस देतीं। फिर सोचतीं ,अभी तो इनका विवाह हुआ है ,धीरे -धीरे सब ज़िम्मेदारियाँ संभाल लेंगे।
क्या मिथिलाजी के बहु -बेटे ने अपनी ज़िम्मेदारी समझी या इसी तरह जीवन कटता रहा ? या फिर समय ने कुछ और करवट ली ,अगले भाग ३ में।