Dant [ part1]

 कल्पना बाहर से आती है ,और देखती है -मम्मी तो आराम कर रही हैं और पापा शायद किसी से बातें कर रहे हैं। उनका  ही कोई दोस्त उनसे मिलने आया होगा,उसने अंदाजा लगाया।  उसके पश्चात ,वो तुषार के कमरे में जाती है ,तुषार तो अपना 'गृह कार्य ' पूर्ण कर रहा है और उसकी छोटी बहन अपनी मोटरगाड़ी से खेल रही है। सब कुछ ठीक है ,आश्वस्त होकर वो रसोईघर की तरफ चल दी, दोपहर के खाने की तैयारी करने ,तभी वो अपने पापा के कमरे की तरफ जाती है और वहां रखी दवाइयाँ देखकर ,उसे क्रोध आता है और सीधी ,वहीं पहुँच जाती है ,पापा तो पता नहीं ,किससे बातें  कर रहे हैं ?उन्हें तो वो जानती भी नहीं ,पहले तो वो थोड़ा झिझकी किन्तु उसका क्रोध, उसकी झिझक पर भारी पड़ा और वो अंदर चली गयी। उन अजनबी को  सिर हिलाकर ,नमस्कार किया और बोली -ये क्या बात है ,पापा ! जब  मैं बाहर गयी थी ,तब आपकी दवाई देकर गयी थी और अब आई हूँ ,तब भी वो दवाइयाँ वहीं पड़ी मिलीं। कहते हुए ,पास ही रखे जग में से पानी भरने लगी और बोली -आप समय से दवाई नहीं लेंगे तो कैसे चलेगा ?

वो बेटा ,मैं दवाई लेने ही वाला था ,तभी ये भाईसाहब आ गए ,तो इनसे बातें करने लगा और भूल गया। 
                नहीं आज ही की बात नहीं है ,आपका प्रतिदिन का कोई न कोई बहाना रहता है ,जब तक आप पर निगाहें न रखो ,आप इसी तरह की लापरवाही करते रहते हो। ये भी थोड़ा रुक सकते थे ,वो उस अजनबी की तरफ देखते हुए बोली। उसने भी हाँ में गर्दन हिलाई। कल्पना ने उन्हें दवाई दी और चली गयी। उसके जाने के पश्चात वो अजनबी बोला -मुझे क्षमा कीजियेगा ,मेरे कारण आपको ''डांट ''पड़ गयी।  सोहनलाल जी मुस्कुराते हुए बोले -आप परेशान न हों ,ये तो मुझे ऐसे ही डांटती रहती है। 
अजनबी -बेटियाँ ऐसी ही होती हैं ,अपने माता -पिता का ध्यान रखती हैं। 
सोहनलाल जी -जी ,आपने सही कहा ,अब तो मुझे जैसे इसकी 'डांट' खाने की आदत सी हो गयी ,दिन में एक दो बार डांट न ले, मेरा खाना भी हज़म नहीं होता। दरअसल, ये मेरी बेटी भी  है और बहु भी !
क्या ये आपकी बहु है ?और आपको इस तरह डाँटकर गयी। जब उस व्यक्ति को पता चला कि कल्पना उनकी बेटी नहीं बहु है तो उसके व्यवहार में सहसा ही परिवर्तन आ गया। और बोला -आपकी बहु !इस तरह किसी अज़नबी के सामने आपको डांटकर गयी ,आपको बुरा नहीं लगा। 
सोहनलाल जी मुस्कुराते हुए बोले -अभी तो तुम कह रहे थे, कि बेटियां ऐसी ही होती हैं और' बहु 'शब्द सुनते ही भाव बदल गए।' बहु 'भी तो 'बेटी 'ही होती है। तुमने उसका डांटना देखा किन्तु मैंने जो देखा ,वो तुमने नहीं देखा। आपने क्या देखा ?वो उत्सुक होकर बोला। 
मैंने उसकी डांट में, अपने लिए प्यार देखा ,अपने लिए चिंता देखी और मैंने गलती की है ,तो डांट भी तो मैं ही खाऊँगा सोहनलाल जी हँसते हुए बोले। 
तुम तो बरसों बाद यहाँ आये हो ,मैं उसकी डांट के कारण ,उससे तुम्हारा परिचय ही नहीं करा सका ,अभी रसोई घर में ही होगी और तुम्हारे लिए चाय लेकर आती ही होगी। इसने कभी भी मेरे किसी भी जानने वाले को बिना चाय पिये जाने नहीं दिया। तुम तो जानते ही हो -प्रतीक  जब छोटा था ,कितना शरारती और अपने देश के लिए ,उसमें कितना जोश था ?उसी जोश के साथ वो पढ़ा और फ़ौज में भर्ती हो गया। पहले तो वो विवाह करना ही नहीं चाहता था,कहता - मेरे ऊपर देश की ज़िम्मेदारी है, किसी अन्य की ज़िम्मेदारी शायद ठीक से न निभा पाऊँ।
              एक बार वो छुट्टियों में आया हुआ था ,हमारी दूर की रिश्तेदारी में ही ,कुछ लोग आये हुए थे ,उनमें कल्पना भी थी। सुंदर होने के साथ -साथ व्यवहारिक और मिलनसार भी थी। प्रतीक  को कल्पना भा गयी और कल्पना भी उसकी तरफ खिंच रही थी किन्तु  प्रतीक  ने अपने विचार किसी से भी व्यक्त नहीं किये। क्योंकि वो समझता था , कि विवाह होने पर मैं उस रिश्ते के साथ ,शायद न्याय नहीं कर पाऊँगा। किन्तु कल्पना तो मन ही मन उसे चाहने लगी थी। उसके भाव उसकी माँ ने समझ लिए और खाने की मेज़ पर,प्रतीक  की मम्मी से बोलीं -तुम कब तक अकेली घर के कार्य संभालती रहोगी ?अब तो प्रतीक  का विवाह कर ,घर में एक अच्छी सी बहु घर ले ही आओ। प्रतीक  ने एक नज़र कल्पना को देखा और नजरें नीची कर लीं। प्रतीक  की मम्मी ने ,उसकी परेशानी उन्हें बताई , तभी कल्पना बोली -आंटीजी !आप दोनों भी तो अकेले रह जाते हो ,आप लोगों की देखभाल के लिए भी तो कोई चाहिए। हाँ ,ये भी तो यही सोचता है ,वे उदास स्वर में बोलीं ,कहता है -मैं आप लोगों का भी ध्यान नहीं रख पाता हूँ फिर एक और ज़िम्मेदारी , पत्नी तो विवाह के पश्चात संग जाना चाहेगी। 

वे बोलीं -कोई आस -पास ही ऐसी लड़की ढूँढो ,जो आप लोगों के साथ भी रहे और ये तो आता -जाता ही रहा करेगा। कौन होगी ?जो हमारे बेटे से प्रेम करती हो और उसकी ज़िम्मेदारियों को भी बाँट ले प्रतीक की मम्मी ने प्रश्न किया।  तभी कल्पना की मम्मी ने , इन दोनों के विवाह की बात रखी। प्रतीक  की मम्मी ने अपनी प्रसन्नता छुपाते हुए कहा -ये क्या कह रहीं है आप ?सब कुछ जानते हुए भी ,आपकी बेटी विवाह करना चाहेगी। उसके भी कुछ अरमान होंगे ,ये भी पता नहीं, कि हमारे प्रतीक  को पसंद भी करती है या नहीं। उन्होंने कल्पना की तरफ देखा ,वो शरमाकर जा ही रही थी, तभी प्रतीक  की मम्मी बोली -देखो ,वो जा रही है ,मैं न कहती थी -कि इसे प्रतीक  पसंद नहीं होगा। उनकी बात सुनकर वो रुक गयी और बोली -नहीं , नहीं मुझे पसंद हैं, कहकर भाग गयी।
               इस तरह दोनों ''परिणय सूत्र ''में बंध गए। कल्पना चाय लेकर आ ही रही थी ,तभी उसके कानों में ये बातें पड़ीं और वो एकदम शांत हो ,वहां चाय -नाश्ता रखकर चली गयी। सोहनलाल जी समझ गए -आज मैंने इन बातों का जिक्र करके ,उसके शांत मन में ज्वार लाने  का कार्य कर दिया। उधर कल्पना खाना बनाना तो रोक नहीं सकती थी, किन्तु उसका मन तो उसी समय में पहुंच गया ,जब उसका विवाह प्रतीक  से तय हुआ। उसने तो हाँ कह दी थी, किन्तु प्रतीक  ने हाँ नहीं कहा ,बोला -पहले मैं कल्पना से कुछ बात करना चाहता हूँ। दोनों अकेले में मिले ,कल्पना का दिल जोरों से धड़क रहा था ,पता नहीं ,ये क्या बात  करना चाहता है। इससे सीधे -सीधे हाँ नहीं हुआ। प्रतीक  बोला -क्या तुमने ये सोच -समझकर निर्णय लिया है ?

कल्पना थोड़ा झिझकते हुए बोली -प्यार सोच -समझकर नहीं किया जाता ,मेरी बात सुनकर वो और गंभीर हो गया -तभी तो कह रहा हूँ ,कभी -कभी भावुकता में लिए फ़ैसलों से ,पछताना पड़ जाता है। तुम तो जानती ही हो ,एक फ़ौजी की ज़िंदगी ,अंगारों पर चलने जैसा है ,कब उसे मौत का दामन थामना पड़ जाये ?इसीलिए मैं चाहता हूँ - दिल से नहीं दिमाग़ से सोचो। कल्पना बोली -जब तुमने अपने देश की सेवा करने का निर्णय लिया था ,भावुकता या जोश में लिए था या फिर दिमाग़ से सोचा था- कि मैं इतनी मेहनत करके ,क्यों अपने प्राणों का बलिदान दूँ। क्यों न कोई दूसरी नौकरी करके ,आराम की ज़िंदगी बसर करूं ?ठंड या गर्मी क्यों सहुँ ?ये मेरा'' देश प्रेम '' है ,मैं अपने देश के लिए ही पैदा हुआ हूँ। बस यही बात मेरे लिए भी है ,ये मेरा आपसे वायदा है ,मैं आपसे जीवनभर प्रेम करूंगी और विवाह के बाद आपका  परिवार ही अब मेरा परिवार होगा। अब मैं आपको इन ज़िम्मेदारियों से मुक्त करती हूँ। आप बेफ़िक्र होकर, अपनी वहाँ की जिम्मेदारियाँ पूर्ण करें।कल्पना की ये बातें सुनते ही, पता नहीं प्रतीक को क्या हुआ ?उसने उसे अपने नज़दीक खींचकर गले लगा लिया। 
                     

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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