Gulaab

 बचपन में हम गाना सुनते थे ,''फूल आहिस्ता फेंको ,फूल बड़े नाजुक़ होते हैं। '' ये बात तो सिर्फ़ फूलों के लिए ही कही गयी है किन्तु हम  बात कर रहे हैं ,''ग़ुलाब'' की ,जो प्रेम को दर्शाता है, प्रेम का प्रतीक माना जाता है।''

लाल ग़ुलाब '',इसकी सुंदरता और खुशबू  अनायास ही अपनी और खींच लेती है। कहने को तो ,प्रकृति  में  जो भी पुष्प  हैं ,या यूँ कहें ,ईश्वर ने जो भी वस्तु बनाई है , सभी एक से बढ़कर एक हैं। किन्तु ग़ुलाब की सुंदरता सबसे अलग है इसीलिए इसे 'फूलों का राजा ' कहा  जाता है , इसकी सुंदरता और  महक के साथ काँटे भी तो होते  हैं  जो ये दर्शाते  हैं - प्रेम इतना आसान भी नहीं। होता भी यही है ,प्रेम इतनी आसानी से मिल जाये तो उसकी महत्ता ही समाप्त हो जाती है इसीलिए सच्चे प्रेम को प्राप्त करने के लिए ,आम भाषा में कहें तो -'' पापड़ बेलने पड़ते हैं। ''लाल गुलाब ''जो प्रेम का  प्रतीक माना जाता है ,पहले तो इसका ही वर्चस्व था किन्तु अब तो ''गुलाब ''के अन्य रंग भी आ गए हैं ,जैसे -पीला ,ग़ुलाबी ,नारंगी और तो और काला ग़ुलाब भी आ गया है। जो ये दर्शाते हैं - कि ज़िंदगी के रंगों की तरह ही इनके भी विभिन्न रंग हैं। ज़िंदगी में ख़ुशी है ग़म भी है ,उसी तरह ग़ुलाब में रंग हैं, विभिन्नता है ,तो उसके संग काँटे और काला ग़ुलाब भी है। जो अंधेरों को ,ग़म को दर्शाता है। फिर भी व्यक्ति उसका दूसरा पहलू न देखकर सिर्फ़ उसके'' लाल रंग ''में खो जाना चाहता है। जिसका प्रयोग अपनी प्रेमिका को प्रसन्न करने, रूठी हुयी को मनाने में प्रयोग करता है  या फिर उसके स्वागत में साज़ -सज्जा में प्रयोग होता है। अब तो बालों में फूल लगाने की परम्परा नहीं रही, किन्तु जब प्रेमी उसके बालों में ग़ुलाब लगाता  था ,तब प्रेमिका भाव -विभोर हो उठती थी और उसके प्रेम को स्वीकार कर अपने को समर्पित कर देती थी और विवाह कर, सम्पूर्ण जीवन उसके नाम कर देती थी। ये सब उस ''लाल ग़ुलाब ''का ही कमाल होता था ,वो कमाल आज के बंगले ,गाड़ी और पैसा  भी नहीं कर पाते।' गुलाब जैसा प्यार'' है कहीं !
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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