Mera pyaar

प्यार यानि लव ,इश्क़ ,मुहब्बत, न जाने कितने नामों से इसे जाना जाता है ? इसके नाम से ही चेहरे पर मुस्कान आ जाती है ,आये भी क्यों न ?ये शब्द दिल को गुदगुदा जाता है। देखा जाये तो ,इस शब्द को हम उस प्रेम से जोड़ते हैं, जहाँ दो प्रेमी -प्रेमिका का मिलन हो किन्तु प्यार इतना छोटा भी नहीं ,जो यहीं तक सीमित रह जाये। प्यार तो, माता -पिता और भगवान से भी हो सकता है। छुटपन में इतनी अक़्ल नहीं होती कि प्यार को समझा जाये ,प्यार तो हम अपने परिवार या उससे जुड़े सभी रिश्तों से करते हैं, किन्तु एक उम्र ऐसी आती है, जिसमें मन हवाओं में उड़ने लगता है , हर चीज उसे अच्छी लगती है ,वो बनने संवरने लगता है। अपने  को आकर्षक दिखाने के लिए ,बहुत समय तक ,आईने के सामने खड़े हो, अपने को निहारने लगता है। किसी अनजान के लिए सजता -संवरने लगता है। और वो पल भी आ जाता है ,जब कोई उसे निहारता है और वो शरमाकर नजरें नीची कर लेता है। क्या यही पहला प्यार है ?ये पहले फिल्मों में होता था-'' कि नजरें मिली और प्यार हो गया और वो जीवन भर चलता था ,ये किसी भी परिस्थिति में निभाया जाता था। किन्तु आजकल तो प्रेम हो भी जाता है उसका एहसास भी नहीं होता और ''ब्रेकअप ''हो जाता है ,वो क्षणिक प्रेम ,प्रेम ही नहीं। स्वार्थ सिद्ध न हुआ ,प्रेम समाप्त। 

          अरे !मैं भी क्या बातें ले बैठी ?मुझे तो पहला प्रेम बताना है ,सोचती हूँ, क्या कभी मेरी जुल्फें उड़ी ?तो जबाब मिलता है -उड़ी थीं ,जब मैंने बालों में शैम्पू किया था ,उससे बाल अत्यंत नरम -मुलायम हो गए थे, इससे पहले छाछ या मुल्तानी मिट्टी से बाल धुलते थे ,तब वो नहीं उड़ते थे। क्या किसी की नजरों ने छुआ या किसी से नजरें मिली? तो जबाब आता है -हाँ ,किन्तु उन नजरों से मैं ,अपने को असुरक्षित महसूस करने लगी। मैं अपना पहला प्यार ढूँढ रही थी -तभी मुझे एहसास हुआ ,मेरा ''पहला प्यार ''तो मेरी कला है ,मैं जब अपनी ''ड्रॉइंग सीट ''पर चित्र उकेरती थी, तो प्रसन्न होती थी , अपने आप से मिलती थी। जब मैं गुनगुनाती थी ,तो उस ईश्वर को महसूस करती थी और जब मैं लिखती तो अपने साथ ,दूसरों का दर्द भी महसूस करती थी। इन सबने मुझे अपने आपसे मिला दिया। ये सभी चीजें ही मेरा'' पहला प्यार' था जिसे मैंने धीरे -धीरे समझा ,महसूस किया। जो शाश्वत है ,अनन्त है ये घटता नहीं ,दिन रात बढ़ता है ''मेरा पहला प्यार ''
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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