अभी तक आपने पढ़ा ,कल्पना जो सारा घर संभालती है ,उसका किन परिस्थितियों में ,प्रतीक से विवाह हो जाता है। प्रतीक देश की सेवा का भाव लिए ,एक फ़ौजी है ,वह अपनी ज़िम्मेदारियों को पूर्णतः निभाना चाहता है किन्तु उसे डर है ,कहीं वो अपनी ज़िम्मेदारियों को न निभा सका ,तब उसके लिए ,कल्पना रौशनी की किरण बनकर आती है और वो उससे वायदा करती है - कि वो बेख़ौफ़ अपनी देश के प्रति ज़िम्मेदारियाँ पूर्ण करे ,यहां मैं संभाल लूँगी। जब कल्पना उससे ये वायदा करती है ,उसके पश्चात दोनों ''परिणय सूत्र ''में बंध जाते हैं ,आज ये ही बातें उसके ससुर उन अज़नबी से बता रहे थे ,तब कल्पना की यादें भी उसे रह -रहकर स्मरण होने लगीं ,अब आगे -
अभी प्रतीक की छुट्टियाँ बाक़ी थीं ,विवाह के पश्चात दोनों घूमने गए ,कल्पना अपने फैसले से प्रसन्न थी ,प्रतीक भी उसका खूब ध्यान रखता था। दोनों ही ख़ुश थे ,माता -पिता तो इस जोड़ी को देखकर ,प्रसन्न होने के साथ -साथ मन ही मन नज़र भी उतार लेते ,कहीं अपनी ही नज़र न लग जाये। प्रतीक की छुट्टियाँ समाप्त हुईं और वो जाने की तैयारियां करने लगा। उसके दूर जाने के ख़्याल से ही , कल्पना की हालत ख़राब हो रही थी किन्तु वो प्रतीक के सामने ,कमजोर नहीं पड़ना चाहती थी। किन्तु एकांत मिलते ही, वो अपना मन हल्का कर लेती। यूँ ही ,आसान नहीं होती ,एक फ़ौजी की पत्नी की भी ज़िंदगी ,अब उसे महसूस हो रहा था। प्रतीक के जाने के दो माह पश्चात ही उसे पता चल गया कि प्रतीक अपने प्रेम की निशानी उसकी कोख़ में छोड़ गया। तब नौ माह पश्चात तुषार ,उनकी ज़िंदगी में आया ,उनके घर का चिराग़ ,सभी प्रसन्न थे ,अब तो कल्पना का सारा दिन घर और तुषार की देखरेख में ही बीत जाता।तुषार दो माह का था जब उसके पिता ने उसे देखा। प्रतीक ने उसे बहुत प्यार किया और कल्पना को भी, जिसने उसकी सभी परेशानियों को भी बाँट लिया अपना वायदा पूर्ण करने के साथ ये ''प्रेमपूर्ण उपहार'' दिया। दिन यूँ ही निकल जाते और उसके जाने का समय भी आ जाता ,कल्पना प्रतीक के आने पर थोड़ी नरम पड़ जाती क्योंकि कुछ कार्य प्रतीक संभालता या यूँ समझिये -उसके आने पर थोड़ी लापरवाह हो जाती और उसके जाते ही फिर से अपनी ''डयूटी ज्वाइन '' कर लेती।
अब तो उसकी ज़िंदगी में ,तुषार की बहन भी आ गयी ,अब उसका परिवार पूर्ण हुआ किन्तु प्रतीक के बिना सब कुछ अधूरा सा लगता। कभी -कभी हताश भी हो जाती कुछ क्षणों पश्चात दूने उत्साह से अपनी ज़िम्मेदारियाँ पूर्ण करने में जुट जाती आखिर प्रतीक से वायदा जो किया है। खाना बनाकर वो अपने कमरे में आती है ,कुछ क्षण उसके फोटो को निहारती है ,कहती है -आपने तो मुझे समझाया था किन्तु मैं ही अपने ''प्रेम'' के हाथों मजबूर हो गयी थी ,बुद्धू कहीं के, पहले तो मुझे फंसा लिया और फिर वायदा भी ले लिया अबकि बार आओगे तो सारे बदले ले लूँगी ,मुझे क्या मूर्ख समझा है ?अब तो मेरी ज़िम्मेदारियाँ और भी बढ़ गयी हैं ,आपके बेटे का गृहकार्य देखना ,उसके विद्यालय जाकर उसके मम्मी -पापा दोनों का कार्य भी मुझ अकेली जान को करना पड़ता है ,उसमें भी आप जैसा ही 'देश भक्ति ''का जज़्बा है। और आपकी बिटिया उसे तो अभी अपने पापा का चेहरा भी याद न हुआ होता यदि तुम्हारी फोटो न देखती। तभी बिटिया के रोने की आवाज़ सुनकर उसका ध्यान भंग हुआ और वो प्रतीक का फोटो रखकर उधर की तरफ दौड़ी।
कल्पना ने रोती हुई तृषा को उठाया और उसकी दादी की गोद में ड़ालकर उसके लिए दूध लेने चली गयी। वे बोलीं -कल्पना ,अबकि बार तो प्रतीक को आये बहुत दिन हो गए ,क्या उसका फोन आया?
नहीं मम्मीजी !मैंने ही किया था किन्तु फ़ोन नहीं उठा। तभी उसके ससुर की आवाज़ आई ,देखो -दूरदर्शन पर क्या समाचार है ?जहां पर वो है ,वहां कुछ धमाके हुए हैं और कुछ लोग मिल नहीं रहे हैं। कल्पना का तो जैसे खून ही सूख गया ,उसने फिर से फोन किया किन्तु निराशा ही हाथ लगी।वो तो जैसे निढ़ाल सी हो गयी ,उसने रोती हुई ,बेटी को दूध दिया। उसे अब सोच-सोचकर पसीना आने लगा। उसने अंदर जाकर पानी पीया और कुर्सी पर बैठ गयी। वो अपने मन को हर परिस्थिति के लिए तैयार कर रही थी। उसके बूढ़े सास -ससुर मन ही मन भगवान से प्रार्थना कर रहे थे ,सब अच्छा होगा किन्तु किसी अनिष्ट की आशंका से उनका दिल दहल जाता।
कुछ की लाशें भी मिलीं ,किन्तु उनमें प्रतीक का नाम नहीं था ,एक उम्मीद अभी बाक़ी थी किन्तु वो मिल भी तो नहीं रहा था। कल्पना प्रतिदिन की तरह कार्य करती ,वो तो जैसे ठोस सी हो गयी ,उसके चेहरे से मुस्कान भी ग़ायब थी ,एक उम्मीद ,जैसे उसे जिंदा रखे हुए थी। उसके न मिलने की स्थिति में भी ,अब वो सभी कार्य कर रही थी किन्तु उसने जैसे जीना छोड़ दिया था। अब वो चुपचाप अपने ससुर को दवाई देती ,न डाँटना ,न फ़टकारना। उसके नेत्रों में जल भी तो नहीं दिख रहा ,वे भी जैसे प्रतीक के संग ही कहीं छुप गए। उसकी ऐसी हालत देखकर उसके ससुर को चिंता होने लगी ,वे जानबूझकर दवाई नहीं लेते ,और प्रतीक्षा करते कि अब डाँटेगी, किन्तु वो चुपचाप आती और दवाई उनके हाथोँ में रखकर चली जाती। उसकी इस अवस्था को देखकर उनकी आँखें नम हो जाती। वो तो जैसे सब भूलती जा रही थी किन्तु अच्छे से तैयार होना नहीं भूलती। उसे स्मरण है ,प्रतीक कहता था -तुम इसी तरह रहा करो तो मेरे दिल के और क़रीब हो जाती हो। बस वो अब उसके क़रीब ही रहना चाहती थी।
एक दिन वो बोले -बेटा अब मैं गलतियाँ करता हूँ तो भी तुम मुझे नहीं डाँटती। वो उस सपाट चेहरे से बोली -क्या प्रतीक आपको डाँटते थे ?नहीं न ,शायद इसी कारण मुझसे नाराज हो गए और आ नहीं रहे।अब वो और मैं अलग ही कहाँ हैं ?जब तक वो नहीं आ जाते ,तब तक मैं ही प्रतीक हूँ ,आपकी बहु नहीं ,अब आप मुझमें कल्पना को नहीं देख पाओगे ,वो भी कहीं खो गयी है।
उसकी बातें सुनकर ,दोनों पति -पत्नी रो दिए ,लगभग कुछ माह पश्चात कोई गाड़ी घर के आगे आकर रुकी और उसमें से कोई शख़्स उतरा और प्रतीक के घर की तरफ आया। कल्पना के दोनों बच्चे बाहर बग़ीचे में खेल रहे थे। उसने जैसे ही दरवाजा खोला ,उसे देखकर बच्चे सहम गये ,उसके हाथ और टाँग में पट्टियाँ बँधी थीं। बच्चे डरकर चिल्लाने लगे -मम्मी.... मम्मी..... उनकी आवाज सुनकर वो बाहर आई और एकदम से चीख़ने लगी ,जैसे अपने मन का सारा गुब्बार निकाल देगी ,उसकी चीख़ सुनकर ,उसके सास -ससुर और पड़ोसी भी आ गए। उन्होंने वहां नज़ारा का देखा ,तो कोई भी अपने आँसू न रोक सका। कल्पना उस व्यक्ति से गले लगकर फूट -फूटकर रो रही थी और उसे चूम रही थी बच्चे सहमे से खड़े थे। तब एक महिला ने दोनों को पानी लाकर दिया। आज उसके ससुर भी उसे रोने देना चाहते थे न जाने कितने गिले -शिक़वे उन आँसुओं में बह रहे थे?
वो व्यक्ति और कोई नहीं , प्रतीक ही था ,जो ऐसी हालत में आया था ,उसने बताया -उन धमाकों से बचते हुए, मैं खाई में गिर गया। मेरा पैर और हाथ टूट गया ,वहाँ बर्फ़ भी बहुत थी न जाने कितने दिन मैं बर्फ़ में बेहोश रहा ?जब मुझे होश आया तो ,अपने को किसी अस्पताल में पाया ,जब थोड़ा आराम मिला तो यहाँ चला आया। सम्पूर्ण जानकारी के पश्चात धीरे -धीरे पड़ोसी जाने लगे। प्रतीक का बिस्तर ठीक कर उसे आराम करने के लिए कल्पना अंदर ले गयी और उसके खाने और उसकी सेवा में जुट गयी। सोहनलाल जी अपने बेटे को देखकर अत्यन्त प्रसन्न थे। अब तो जैसे बहु के क़दमों में जान आ गयी। वे आँखों में नमी और होंठों पर मुस्कान लिए बैठे थे। तभी कल्पना आई और बोली -पापा, आप यहां क्या कर रहे हैं ?चलिये !अपने बेटे के पास बैठिये ,मम्मी और बच्चे भी उनके पास हैं। आज बहु ने बहुत दिनों बाद उन्हें ''डांटा ''था किन्तु उस 'डांट' से उनके चेहरे पर मुस्कान थी ,जिसके लिए वो महीनों से तरस रहे थे।